पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/९४

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1 पदमकाठ २८०३ पदातिक लकडी घिसकर पीने से गर्भ रह जाता है, यदि गर्भ गिर जाता पदविष्टंभ-सज्ञा पुं० [सं० पदविष्टम्भ ] पैर रखना। कदम है तो स्थिर हो जाता है। वैद्यक के अनुसार इसकी लकडी रखना (को०] । ठढी, कडवी, कसैली, हलकी, वादी, रक्तपित्तनाशक, दाह, पदवी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. पंथ । रास्ता । २ पद्धति । परिपाटी । ज्वर, कोढ और विस्फोटक आदि को दूर करनेवाली और तरीका । ३ वह प्रतिष्ठा या मानसूचक पद जो राज्य रुचिकारक मानी गई है। अथवा किसी सस्था आदि की ओर से किसी योग्य व्यक्ति को मिलता है। उपाधि । खिताव । जैसे, राजा, राय पर्या-पद्मक । मलय। पीतरक्क । सुप्रभ । पीतक । शीतल । हिम । शुभ । केदारज । पद्मगधि । शीतवीर्य । श्रमलगुच्छ । वहादुर, डाक्टर, महामहोपाध्याय, आदि । उ०-सांच कहे तो पनही खावै। झूठे बहु विधि पदवी पावै ।-भारतेंदु पभाख । ग्र० मा० १, पृ० ६७० । पदमकाठ-मज्ञा पुं॰ [ स० पद्मकाप्ठ ] दे० 'पदम'२। विशेष- पदवी नाम के पहले अथवा पीछे लगाई जाती है । पद्मचल-मज्ञा पुं॰ [ देश० ] रेवद चीनी। ४. मोहदा । दरजा। ५ स्थान । पदमण-लज्ञा स्त्री॰ [स० पमिनी ] स्त्री ( हिं० )। पदवेदी-सज्ञा पु० [ स० पदवेदिन् ] पदो अर्थात् शब्दो का ज्ञाता । पदमनाभ- सज्ञा पु० [सं० पमनाभ ] १ विष्णु । २ सूर्य (हिं०) । शब्दशास्त्री [को०] । पदमाकर-सञ्ज्ञा पुं० [ म० पन्नाकर ] तालाब (हिं० )। पदसमय-सज्ञा पु० [ स० ] दे॰ 'पदपाठ' [को०] । पदमाला-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] इद्रजाल । समोहनी विद्या [को०] । पदस्थ-वि० [सं०] १ जो अपने पैरो के बल खडा हो। २ जो पैरो पदमिनी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पमिनी ] दे॰ 'पधिनी' । उ०-क्यो के बल चल रहा हो। ३ किसी पद पर नियुक्त हो । चाहति तू पदमिनी करन पातकी मोहि । -शकुतला, पदस्थान-सज्ञा पुं॰ [स] पदाक । पदचिह्न [को०] । पृ०६३ । पदांक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पदात ] पैरो का चिह्न जो प्राय चलने के पदमल-सज्ञा पुं॰ [स०] १ पैर का तलवा । तलवा । २ (लाक्ष०) कारण बाल या कीचड आदि पर बन जाता है। प्राश्रय । शरण। पदांगी-सशा स्त्री॰ [स० पदागी ] लाल रंग का लजालू । पदमैत्री-सझा सी० [स०] किसी कविता में एक ही शब्द या अक्षर पदांव-सज्ञा पु० [सं० पदान्त ] १ पद का, किसी श्लोक या पद्य का इस प्रकार वार बार आना जिसमे उसमे एक प्रकार का का प्रतिम भाग । २ तलवा । पैर [को०) । चमत्कार पा जाय । अनुप्रास। वर्णमैत्री । वर्णमाम्य । जैसे, पदांतर-सज्ञा पुं० [स० पदान्तर ] १ दूसरा कदम । दूसरा डग । मल्लिकान म जुल मलिंद मतवारे मिले मद मद मारुत मुहीम २. एक कदम लवाई। ३ कदम । डग । २ दूसरा पद या मनसा की है।-(शब्द०)। स्थान [को०] । पदम्मी-सज्ञा पुं॰ [ सं० पनी ] हाथी ( हिं० )। पदात्य-वि० [स० पदान्त्य ] पद के प्रत मे रहनेवाला। पदात पदयात्रा-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] वह भ्रमण या यात्रा जो पांव प्यादे में स्थित । अतिम [को०] । चलते हुए की जाय । पैदल की जानेवाली यात्रा । पदांभोज-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पदाम्भोज ] चरणकमल [को०] । पदयोजना-सज्ञा स्त्री॰ [स०] कविता के लिये पदो का जोडना । पदाकात-वि० [ स० पदाक्रान्त ] पददलित । रौंदा हुआ। कुचला पद बनाने के लिये शब्दो को मिलाना। हुमा । विजित । उ०- नवागत म्लेच्छवाहिनी से सौराष्ट्र भी पदाकात हो चुका है।-म्कद०, पृ०७। पदरी-मज्ञा पु० [देश॰] १ एक प्रकार का पेड। २ ड्योढीदारो के बैठने का स्थान । (हिं.)। उ०-पकरि पदर घरि पदाघात-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] पैर की मार । लातो की मार (को०] । सत पद जद्यपि सुरति विचार । लार लगन लागी रहै, तव पदाचार-सज्ञा पु० [स० पदचार ] पैर रखना। पदसचार । उतरे भी पार ।-घट०, पृ० ३८१ । गमन । उ०-चपल पवन के पदाचार से अहरह स्पदित । पदरिपु-मज्ञा पु० [सं० पद+रिपु ] कटक । कांटा। उ०-पद- शात हास्य से अतर को करते पाह्लादित ।-ग्राम्या०, पृ०७३। रिपु पर अटक्यो पातुर ज्यो उलटत पलट मरी। -पूर (शब्द०)। पदाजि-सज्ञा पुं० [म.] पैदल सैनिक [को०] । पवाद्य-सज्ञा पु० [ स०] प्राचीन काल का एक प्रकार का ढोल । पदात+-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] • 'पदाति' । पदवाना--क्रि० स० [हिं० पदाना का प्ररूप] पदाना का प्रेर- पदाति-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ वह जो पैदल चलता हो । प्यादा । २ णार्थक रूप । पदाने का काम दूसरे से कराना । पैदल सिपाही । ३ नौकर । सेवक । ४ जनमेजय के एक पुत्र का नाम। पदवि-सज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'पदवी' । पदातिक-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह जो पैदल चलता है। २ पैदल पदविक्षेप-सज्ञा पुं० [सं०] कदम रखना । चलना [को०] । सिपाही। उ०-दयानदीय समाजियो की पदातिक सेना पदविच्छेद-सज्ञापुं० [सं० ] दे० 'पदच्छेद' [को०] । को उनपर ।-प्रेमघन० भा० २, पृ०२४२ ।