पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/९५

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पदावी २००४ पदावली पदाती-सशा पुं० [स० पदातिन् ] पैदल सैनिक [फो०] । प्रभाव ही होता है, इसलिये स्वयं प्रघकार कोई स्वतत्र पदार्य नहीं हो सकता । विशेष-दे० 'वैशेपिक' । पदातीय-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पदाति' । पदादि-सज्ञा पुं० [सं०] शब्द का प्रथमाक्षर । छद का प्रारभ । गौतम के न्यायसूत्र में सोलह पदार्थ कहे गए हैं जिनके नाम ये हैं-प्रमाण, प्रमेय, सशय, प्रयोजन, दृष्टात, मिद्धात, अवयव, पदादिका-सज्ञा पुं० [ स० पदातिक ] पैदल सेना । उ०-प्रभु कर तकं, निर्णय, वाद, जल्प, वितडा, हेत्वाभास, छल, जाति मोर सेन पदादिका बालक राज समाज ।-तुलसी (शब्द॰) । निग्रहस्थान। नैयायिको के अनुसार विचार के जितने विषय पदाधिकारी-सशा पु० [सं० पदाधिकारिन् ] वह जो किसी पद पर हैं वे सब इन्ही सोलह पदार्थों के अतर्गत हैं। विशेष- नियुक्त हो । पोहदेदार । अफसर । दे० 'न्याय' । साख्यदर्शन मे सम्या मे, पुरुप, प्रकृति और महत् पदाध्ययन-सञ्चा पुं० [सं०] पदपाठ के अनुसार वेद का पठन । प्रादि उमके विकारो को लेकर २५ पदार्थ हैं । दे० 'सास्य' । पदाना-क्रि० स० [हिं० पादना का प्रारूप]१ पादने का काम वेदात दर्शन के अनुसार प्रात्मा और अनात्मा ये ही दो पदार्थ दूसरे से कराना। २. बहुत अधिक दिक करना । तग हैं। दे० 'वेदात'। करना । छकाना । जैसे,—क्यो उसे बार वार पदाते हो। इसके अतिरिक्त और भी अनेक विद्वानो और साप्रदायिकों ने पदानुग-मञ्चा पु० [सं०] वह जो किसी का अनुगमन करता हो । अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार अलग अलग पदार्य माने अनुकरण करनेवाला । अनुयायी । माथी। हैं। जैसे 'रामानुजाचार्य के मत से चित्, प्रचित् और पदानुराग-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ भृत्य। सेवक । २ सेना । ईश्वर, शैव दर्शन के अनुसार पति, पशु और पाश ( यहाँ फौज [को०। पति का तालयं शिव, पशु का जीवात्मा और पाश का पदानुशासन-प्रशा पुं० [स०] पदो का अनुशासन करनेवाला शास्ल । मल, फर्म माया और रोघ शक्ति है ) । जैन दर्शनों मे शब्दानुशासन । शब्दशाल । व्याकरण । मो०] । भी पदार्थ माने गए हैं परतु उनकी संख्या मादि के सवध पदानुस्वार-सज्ञा पुं० [स० ] साम का एक भेद । एकार का में बहुत मतभेद है। कोई दो पदार्य मानता है, कोई तीन साम (को०] । कोई पांच, कोई मात और कोई नौ। पदान्ज-सज्ञा पुं० । [म.] चरणकमल । पदकमल । ३ पुराणानुसार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । पदायता-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म०] पदत्राण । जूता [को०] । ४ वैद्यक में भावप्रकाश के अनुसार रस, गुण, वीर्य, विपाक और शक्ति । ५ चीज । वस्तु । पदार-सज्ञा पुं० [सं० ] पैरो की धूल । उ०-पारद होत महारद पारस पारद पुण्य पदारन हूँ मे। देव (शब्द०)। २ नाव । पदार्थवाद-राग पुं० [न०] वह वाद या सिद्धात जिसमे पदार्थ, नौका (को०) । ३ पैर का ऊपरी हिस्सा (को॰) । विशेषत भौतिक पदार्थों को ही सब कुछ माना जाता हो और पात्मा अथवा ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार न पदारथ-सशा पुं० [ स० पदार्थ ] दे० 'पदार्थ'। उ०—जानिकर होता हो। एहने सोहागिनि सजनि गे पामोल पदारथ चारि । -विद्या- पति, पृ० १८०। पदार्थवादी-पज्ञा पुं॰ [ मे० पदार्थवादिन् ] वह जो प्रात्मा या ईश्वर प्रादि का अस्तित्व न मानकर केवल भौतिक पदार्थों को ही पदारविंद-नशा पुं० [सं० पदारविन्द ] दे० 'पदान्ज' । सब कुछ मानता हो। पदाळ-सज्ञा पुं० [सं०] वह जल जो किसी अतिथि या पूज्य को पदार्थविज्ञान-सा पुं० [ स०] वह विद्या जिसके द्वारा भौतिक पैर धोने के लिये दिया जाय । पदार्थो मौर व्यापारो का ज्ञान हो । विज्ञानशास्त्र । पदार्थ-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ पद का अर्थ । शब्द का विषय । वह पदार्थविद्या-सज्ञा सी० [सं०] वह विद्या जिसमें विशिष्ट सज्ञामो जिसका कोई नाम हो और जिसका ज्ञान प्राप्त किया जा सके । द्वारा सूचित पदार्थों का तत्व बतलाया गया हो। जैसे, २ उन विषयो में कोई विपय जिनका किसी दर्शन में प्रति- वैशेपिक । पादन हो और जिनके सवध में यह माना जाता हो कि उनके पदार्पण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ किसी स्थान मे पैर रखने जाने की द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है। क्रिया । २ शुभागमन । मागमन । विशेष-वैशेपिक दर्शन के अनुसार द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेप-इस शब्द का प्रयोग प्राय प्रतिष्ठित व्यक्तियो के विशेष और समवाय ये छह पदार्थ, हैं और इन्हीं छह पदार्थों सवध में ही होता है । जैसे,—श्रीमान् के पदार्पण करते ही का उसमे निरूपण है। कुल चोजें इन्हीं छह पदार्थों के सब लोग उठ खड़े हुए। अतर्गत मानी गई हैं। ये छह 'भाव' पदार्थ हैं और 'भाव' की विद्यमानता में 'प्रभाव' का होना भी स्वाभाविक है। पदालिक-सशा पु० [म.] चरण का ऊपर का भाग [को०] । प्रत नवीन वैशेपिको ने इन सव पदार्थों के विपरीत एक नया पदावनत-वि० [ स०] १ जो पैरो पर झुका हो। २ जो प्रणाम और सातवाँ पदार्थ 'प्रभाव' भी मान लिया है। इसके कर रहा हो । ३ नम्र । विनीत । अतिरिक्त कुछ और लोगो ने 'तम' अथवा अधकार को भी पदावली-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ शब्दो या वाक्यो की श्रेणी । २ एक पदार्थ माना है। परतु अघकार वास्तव में प्रकाश का भजनो का संग्रह । पदों का सग्रह ।