पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/९६

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पदाश्रित २८०५ पद्म पदाश्रित-वि० [सं०] १ जिसने पैरो मे आश्रय लिया हो । शरण है । इसकी लपाडी मजबूत और फुछ लाली लिए सफेद रंग मे पाया हुा । २ जो पाश्रय मे रहता हो । की होती है। पदास-राशा स्त्री० [हिं० पादना+थास (प्रत्य॰)] पादने का भाव । पद्-सशा पुं० [म०] १ पद । पैर । २ पाद । अश । चतुर्थीग [२०] 1 २. पादने की प्रवृत्ति । पद्ग-सज्ञा पुं० [सं०] पैदल सैनिक । प्यादा । सिपाही (फो०) । पदासन-सज्ञा पुं॰ [सं०] पादपीठ । चरणपीठ [को०] । पदू-मशा पुं० [हिं० पाद ] ६० 'पदोडा'। पदासा-शा पुं० [हिं० पटास ] वह जिसकी पादने की इच्छा या पद्धटिका-राम पुं० [सं०] एक मातृक छद जिसके प्रत्येक चरण प्रवृत्ति हो। मे ११ मात्राएँ होती हैं और अंत में जगण होता है । जैगे,-- पदासोन-वि० [ म० ] किसी विशेष पद पर प्रतिष्ठित (को०] । श्री कृष्णचद्र अरविंद नैन । धरि अधर वजात मधुर वैन । पदिक'--सशा पु[सं०] १ पैदल सेना । पदाति सेना । २ पैर का इसी को पद्धरि वा 'पज्झटिका' भी कहते हैं। अगला भाग । ३ पैदल चलनेवाला व्यक्ति । पद्धढ़ी-समा पी० [म पर टिका ] दे० 'पद्धटिका'। पदिक+२-सरा पुं० [सं० पटक ] १ गले में पहनने का वह पद्धति-संज्ञा स्त्री॰ [ म०] १ राह । पथ । मार्ग । सडक । २ गहना जिसपर किसी देवता आदि के चरण अकित हो । पक्ति । कतार । ३ रीति । रस्म । ग्विाज । परिपाटी। २ जुगनू नाम का गले में पहनने का गहना। ३ हीरा। चाल । ४ वह पुस्तक जिसमे किमी प्रकार प्रया या कार्य- ४ रन । प्रणाली लिखी हो। कर्म या सस्कारविधि की पोथी। जैसे, यौ०-पदिकहार = रत्नहार। मणिमाल । उ०-उर श्रीवत्म विवाह पद्धति । ५ वह पुस्तक जिसमे किमी दूसरी पुग्नक रुचिर वनमाला । पदिकहार भूपन मनि जाला ।-मानस, का प्रथं या तात्पर्य समझाया जाय । ६ ढग । तरीका । ७ श१४७ । कार्यप्रणाली। विधिविधान । ८ उपनाम । अल्ल । जैगे, ५ दे० 'पदक'। त्रिपाठी, घोप, दत्त, वसु धादि । पदिफ-सजा पुं० [हिं० पदिक ] पदिक । हीरा। उ०-गुलिक्क पद्धती-सशा ग्मी० [सं०] 70 पद्धति (को॰) । कर्ण राजही। विसद्द हार साजही। पदिक्क सीस शोभय पद्धरि, पद्वरी-मज्ञा पु० [ म परिका ] दे० 'पद्धटिका' । रिपीस पु ज लोभय ।-प० रासो, पृ० १० । पद्धिम-नशा पुं० [म० पद् + हिम ] पैर की शीतलता। पाव ठढा पदो-यज्ञा पुं॰ [सं० पद ] पैदल । पदाति । प्यादा। होना (को०)। पदी-सञ्ज्ञा पी० [स०] पदो का समूह । जैसे, विपदी, चतुष्पदी, पद्वो-सा सी॰ [देश॰] सेल में किसी लडके का, जीतने पर, दान सप्तपदी आदि [को०] । लेने के लिये, हारनेवाले लडके की पीठ पर चढ़ना । पदु-सज्ञा पुं० [म० पद ] दे० 'पद' । क्रि० प्र०-देना। -लेना । पदुम-सज्ञा पुं॰ [सं० पद्म ] १ घोडो का एक चिह्न या लक्षण जो पद्म-गशा पुं० [म०] १ कमल का फूल या पीया। ३ मामुद्रिक के मोरवो के पास होता है । भारतवासी इसे दोष नही मानते, अनुसार पैर मे का एक विशेष प्राकार का चिह्न जो भाग्य- पर ईरान के लोग इसे दोप मानते हैं। २ दे० 'पद्म' । उ०. सूचक माना जाता है। ३ किसी स्तभ के सातवें भाग का यौं गुरुपद पदुम परागा । सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। नाम ( वास्तुविद्या ) । ४ विष्णु के एा प्रायुध का नाम । मानस, १११। ५ कुवेर को नौ निधियो मे से एक निधि । गले में पहनने पदुमिनि, पदुमिनी-राशा रखी० [ मे० पशिनी ] दे० 'पद्मिनी'। का एक प्रकार का गहना । ७ शरीर पर का सफेद दाग। उ.-हौं पदुमिनी मानसर केया । भवर मराल करहि निति ८, हाथी के मस्तक या तूट पर बने हुए नित्र विचित्र चित। सेवा।-पदमावत, पृ० ४५१ । ६ पदम या पदमाख वृक्ष । १० गांप के फन पर बने हुए पदेक-समा पुं० [सं० ] श्येन पक्षी । वाज [को॰] । चित्रविचित्र चिह्न । ११ एक ही फुग्नी पर बना तुपा, पदेन-क्रि० वि० [सं० पद शब्द के तृतीया एकवचन का रूप ] पद ही शिखर का पाठ हाथ चौडा घर ( वास्तुविद्या )। १५ पर प्रतिष्ठित होने से । मधिकार विशेष से [को०] । एक नाग का नाम । १३ सीमा। १८ पुपरमून। १५ गणित में सोलहवें स्थान की नपा (१०० नील ) नोदा पदोड़ा -सज्ञा पुं० [हिं० पाद+ोड़ा (प्रत्य॰)] १ जो बहुत प्रसार निली जाती है-१००,००,००,००,००,००,०००। पादता हो। अधिक पादनेवाला । २ फायर । डरपोक । १६ वौद्धो के मन मार एक नक्षत्र पा नाम। १७ ( फ्व.)। पुराणानुसार एक काबरा नाम । १८ तन के अनुसार पदोदक-नशा पुं० [10] १. वह जल जिससे पैर धोया गया हो। शरीर के भीनी भाग मा ए रल्पित “मन जो २. चरणामृत । सोने के रग या मोर बहुत ही प्रापमान माना गता। पदीक-राशा पुं० [देश॰] एक वृक्ष जो वरमा में अधिकता से होता १६ सोलह प्रकार के रतिवघो में से एन । २० बमोच गा