बटाऊ बटेरा' उ०-भए बटाल नेह तजि बाद बकति बेकाज । अव अलि भरी दृष्टि से जो मेरी मोर देखा था वह अबतक नहीं देत उराहनो उर उपजति प्रति लाज ।-विहारी (शब्द०)। भूलती। -भारतेंदु न, भा० १, पृ० २६४। २. वदमाश बटाऊ-संज्ञा पुं० [हिं० बाँटना] बटानेवाला। भाग लेनेवाला। व्यक्ति (को०)। हिस्सा लेनेवाला। बटुकभैरव-संज्ञा पुं॰ [ सं० ] भैरव का एक स्वरूप । बटाकल-वि० [हिं० बड़ाक ] बड़ा । ऊँचा। उ०-कौन बड़ी बटुरना-क्रि० अ० [सं० वतुल, प्रा. बद्दल, बद्दड़+हिं० ना वात त्रयी ताप के हरनहार राम के कटाक्ष ते बटाक पद पायो (प्रत्य०) ] १. सिमटना। फैला हुआ न रहना । सरककर है। हनुमान (शब्द०)। थोड़े स्थान मे होना । २. इकट्ठा होना । एकत्र होना । बटाना-क्रि० प्र० [ पू०हिं० पटाना (= बंद होना) ] बंद हो संयो.क्रि.-जाना। जाना । जारी न रहना । उ०-सात दिवस जल बरषि बटुरा-संज्ञा पुं० [ देशज ] दे० 'बटुगे'। उ०-मूग मोठ बटुरा वटान्यो भावत चल्यो ब्रजहि अश्रावत ।—सूर (शब्द०) । बहु ल्यावहु । राजमाष प्रो माष मंगावहु ।-५० रासो, बटालना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'विटारना' । पृ० १७॥ बटालियन-संज्ञा स्त्री॰ [अं० ] पैदल सेना का एक दल जिसमें बटुरी-संज्ञा स्त्री॰ [ देशज ] एक कदन्न । खेसारी । मोट । १००० जवान होते हैं। बटुला-संज्ञा पु० [सं० वतुल, प्रा० वट्ट ल] [स्त्री० बटुली ] चावल बटाली-संज्ञा स्मी० [ लश० ] बढ़इयों का एक औजार । रुखानी । दाल पकाने का चौडे मुह का बरतन । बड़ी बटलोई । बटिका-संज्ञा स्त्री० [सं० घटिका ] दे॰ 'वटी'। बटुवा- संज्ञा पुं० [सं० वतुल ] १. एक प्रकार की गोली थैली बटिया-संज्ञा स्त्री० [हिं० बटा ( = गोला)] १. छोटा गोला । जिसके भीतर कई खाने होते हैं। गोल मटोल टुकडा । जैसे, शालग्राम की वटिया । २. कोई विशेप-यह कपडे या चमडे की होती है और इसके मुंह पर वस्तु सिल पर रखकर रगड़ने या पीसने के लिये पत्थर का डोरे पिरोए रहते है जिन्हें खीचने से मुह खुलता और बद लंबोतरा गोल टुकड़ा । छोटा बट्टा । लोढ़िया । हो जाता है। इसे यात्रा में प्रायः साथ रखते हैं। क्योकि वटिया २-सज्ञा स्त्री० [हिं० बाट का अल्पा० ] पगडंडी । पतला इसके भीतर बहुत सी फुटकर चीजें (पान का सामान, मसाला रास्ता । उ०—(क) बटिया न चलत उवट देत पाय तजि पादि आ जाती हैं। अमृन विष ही फल खाय ।-गुलाल०, पृ० २० । (ख) सिर २. बड़ी बटलोई या देग । ३. दे० 'बटुग्रा' । घरे कलेक की रोटी ले कर में मट्ठा की मटकी । घर से बटेर-संज्ञा स्त्री॰ [ मं० वत्तक, प्रा० बटा ] तीतर या लावा की तरह जंगल की ओर चली होगी वटिया पर पग धरती।- की एक छोटी चिड़िया । मिट्टी०, पृ० ४४ । विशेष- इसका रंग तीतर का सा होता है पर यह उससे छोटी वटिया-संज्ञा स्त्रा० [हिं० वांट +इया (प्रत्य०) ] दे० 'बटाई' । होती है । इसका मांस बहुत पुष्ट समझा जाता है इससे लोग बटी'-पंञ्चा स्त्री० [सं० वटी] १. गोली । २. बड़ी नाम का पकवान । इसका शिकार करते हैं। लड़ाने के लिये शौकीन लोग इसे उ०-प्रोदन दुदल वटी वट व्यंजन पय पकवान अपारा । पालते भी हैं । यह चिड़िया हिंदुस्तान से लेकर अफगानिस्तान, रघुराज (शब्द०)। फारस और अरब तक पाई जाती है। ऋतु के अनुसार यह बटी-संज्ञा स्त्री० [सं० वाटी ] वाटिका । उपवन | बगीचा । स्थान भी बदलती है और प्रायः मुड में पाई जाती है। यह उ०-सूर्पनखा नाक कटी रामपद चिह्न पटी सोहै वैकुंठ की धूप में रहना नही पसंद नहीं करती, छाया ढूंढ़ती है । बटी सी पंचवटी है ।-रघुराज (शब्द०) । मुहा०-बटेर का जगाना = रात को बटेर के कान में आवाज वटु-संज्ञा पुं० सं०] दे० 'वटु'। उ०-(क) मुनि टु चारि संग देना । ( बटेरवाज)। बटेर का बह जाना = दाना न मिलने तव दीन्हे ।-मानस, २।१०६ । (ख) परि वटु रूप देखु त के कारण बटेर का दुबला हो जाना। बटेरों की पाली = जाई।-मानस, ४।१। बटेरों की लड़ाई। उ०-परसों तो नवाब साहब के यहाँ बटेरी की पाली है, महीनो से बटेर तैयार किए हैं। दो दो बटुवा'-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'घटुवा' । उ०-सिंगी सेल्ही भभूत और वटुमा साई स्वाग से न्यारा हो।-कवीर० श०, पृ०१६ । पजे तो कसा लें ।—फिसाना, भा० १, पृ० ३ । बटुआरे-वि० [हिं० वटना ] घटा हुमा । जैसे,—बटुपा सूत, बटेरबाज-संज्ञा पुं० [हिं० वटेर+फा० वाज़ ] बटेर पालने या लहानेवाला। बटुमा रस्सा। बटुआर-वि० [हिं० पाँटना ] सिल पादि पर पीसा हुमा । उ०- बटेरबाजी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बटेर + फ़ा. बाजी] बटेर पालने या लहाने का काम। कटुमा बटुआ मिला सुवासू । सोका धनवन भांति गरासू ।- जायसी (पाव्द०)। बटेरा-संज्ञा पुं० [हिं० पटाकटोरा । बटुक-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'वटुक' । उ०-हा! बटुक के धक्के बटेरा-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० वटेर ] तीतर पक्षी। उ०-गेहूँ में एक से गिरकर रोहिताश्व ने क्रोधभरी और रानी ने करुणा- बटेरा, कर उठता है विट विट वी-दीप०, पृ० १२७ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१२०
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