बन कपास बनजारा का बन कपास-संज्ञा सी० [हिं० बन+कपास ] पटसन की जाति का एक प्रकार का लंबा पौधा। विशेप-यह बुदेलखंड, अवध और राजपूताने में अधिकता से होती है । इसमें बहुत अधिक टहनियाँ होती हैं । कही कहीं इसमें कांटे भी पाए जाते हैं। इससे सफेद रंग का मजबूत रेशा निकलता है। बन कपासी-संज्ञा. सी० [हिं० बन+कपास ] एक प्रकार का पौधा जो साल के जंगलों में अधिकता से पाया जाता है। इसके रेशों से लकड़ी के गट्ठ बाँधने की रस्सियाँ बनती हैं। बनकर-संज्ञा पुं० [सं० वनकर ] १. एक प्रकार का अस्त्रसंहार । शत्रु के चलाए हुए हथियार को निष्फल करने की युक्ति । २. जंगल में होनेवाले पदार्थों अर्थात् लकड़ी, घास प्रादि की आमदनी । ३. सूर्य (डि०)। बनकल्ला-संज्ञा पुं० [हिं० बन+कल्ला] एक प्रकार जंगली पेड़। बनकस, बनकुस-संज्ञा पुं० [हिं० बन + कुश] एक प्रकार की घास जिसे बनकुस, बभनी, मोय और बाभर भी कहते हैं । इससे रस्सियां बनाई जाती हैं। बनकोरा-संज्ञा पुं० [ देश० ] लोनिया का साग । लोनी । वनखंड-संज्ञा पुं० [सं० वनखण्ड ] जंगल का कोई भाग । जंगली प्रदेश । उ०-पागे सड़क रक्षित बनखंड में घुसी।- किन्नर०, पृ० ५१ । बनखंडी'-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० बन+खंड (= टुकड़ा) ] बन का कोई भाग । २. छोटा सा वन । बनखडो-संज्ञा पुं० १. एक प्रसिद्ध महात्मा जो श्रीचंद जी के अनुयायी थे। सक्खर में 'साधुवेला' नामक इनका स्थान प्रसिद्ध है। २. वह जो वन में रहता हो । वन में रहनेवाला। जंगल में रहनेवाला व्यक्ति । उ०-उसी व्यथा से है परि- पीड़ित यह बनखंडी पाप ।—(शब्द॰) । वनखरा-संज्ञा पु० [हिं० वन + खरा (<संभवतः सं० खण्ड से १)] वह भूमि जिसमें पिछली फसल में कपास बोई गई हो। वनखोर-ज्ञा पुं॰ [देश॰] कौर नामक वृक्ष । विशेष दे० 'कौर' । बनगरी-संज्ञा स्त्री० [हिं०] एक मछली जिसे बांगुर और बंगुरी भी कहते है। चनगाय-संशा स्त्री हि० बन + गाय ] जंगली गाय । नीलगाय । गवय । बनगाव-सज्ञा पुं० [हिं० बन+फ़ा० गाव, हिं० गौ] १. एक प्रकार का बड़ा हिरन जिसे रोझ भी कहते हैं। २. एक प्रकार का तेंदू वृक्ष । बनघास-संज्ञा स्त्री० [हिं० वन+घास ] जंगली घास नाम- रहित घास या तृण । उ०-केहि गिनती महं गिनती जस बनघास । राम जपत भए तुलसी तुलसीदास । -तुलसी ग्रं०, पृ०२४। ७-१६ बनचर-संज्ञा पुं० [सं० वनचर ] १. जंगल में रहनेवाले पशु । वन्य पशु । २. वन में रहनेवाला मनुष्य । जंगली प्रादमी। उ०-राम सकल बनचर तब तोषे।-मानस, ११३७ । ३. जल में रहनेवाले जीव । जैसे, मछली, मगर प्रादि । घनचरी'-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की जंगली घास जिसकी पत्तियां ग्वार की पत्तियों की तरह होती हैं । बरो। वनचरी२-संज्ञा पुं० जंगली पशु । बनचारी-संज्ञा पुं० [सं० वनचारिन् ] १. बन में धूमनेवाला। उ० –हिंसारत निषाद तामस वपु पसू समान बनवारी । -तुलसी ग्रं०, पृ० ५४२ । २. वन में रहनेवाला व्यक्ति । ३. जंगली जानवर । ४. मछली, मगर, घड़ियाल, क्छुवा आदि जल मे रहने वाले जतु । बनचौर, बनचौंरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बन+सं० चमरी ] नेपाल के पहाड़ों मे रहनेवाली एक प्रकार की जगली गाय जिसकी पूछ की चंवर बनाई जाती है । सुग गाय । सुरभी। बनज-सज्ञा पुं० [ स० वनज ] १. कमल । उ०-जय रघुवंश बनज वन भानू ।-तुलसी (शब्द०)। २. जल में होनेवाले पदार्थ । जैसे, शंख, कमल, मछली प्रादि । यौ०-बनजबन = कमलवन । कमलसमूह । उ०-नृप समाज जनु तुहिन बनजबन मारेउ । -तुलसी ग्रं॰, पृ० ५३ । बनजर-रज्ञा पुं० [सं० वाणिज्य, प्रा० बणिज] वाणिज्य । व्यापार । व्यवसाय | रोजगार । यौ०-बनज व्यौपार = व्यापार । उ०-हमारे श्री ठाकुर जी बनज व्यापार करत नाहीं हैं, जो ऐसे लोगन को दिखाइए। दो सौ बावन०, भा० १, पृ० ३१६ । बनजना-क्रि० स० [हिं० बनज+ना (प्रत्य०) ] खरीदना । खरीद करना । उ०—कलाकद तजि वनजी खारी | पइया मनुषहुँ धूमि तुम्हारी ।-सुदर० न०, भा० १, पृ० ३२० । बनजर-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'बंजर'। बनजरिया -संज्ञा स्त्री० [हिं० घनजर + इया (प्रत्य॰)] बंजर- भूमि । उ०-वह तो न जाने कब , कृष्णार्पण लगी हुई बनजरिया है ।-तितली, पृ० ३७ । बनजात-संज्ञा पुं० [सं० वनजात ] कमल । उ०-बरन बरन विकसे बनजाता।—तुलसी (शब्द०)।. बनजारा-संज्ञा पु० [हिं० वनिज + हारा] [स्त्री० घनजारन, बनजारी] १. वह व्यक्ति जो बैलो पर अन्न लादकर बेचने के लिये एक देश से दूसरे देश को जाता है । टोड़ा लादनेवाला व्यक्ति । टँडैया । टॅडवरिया । बंजारा । उ०-सव ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलंगे वनजारा। नजीर (शब्द॰) । २. बनिया । व्यापारी। सौदागर । उ०—(क) चितउर गढ़ कर इक बनजारा । सिंहलदीप चला वैपारा ।-जायसी (शब्द०)। (ख) हठी मरहठी तामें राख्यो ना मवास कोऊ, छीने हथियार सबै डोले बनजारे से । -भूषण (शब्द॰) । .
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१३८
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