पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१३९

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बनजी ३३७८ बनना वनजी-संज्ञा पुं॰ [सं० वाणिज्य ] १. व्यापार । रोजगार । २. व्यापारी । रोजगार करनेवाला। धनजोटा-संज्ञा पु० [हिं० वनज+श्रोटा (प्रत्य॰)] व्यापारी । उ०-साह गुरू सुकदेव विराज चरनदास बनजोटा ।- चरण० बानी, पृ०६६ । बनज्योत्स्ना-संज्ञा स्त्री० [सं० घन + ज्योत्स्ना ] माधवी लता। बनडरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० वनड़ा ] एक राग । उ०-गावदि वनडरी वन नहि सूझ देहि सभनि पर्ह दीछा ।-संत. दरिया, पृ० १०६। वनड़ा-संज्ञा पुं० [ देश० बनरा । बना। दूल्हा । उ०-वनड़ा । सूप बनी, हतलेवे मिल हाथ ।-बाकी० ग्रं, भा० २, पृ० ५८। वनड़ा-संज्ञा पुं० [ देश०] बिलावल राग का एक भेद । यह राग झूभड़ा ताल पर गाया जाता है। पनड़ा जैत-मंझा पु० [ देश० ] एक शालक राग जो रूपक ताल पर बजता है। बनड़ा देवगरी-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक शालक राग जो एकताले पर वजाया जाता है। घनत-संज्ञा सी० [हिं० धनना+त (प्रत्य॰)] १. रचना । बना. वट । २. धनुकूलता। सामंजस्य । मेल । ३. मखमल वा किसी रेशमी कपड़े पर सलमे सितारे की बनी हुई बेल जिसके दोनों ओर हाशिया होता है । जिस वेल के एक ही पोर हाशिया होता है उसे चपरास कहते हैं। बनता-संज्ञा सी० [सं० वनिता] दे० 'वनिता'। उ०-बनता हरण बल वनवासी, लंका वणी लड़ाई ।-रघु० रू०, पृ० १६१। घनताई@-संशा खी० [हिं० वन+ताई (प्रत्य॰)] बन की'सघनता । बन की भयंकरता। वनतुरई-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० घन + तुरई ] वंवाल । वनतुलसा-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे॰ 'बनतुलसी'। उ०-घाट की सीढी तोड़ फोड़कर बनतुलसा उग भाई ।-ठंडा०, पृ० २० । वनतुलसी-संज्ञा स्त्री० [ सं० वन+तुलसी ] बबई नाम का पौधा जिसकी पनी और मंजरी तुलसी की सी होती है । वर्वरी । बनद-संज्ञा पुं० [सं० वनद ] बादल । मेघ । घनदाम -संज्ञा स्त्री० [सं० वनदाम ] वनमाला । पनदेव-संज्ञा पुं० [सं० वनदेव ] वन के अधिष्ठाता देवता । उ०- वनदेवी वनदेव उदारा ।-मानस, २०६६ । धनदेवी-सज्ञा स्त्री० [स० वनदेवी] किसी वन को अधिष्ठात्री होना । तैयार होना । रचा जाना । जैसे, सड़क बनना, मकान बनना, संदूक बनना । मुहा०-बना रहना = (१) जीता रहना । संसार में जीवित रहना । जैसे,—ईश्वर करे यह वालक बना रहे । (२) उपस्थित रहना। मौजूद रहना । ठहरा रहना । जैसे,—यह तो प्रापका घर ही है, जबतक चाहें आप बने रहें। २. किसी पदार्थ का ऐसे रूप मे प्राना जिसमें वह व्यवहार में पा सके । काम में प्राने योग्य होना । जसे,-रसोई बनना, रोटी बनना । ३. ठीक दशा या रूप में आना । जैसा चाहिए वैसा होना । जैसे, धनाज बनना, हजामत बनना। ४. किसी एक पदार्थ का रूप परिवर्तित करके दूसरा पदार्थ हो जाना। फेरफार या और वस्तुप्रों के मेल से एक वस्तु का दूसरी दस्तु के रूप में हो जाना । जैसे, चीनी से शर्बत बनना । ५. किसी दूसरे प्रकार का भाव या संबंध रखनेवाला हो जाना । जैसे, शत्रु का मित्र बनना। ६. कोई विशेष पद, मर्यादा या अधिकार प्राप्त करना। जैसे अध्यक्ष बनना, मंत्री बनना, निरीक्षक बनना । ७ प्रच्छी या उन्नत दशा में पहुंचना । धनीमानी हो जाना । जैसे, वे देखते देखते बन गए । ८. वसूल होना । प्राप्त होना । मिलना । जैसे,—अब इस पालमारी के पांच रुपए बन जायेंगे। ६. समाप्त होना । पूरा होना । जैसे, अब यह तसवीर बन गई। १०. माविष्कार होना । ईजाद होना । निकलना । जैसे,-प्राजकल कई नई तरह के टाइपराइटर बने हैं। ११. मरम्मत होना । दुरुस्त होना । जैसे,-उनके यहां घड़ियाँ भी बनती है और बाइसिकलें भी। १२. संभव होना । हो सकना । जैसे,—जिस तरह बने, यह काम प्राज ही कर डालो। उ०-बनै न घरनत बनी बराता ।-तुलसी (शब्द॰) । मुहा०---प्राणों पर या जान पर श्रा बनना = ऐसा संकट या कठिनता पड़ना जिसमें प्राण जाने का भय हो । १३ आपस में निभना। पटना । मित्रभाव होना । जैसे-आजकल उन लोगों में खूब बनती है । १४. अच्छा, सुदर या स्वादिष्ट होना। जैसे-रंगने से यह मकान बन गया। १५. सुयोग मिलना। सुअवसर मिलना । जैसे-जब दो आदमियों में लड़ाई होती है, तब तीसरे को ही बनती है। संयो॰ क्रि०--श्राना |--पड़ना । १६. स्वरूप धारण करना । जैसे,-थिएटर में वह बहुत अच्छा अफीमची बनता है। १७. मूर्ख ठहरना । उपहासास्पद होना । जैसे,-पाज तो तुम खूब बने। १८. अपने आपको अधिक योग्य, गभीर अथवा उच्च प्रमाणित करना । महत्व की ऐसी मुद्रा धारण करना जो वास्तविक न हो । जैसे,- वह छोकरा हम लोगो के सामने भी बनता है। संयो॰ क्रि०-जाना। मुहा०-बनकर अच्छी तरह । भली भांति । पूर्ण रूप से । उ.-मनमोहन सौ विछुरे इतही बनिकै न अवै दिन द्वै गए हैं। सखि वे हम वे तुम वेई वनो 4 कछू के कळू मन है गए हैं।-पद्माकर (शब्द॰) । देवी। बनधातु-संज्ञा स्त्री० [सं०] गेरू या मौर कोई रंगीन मिट्टी । उ०- बका विदारि चले ब्रज को हरि। सखा संग अानंद करत सव अंग अंग बनधातु चित्र करि ।-सूर (शब्द०)। वनना-कि० प्र० [सं० वर्णन, प्रा० वएणन (= चित्रित होना, रचा जाना)] १. सामग्री को उचित योजवा द्वारा प्रस्तुत