पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१५४

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वरती ३३६३ बरधी बरताव करते हैं । (ख) जिस भादमी का बरताव अच्छा न वरदवाना-क्रि० स० [हिं० वरदाना ] वरदाना का प्रेरणार्थक हो उसके पास किसी भले आदमी को जाना न चाहिए । रूप । बरदाने का काम दूसरे से फराना। विशेप दे० 'ज्यवहार'। वरदा'-मंज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दक्षिण भारत की एक तरह की गई । वरती'-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का पेड़ । वरदा-संज्ञा पुं॰ [ देशी बलद्द ] दे० 'वरधा। वरती-वि० [सं० वतिन, हिं० व्रती] जिसने उपवास किया हो । वरदार-संज्ञा पुं॰ [ तु० बर्दह ] दास । गुलाम [को०] । जिसने व्रत रखा हो। बरदाइ-वि० [सं० वरदानी ] वर देनेवाली । उ०—प्रये गवरि, वरती-संज्ञा स्त्री० [सं० वर्ति, हिं० बरवा ] दे० 'बत्ती' । ईस्वरि सब लायक । महामाइ वरदाइ सुभायक ।-नंद० गं०, बरतुल-वि० [सं० वतुल ] वृत्ताकार । गोला । वर्तुल । उ०- पृ० २६८। वस्तुल सुछम कपोल रसीली वामरा। किया तयारी बेह वरदाई-ज्ञा पु० [हिं०] पृथ्वीराज चौहान के मित्र और पृथ्वीराज दरपण काम रा। बाँकी ग्र०, भा०३, पृ० ३२ । रासो के रचयिता राजकवि चद की राधि । वरतुस-संज्ञा पुं० [ देश० ] वह खेत जिसमें पहले धान बोया गया वरदाना-क्रि० स० [हिं० बरधा (= पल) ] गो, भैस, बकरी, हो और फिर जोतकर ईख बोई जाय । प्रादि पशुपों का इनकी जाति के नर पशुओं से, संतान बरतेला-पंज्ञा स्त्री॰ [देश॰] जुलाहों की वह खूटी जो करघे की उत्पन्न करने के लिये संयोग कराना । जोड़ा खिलाना । जुफी दाहिनी पोर रहती है और जिसमें ताने को कसा रखने के खिलाना। लिये उसमें बंधी हुई प्रतिम रस्सी या 'जोते' का दूसरा सिरा सयो० कि०-डालना।—देना । "पिंडा' या 'हथेला' ( करघे के पीछे लगी हुई दूसरी खुटी ) बरदाना-क्रि० स० गो, भैस, बकरी, घोढ़ी प्रादि पणुप्रों का अपनी पीछे से घुमाकर लाया और बांधा जाता है । जाति के नरपशुपों से गर्भ रखाना । जोजा खाना । जुफी विशेप-यह खूटी करघे की दाहिनी ओर बुननेवाले के दाहिने खाना। हाथ के पास इसलिये रहती है जिसमें वह मावश्यकता- संयो० क्रि०-जाना । नुसार जोते ढीला करता रहे मोर उसके कारण माना पागे बरदानि, वरदानी-वि० [सं० वरदानी] प्रभीष्ट देनेवासा । उ.- बढता चले। जगजीवन कर जोरि कहत है, बहु दरस बरदानी ।-जग० वरतोरी-संज्ञा पुं० [हिं० वार + तोरमा ] यह फुसी या फोड़ा वानी, पु०३। बाल उखड़ने के कारण हो। उ०—(क) ता तन पेखियत घोर बरतोर मिसु फूटि फूटि निकसत है लोन राम राय को । वरदाफरोश-संधा ० [फा० पदंह, फ़रोश ] गुलाम बेचनेवाला । दापों को खरीदने पौर वेधनेवाला। -तुलसी (शब्द॰) । (ख) जनु छुइ गयउ पाफ बरतोरा। वरथ-सज्ञा पुं॰ [सं० व्रत, हिं० वरत ] दे० 'वत' । उ०—तीरप वरदाफरोशी-संशा मी० [फा॰ बदर फ़रोशी ] गुदाम बेचने का काम । - समान। करे असनान । नहिं नहिं हरि माम वरदाय-2 स्त्री० [हिं०] दे० 'बरदाई"। उ०-महामाय -दक्खिनी०, पृ०१६ ॥ बरदाय, सु संकर तुमरे नायक ।-नंद० म०, पृ० २०६ । वरद-संज्ञा पुं० [सं० वलीवर्द; देशी प्रा० बलद्द ] उ०-बरु बौराह छारा। बरदायक -वि० [सं० वर + दायक ] वर देनेवाला।-उ०-ब्रह्म विभूषन श्रसवारा। राम तें नाम बड वरदायक बरदानि ।-मानस, २३ । -मानस, १२९५। बरदार-वि० [फा०] १. ले जानेवाला । बहन फरवाना । सोने- वरदना-क्रि० अ० [हिं० वरद+ना (प्रत्य०) दे० 'बरदाना' । वाला । धारण करनेवाला। जैसे, पल्लम बरदार। ७०- वरदमानीg+-सज्ञा स्त्री० [सं० वर्ध (= काटना) ] फाट फरने. वाली एक तरह की तलवार । उ०-तह सु वरदमानी खड़ग वहु कनक छरी घरदार तित, मानि प्रभुहिं विनती फरी।- पिहानी हर वरदानी हेरि हँसे । -पद्माकर मं०, पृ० २८ । दीन ग्रं, पु०१०२। २. पालन करनेवाला । माननेयाला। जैसे, फरवरदार। वरद्वान'- संज्ञा पु० [सं० वर + दामन् ] कमखाव वुननेवालों के करघे की एक रस्सी जो पगिया में बंधी रहती है। 'नथिया' वरदाश्त-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] सहने की क्रिया या शव । सहन । भी इसी में बँधी रहती है। २. रस्सी। उ०-वरदवानी, बरदिया-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बलदिया। डेरा, कनात, पात्र, सामग्री, पाभूपण वस्त्र दोऊ भांति के, वरहिया@-संज्ञा पुं० [ देशी बलद्द+हिं० इया ] बैल । वृष । ७०- सिज्या और जो कद्दू वस्तू चाहिए ये सब पठवाए ।-दो सौ प्रथिराज खलन खदो जु खर यो दुब्बरो बरहिया ।-पृ. वावन०, भा० १, पृ० ११४ । रा०, ३०, पृ० ६७३। वरद्वान-संज्ञा पु० [फा० यादवान ] १. तेज हवा । (कहार)। वरधी-संज्ञा स्त्री० [हिं०] १. दे० 'बलदी'। २. बैलों का समूह २. हया । वायु । उ०-जैसे जहाज चले सागर में वरदवान जिसपर माल लादकर व्यापारी लोग एक जगह से दूसरी जगह वहे धीमी।-घट०, पृ० १६८। पाते जाते थे । उ०—(क) इक बनिजारा मलप जुवनियाँ बरथ वरद न्याल कपाल