पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१५५

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घरदुधा बरफीला दुसरे लगतु है जाड । राति बिराति चले तोरी वरदी, लूटि घरना -संज्ञा पुं० [सं० वरुण ] एक प्रकार का वृक्ष । लेइहि कोउ ठाढ ।-पलद०, भा० ३, पृ० ८४ । घरना-गंगा स्त्री० [स० वरणा ] वरुणा नदी। दे० 'वरुणा' -१ वरदुआ-संज्ञा पु० [ देश० ] बरमे की तरह का एक श्रीजार जिससे उ०-ससी सम जसी असी वरना में वसी पाप खसी हेतु लोहा छेदा जाता है। प्रसी ऐसी लसी वारानसी है। भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, बरदौरा-संज्ञा पुं० [ स० घरद + और (प्रत्य॰)] गौनों और पृ०२८१। बैलों के बांधने का स्थान । मवेशीखाना । गोशाला। बरना-प्रव्य. ( 50 वर्नइ ] पन्ट था । नहीं तो । दे० 'वरना। बरध, बरधा-संज्ञा पुं॰ [स० बलीवर्द] वैल । उ०-ौर वा तेली के बरनाल-सज्ञा पुं० [हिं० परनाला ] जहाज में वह परनाला या साथ एक बरष हतो।-दो सौ बावन, भा० १, पृ० ३०० । पानी निकालने का मार्ग जिसमें से उसका फालतू पानी निकलकर समुद्र मे गिरता है । (मश०) । बरधमुतान-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] वरधा या बैल के मूतने से बनी टेढ़ीमेढ़ी रेखा या पाकृति । घरनाला-संशा पु० [हिं० ] दे॰ 'परनाला' । (लश०)। बरधवाना-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'घरदवाना'। घरनी-संज्ञा स्त्री॰ [ स० वरणीय] वरणीया। कन्या । उ-(क) वरधाना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'बरदाना'। परिहार मिध जिम जेर कीन । वरनी विवाहि रस बसि घरधी-सज्ञा पु० [ देश० ] एक प्रकार का चमडा । प्रधीन ।-पृ० रा०, ११६७५ । (ख) वरनी जोग बरंन को वर भुल्ले करतार ।-पृ० रा०, २५३११० । बरन-संज्ञा पुं० [सं० वर्ण ] १. दे० 'वणं'। २. रंग । उ०- सुबरन घरन सुवास जुत, सरस दलनि सुकुमारि |–मतिराम वरनीय-सज्ञा स्त्री० [सं० वरणोया ] कन्या जिसका परिणय किया (शब्द०)। ३. हिंदू जाति के चार मुख्य वर्ग । उ०-प्रेम जाय । उ०-बरनीय प्रष्ट दुय लेय न्याहि । पृ० स०, १७११। दिवाने जो भए जात वरन गई छूट । सहजो जग बौरा क है लोग गए सब फूट ।-सहजो०, पृ० ४० । घरनेता-संशा सी० [हिं० वरना ( = वरण करना)+ ऐत बरनन-संज्ञा पु० [हिं० ] दे॰ 'वर्णन' । (प्रत्य॰)] विवाह की एक रस्म जो विवाहमुहूतं से कुछ पहले होती है। बरनना@-क्रि० स० [सं० वर्णन ] वर्णन करना । वयान करना । उ०-बरनों रघुबर बिमल जस जो दायक फल चारि।- विशेष—इसमें कन्या पक्ष के लोग वर पक्ष के लोगों को बुलाते है तुलसी (शब्द० )। पौर विवाहमंडप में उन्हें बैठाकर उनसे गणेश मादि का पूजन कराते हैं। वरनमाला-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० वर्णमाला ] दे॰ 'वर्णमाला' । उ०- जासु वरनमाला गुन खानि सकल जग जानत ।-प्रेमघन०, परपा-वि० [फा०] खड़ा हुमा । उठा हुआ । मचा हुपा । भा० २, पृ० ४१६ । विशेष—इस शब्द का प्रयोग प्रायः झगड़ा फसाद, 'पाफत, बरनर-सञ्ज्ञा पुं० [40] लंप का ऊपरी भाग जिसमें बत्ती लगाई कयामत, अप्रिय अशुभ बातों के लिये ही होता है। जाती है। वची इसी भाग में जलती है और इसी के ऊपर से बरफ-संज्ञा स्त्री॰ [फा० धर्फ ] दे० 'बर्फ' । होकर प्रकाश बाहर निकलता और फैलता है। वरफानी - वि० [फा० बर्फानो] वरफ से युक्त । बरफ का । बरफोला । बरना'-क्रि० स० [सं० वरण ] १. वर या वधू ग्रहण बरफी-संज्ञा स्त्री० [फा० बरफ़, बर्फी ] एक प्रकार की प्रसिद्ध करना । पति या पत्नी के रूप में अंगीकार करना । न्याहना। मिठाई। उ०-(क) जो एहि बरइ पमर सो होई । समर भूमि विशेष-यह मिठाई चीनी की चाशनी में गरी या पेठे के महीन तेहि जीत न कोई।-तुलसी (शब्द०)। (ख) मरे ते पपसरा टुकड़े, पोसा हुप्रा बदाम, पिस्ता या मुंग मादि मथवा खोवा भाइ ताको बरति, भाजि है देखि अब गेह नारी।-सूर० डालकर जमाई जाती है और पीछे से छोटे छोटे चौकोर (शब्द०)। २. कोई काम करने के लिये किसी को चुनना टुकड़ों के रूप में काट ली जाती है। इसकी जमावट पादि या ठीक करना । नियुक्त करना । उ०-बरे विप्र चहूँ प्रायः वरफ की तरह होती है। इसीलिये यह बरफी वेद र रबिकुल गुरु ज्ञानी ।—तुलसी (शब्द०)। ३. कहलाती है। दान देना। बरफीदार कनारी-संज्ञा स्त्री० [फा० परफीदार+देश० कनारी] बरना २-क्रि० प्र० [हिं० वलना ] दे० 'जलना'। उ०-मौंघाई वह स्थान जहाँ सफेद रंग के कोटे अधिकता से मार्ग में सीसी सुलखि विरह वरति बिललात । बीचहि सूखि गुलाव पड़ते हों। ( पालकी के कहारों की बोली)। गौ छीटो छुई न गात ।-विहारी (शब्द॰) । बरफीसंदेस-संज्ञा सं० [ फा बरफी + बँग० संदेश ] बरफी की तरह घरना-क्रि० स० [ स० वलन (= घुमना)] दे॰ 'बटना' । की एक प्रकार की बंगला मिठाई जो छेने से तैयार की घरना-क्रि० स० [सं० वारण, हिं• वारना ] मना करना । जाती है। रोकना । (लश०)। बरफोला-वि० [फा० वीलह] चरफ से युक्त । हिमयुक्त । हिमावृत ।