पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१६०

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घराना ३३६६ बरास छौटना । उ०—(क) मासिष पायसु पाइ कपि सीय चरन उ०-वडो तुम्हार वरामद हूँ को लिखि कोनो है साफ ।- सिर नाइ । तुलसी रावन बाग फल खात बराइ बराइ ।- सूर (शब्द०)। तुलसी ग्रं॰, पृ० ८७ । (ख) यादव बीर बराई इक हलधर इक बरामदगी- संज्ञा स्त्री॰ [फा०] वरामद होना। प्राप्ति । मिलना । प्रापै प्रोर । —सूर (शब्द०)। बरामदा -संज्ञा पुं० [फा० बरामदह ] १. मकानों में छाया हुआ वराना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'बालना' । (जलाना )। उ०- वह तंग और लंवा भाग जो मकान की सीमा के कुछ बाहर देवो गुण लियो नीके जल सो पछारि करि करी दिव्य वाती निकला रहता है और जो खंभों, रेलिंग या घुड़िया आदि के दई दिये में वराह के ।—प्रियादास (शब्द०)। आधार पर ठहरा हुआ होता है। बारजा । छज्जा । २. बराना-कि० अ० [सं० वारि ] १. सिंचाई का पानी एफ नाली मकान के आगे का वह स्थान जो ऊपर से छाया या पटा हो से दूसरी नाली में ले जाना । २ खेतों में पानी देना । पर सामने या तीनों प्रोर खुला हो । दालान । अोसारा । बराबर-वि० [फा० बर ? ] १. मान, मात्रा, संख्या, गुण, बरामीटर-संज्ञा पु० [अ० बैरोमीटर ] ३० 'वैरोमीटर' । महत्व, मूल्य, प्रादि के विचार से समान । फिसी के मुकाविले बराम्हण, बराम्हना-संज्ञा पु० [सं० ब्राह्मण ] दे० 'ग्राह्मण' । में उससे न कम न अधिक । तुल्य । एक सा। जैसे,—(क) उ०-प्राए माट बराम्हन लगन धराइन हो । कबीर०, चौड़ाई में दोनों कपड़े बराबर हैं। (ख) सिर के सब बाल श, भा०:४, पृ०२। वरावर कर दो। (ग) एक रुपया चार पवनियों के बराबर बराय'-प्रव्य० [फा० ] वास्ते। लिये | निमित्त । जैसे, घराय है। (घ) इसके चार बराबर हिस्से कर दो। २. समान पद खुराक, बराय नाम । या मर्यादावाला। जैसे,—(क) यहाँ सब पादमी बराबर घराय-संज्ञा स्त्री० [ देश ] दे० 'बड़ाई'। ७०-तुका मिलना हैं। (ख) तुम्हारे बराबर झूठा हूँढ़ने से न मिलेगा। तो भला मन सूमन मिल जाय । ऊपर ऊपर माटी घसनि मुहा०-बराबर का = (१) बराबरी करनेवाला। समान । उनकी कोन बराय ।-दविखनी०, पृ० १०६ । जैसे,-बराबर का लड़का है, उसे मार भी तो नही सकते । (२) सामने या बगल का। बराबर छूटना = बिना हार जीत बरायन-संज्ञा पुं॰ [सं० वर + आयन (प्रत्य॰)] वह लोहे का के निर्णय के कुश्ती या वाजी समाप्त होना । घरावर से छल्ला जो व्याह के समय दूल्हे के हाथ में पहनाया जाता है। इसमें रत्नों के स्थान में गुजा लगे रहते हैं । उ-विहँसत निकलना = समीप से समान भाव से आगे बढ़ना । ३. जिसकी सतह उँची नीची न हो। जो खुरखुग न हो। आव लोहारिनि हाथ वरायन हो।—तुलसी (शब्द०)। २. विवाह के अवसर पर मंडप में स्थापित कलश । समतल। मुहा०-बराबर करना समाप्त कर देना। पंत कर देना।न बरार-संज्ञा पुं॰ [देश०] १. एक प्रकार का जंगली जानवर । २. रहने देना । जैसे,—उन्होंने दो ही चार बरस में अपने बड़ों वह चंदा जो गांवों में घर पीछे लिया जाता है। ३. मध्य- की सब कमाई बराबर कर दा। प्रदेश का एक भाग जो अब महाराष्ट्र का पंग है। ४. जैसा चाहिए वैसा । ठीक । बरार-वि० [फा०] [ संज्ञा बरारी ] पूर्ण करनेवाला। २. लाने बरावर-क्रि० वि० १. लगातार | निरंतर। बिना रुके हुए । अथवा ले जानेवाला । (समासांत मे) । जैसे, बराबर भागे बढ़ते जाना। २. एक ही पंक्ति में । बरारक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] हीरा। (डि०)। एक साथ । जैसे, सब सिपाही बराबर चलते हैं। ३. साथ । बरारा+-वि० [ देश०; या हिं० बड़ा+रा (प्रत्य०) ] [ वि० खी० (क्व०) । जैसे,-हमारे बराबर रहना । ४. सदा । हमेशा । बरारी ] वड़ा । जबरदस्त । महान् । उ०—(क) खट तीसू जैसे,-माप तो वरावर यही कहा करते हैं । वंस तणां खितधारी विग्रह रूप घरोरा है।-रघु० रू०, यौ०-बराबर बरावर = (१) पास पास । साथ साथ । (२) पृ० २७७ । (ख) पास पास अमराय बरारी। जहं लग भाषा प्राधा । समान समान। फूल तिती फुलवारी।-नंद० ग्रं॰, पृ० ११६ । बरावरी-संशा स्त्री० [हिं० बराबर + ई (प्रत्य॰)] १. बराबर होने बरारी-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] संपूर्ण जाति की एक रागिनी जो की क्रिया या भाव । समानता। तुल्यता। २. सादृश्य । दोपहर के समय गाई जाती है। कोई फोई इसे भैरव राग ३. मुकाबिला । सामना । की रागिनी मानते हैं। बरामद'-वि० [ फा०] १. जो बाहर निकला हुपा हो। वाहर बरारीश्याम–संज्ञा पुं॰ [सं० ] संपूर्ण जाति का एक संकर राग प्राया हुअा । सामने पाया हुआ। २. खोई हुई, चोरी गई जिसमे सब शुद्ध स्वर लगते हैं । हुई या न मिलती हुई वस्तु जो कही से निकाली जाय । जैसे, वराव-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० वराना+श्राव (प्रत्य॰)] वराना का भाव । चोरी का माल बरामद करना । बचाव । परहेज । निवारण । उ०—मानहुँ विवि खंजन लर क्रि० प्र०—करना ।—होना । शुक करत बराव । -विश्राम (शब्द०)। वरामदर-संज्ञा स्त्री० १. वह जमीन जो नदी के हट जाने से निकल बरास-संज्ञा पुं॰ [स० पोतास?] एक प्रकार का कपूर जो घाई हो। दियारा । गंगवरार । २. निकासी। प्रामदनी । भीमसेनी कपूर भी कहलाता है। विशेष-दे० 'कपूर'।