पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१६४

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बर्फी करना। बर्क १- संज्ञा स्त्री० [अ० बर्क ] बिजली । विद्युत् । विशेष-गिरते समय, यह प्रायः रुई की तरह मुलायम होती बर-वि० १. तेज | 'चालाक । २. चट उपस्थित होनेवाला। पूर्ण है और जमीन पर गिरकर अधिक ठंढक के कारण जम जाती रूप से अभ्यस्त । है। जमने से पहले यदि चाहे तो इसे एकत्र करके ठोस गोले प्रादि के रूप में भी बना सकते हैं। जमने पर इसका रंग बर्कत--तज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'वरकत' । बिलकुल सफेद हो जाता है। ऊँचे पहाड़ो पादि पर प्रायः बकर'-सज्ञा पु० [स० ] १. बकरा । २. कोई भी पशु । ३. बधिर सरदी के दिनो मे यह अधिकता से गिरती है पोर जमीन व्यक्ति । बहरा । ४. क्रीड़ा । परिहास [को०) | पर इसकी छोटी मोटी तहें जम जाती हैं जिन्हें पीछे से बर्की-वि० [फा० बर्क + ई (प्रत्य०) ] विद्युत् सबंधी। बिजली फावड़े प्रादि से खोदकर हटाना पड़ता है। का [को०] । क्रि० प्र०-गलना।-गिरना,-पदना । बर्खास्त- वि० [हिं० ] दे० 'बरखास्त' । २. बहुत अधिक ठंढक के कारण जमा हुमा पानी जो ठोस भोर वर्ग-सज्ञा पुं० [ फा०] १. युद्धास्त्र । २. दल । पत्ता (को०) । पारदर्शी होता है और जो माघात पहुँचने पर टुको टुकड़े व -संज्ञा पुं० [हिं०] [ स्त्री० अल्पा० बी ] दे० 'बरछा' । हो जाता है। बजा-वि० [सं० वर्य ] दे० 'वयं'। उ० -रामकथा मुनि पर्ज विशेष-जिस समय जल में तापमान की ४ वंश की गरमी वखानी । सुनी महेश परम सुख मानी।—तुलसी (शब्द॰) । रह जाती है तब वह जमने लगता है और ज्यों ज्यों जमता वर्जना-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'बरजना' । जाता है त्यो त्यों फैलकर कुछ अधिक स्थान घेरने लगता वर्णन-सज्ञा पु० [सं० वर्णन ] दे० 'वर्णन' । है, यहाँ तक कि जब वह बिल्कुल जम जाता है और उसमें बणना-क्रि० स० [हिं० वर्णन ] वर्णन करना । बयान तापमान ० (शून्ग) अंश जाता तब उसके आकार में प्रायः १/११ वें मश की वृद्धि हो जाती है । जबतक उसका ताप, मान घटकर ४° तक नहीं पहुंच जाता तबतक तो वह वर्णना-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० वर्णना ] दे० 'वर्णना' । सिमटता और नीचे बैठता है पर जब उसका तापमान ४० वत:'-संज्ञा पुं॰ [सं॰ व्रत ] दे० 'व्रत' । से भी कम होने लगता है तब वह फैलकर हलका होने लगता वर्त:..--सज्ञा पु० [हिं० घरेत ] दे० 'वरेता'। उ०-मुक्ति पंथ है और अंत में मास पास के पानी पर तैरने लगता है। की प्रोर मंसूबे सू चला । तैसे बतं पे जाय जो नठ भूला साधारणत: जल में तैरती हुई बर्फ का ६/१. वा भाग पानी कला।-चरण वानी पृ० ६५ । के भीतर और ३० भाग पानी के ऊपर होता है । प्राय: जाड़े वर्तन-संज्ञा पु० [हिं०] दे० 'बरतन' । के दिनों में प्रथवा भौर किसी प्रकार सरदी बढ़ने के कारण वर्तना-क्रि० सं० [सं० वर्तन (=वृत्ति, व्यवहार) ] १. आचरण समुद्र आदि का बहुत सा बल प्राकृतिक रूप से जमकर बर्फ बन जाता है। करना | व्यवहार करना । जैसे, मित्रता वर्तना। २. व्यव- हार में लाना । काम में लाना । इस्तेमाल करना । जैसे, क्रि० प्र०-गलना । -जमना । यह बरतन नया है। किसी ने इसे बर्ता नही है। उ०-इनसे - मुहा०-बर्फ होना बहुत ठंढा होना । जैसे,—मरने से एक प्रजा को रात दिन वतंना पड़ता है। -प्रेमघन०, भा० २, घटे पहले उनका सारा शरीर बर्फ हो गया। पृ०२८२। ३. मशीनो प्रादि की सहायता अथवा और कृत्रिम उपायों से बर्ताव--संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बरताव' । ठढक पहुँचाकर जमाया हुपा पानी जो साधारणत: बाजारों । “में बिकता है और जिससे गर्मी के दिनों में पीने के लिये जल वर्द-संज्ञा पुं० [सं० बलद ] बैल । बृष । आदि ठढा करते हैं। बर्दाश्त-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'बरदाश्त' । क्रि० प्र०-गलना।-गलाना ।-जमना ।-अमाना । वर्न-संज्ञा पुं० [सं० वर्ण ] दे० 'वर्ण' । ५. दे० 'पोला। यौ०-वर्नाश्रम = दे० 'वश्रिम'। उ०-बनाश्रम में निष्ट बर्फ-वि० १. अत्यत शीतल । बरफ की तरह ठंढा । २. बर्फ की इष्ट रत सिष्ट प्रदूषित ।-श्यामा० (भू०) पृ० ४ । तरह श्वेत । एक दम सफेद । बनना-क्रि० स० [हिं० ] वर्णन करना । घनेर-संज्ञा पु० [ अं० ] लैप का यह अंश जिसमे वत्ती लगी रहती बर्फानी-वि० [फा० बानी ] बर्फ भरी । प्रत्यंत शीतल । २० मालूम होता था जैसे शीतकाल की बर्फानी हवा ने मेरे भीतर है और आवश्यकतानुसार कमवेशी की जा सकती है। घर कर लिया हो।-संन्यासी, पृ० २६० । वर्फ-संज्ञा स्त्री० फा० वर्फ़ ] १. हवा मे मिली हुई भाप अत्यंत सूक्ष्म अणुओं की तह जो वातावरण की ठंढक के कारण बर्फिस्तान-पला पुं० [फा० बर्फ़ + स्तान; तुल० सं० स्थान ] वह. स्थान जहां बर्फ ही बर्फ हो । बर्फ का मैदान या पहाड़। माकाश में बनती और भारी होने के कारण जमीन पर बर्फी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० बर्फ़ +ई ] एक मिठाई जो चाशनी के : गिरती है । पाला। हिम । तुषार ।