पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१९४

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बाँटनार ३४५३ बाँधना लगाना । विभाग करना । जैसे, उन्होंने अपनी सारी मुहा०-चाँदी का बेटा वा जना = (१) परम अधीन । अत्यंत जायदाद अपने दोनों लड़कों और तीनों भाइयों में बाट दी। आज्ञाकारी । (२) तुच्छ । हीन । (३) वर्णसंकर । दोगला । ३. थोडा थोड़ा सबको देना। वितरण करना । जैसे,—चने थाँदू-संज्ञा पुं० [ सं० बन्दी ] बंधुना। कैदी । उ-पाखन फिर बाँटना, पैसे वांटना। फिर परा सो फाँहु । उड़ि न सकहिं उरझे, भए बांदू । संयो० कि०-डालना ।- देना । -जायसी (शब्द०)। बाँटना-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'बाटना' । बाँध-संज्ञा पुं० [हिं० बाँधना ( = रोकना) ] नदी या जलाशय बाँटबॅट-संज्ञा स्त्री० [हिं० वाट+यूँट (द्विशक्तिमूल अनु०) ] दे० मादि के किनारे मिट्टी, पत्थर शादि का बनाया हुअा धुस्स। 'बांटचूट'। यह पानी की बाढ़ मादि को रोकने के लिये बनाया जाता बाँटा-संज्ञा पुं० [हिं० बाँटना] १. बांटने की क्रिया या भाव । है। धुस्स । बंद । उ०-खेत फटिक जस लागै गढ़ा । बांध २. भाग। हिस्सा । ३. गाने बजानेवालों प्रादि का वह इनाम उठाय चहूँ गढ़ मढ़ा ।—जायसी (शब्द॰) । जो वे धापस मे बाँट लेते हैं। हर एक के हिस्से का मिला कि० प्र०-बाँधना । हुमा पुरस्कार। बाँधना-क्रि० स० [सं० वन्धन] १. रस्सी, तागे, कपड़े आदि की क्रि० प्र०-देना :--पाना ।- लगना |- लगाना ।-लेना । सहायता से किसी पदार्थ को बंधन में करना । रस्सी. डोरे आदि बाँड - संज्ञा पुं॰ [ देश० ] दो नदियों के संगम के वीच की भूमि जो की लपेट में इस प्रकार दवा रखना कि कहीं इधर उधर न हो सके । कसने या जकड़ने के लिये किसी चीज के घेरे में लाकर वर्षा में नदियों के बढ़ने से डूब जाती है और फिर कुछ दिनों गांठ देना । जैसे, हाथ पैर बांधना। घोडा बांधना । २. मे निकल पाती है। इस भूमि पर खेती अच्छी होती है । रस्सी, तागा आदि किमी वस्तु में लपेटकर दृढ करना जिससे बाँड़-वि० [सं० वएट ] जिसके पूछ न हो। वह वस्तु प्रथवा रस्सी या तागा इधर उधर हट या सरक न बाँडो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] १. विना पूछ की गाय । २. कोई मादा सके । कसने या जकड़ने के लिये रस्सी आदि लपेटकर उसमें पशु जिसकी पूछ न हो या कट गई हो। ३. छोटी लाठी। गांठ लगाना। जैसे, रस्सी बांधना। जंजीर बांधना। ३. छड़ी। ४. दो नदियों के संगम के बीच का भूभाग । पौड़ । कपड़े आदि के कोनों को चारों पोर से बटोरकर और गांठ उ०-वाड़ी जो नदी को नाम जै की सीम कीनी।- देकर मिलाना जिसमें संपुट सा बन जाय । जैसे, गठरी शिखर०, पृ०५। बांधना। ४. चारों ओर से बटोरे या लपेटे हुए कपड़े बाँडीबाज-संज्ञा पुं० [हिं० बाँदी+फा० बाज ] १. लाठीवाज । के भीतर करना। जैसे,—यह घोती गठरी में बोध लकड़ी से लड़नेवाला। २. उपद्रवी । शरारती । लो। ५. कैद करना। पकड़कर बंद करना । ६. नियम, बाँदा-संज्ञा पुं० [फा० बंदह ] [ सी० बाँदी ] सेवक । दास । प्रभाव, अधिकार, प्रतिज्ञा या शपथ प्रादि की सहायता से उ.-जहाँगीर वह चिस्ती निहकलंक जस चाँद । वै मखदूम मर्यादित रखना। ऐसा प्रबंध या निश्चय कर देना जिससे जगत के ही वहि घर को बांद ।-जायसी (शब्द०)। किसी को किसी विशेष प्रकार से व्यवहार करना पड़े। बॉदना -क्रि० स० [देश॰] केंद्रित करना। बांधना। उ०-कोई पाबंद करना । जैसे.-(क) प्रापको तो उन्होंने वचन नाक के ऊपर ज्यो, नित बांदते नजर क्यों। दिसते ही जोत लेकर बांध लिया है। (ख) सब लोग एक ही नियम से फर यों, नित हसत रह तूं मीरा-दक्खिनी०, पृ० ११० । बाँध लिए गए। ७. मंत्र 'तंत्र प्रादि की सहायता से अथवा और किसी प्रकार प्रभाव, शक्ति या गति आदि बाँदरी-सज्ञा पुं॰ [ सं० वानर ] दे० 'बंदर'। उ०-बांदर मैं वाँदर को रोकना। जैसे,—(क) वह देखते ही सांप को वाध भयो मच्छ माहि पुनि मच्छ । सुदर गाइनि मैं गऊ बच्छनि देते हैं, उसे अपनी जगह से आगे बढ़ने ही नहीं देते । माहै बच्छ ।-सुदर० , भा०२, पृ० ७७॥ (ख) आजकल पानी नहीं वरसता मालूम पड़ता है कि मुहा०-बाँदर काटे = बंदर काटे अर्थात् बुरा हो । उ०-सुदर किसी ने बांध दिया है। ८. प्रेमपाश में बद्ध करना । जाइहि राजघर जोगिहि बाँदर काटु ।-जायसी , ६. नियत करना । मुकर्रर करना । ऐसा करना जिससे पृ०६५ कोई वस्तु किसी रूप में स्थिर रहे या कोई बात बाँदा-संज्ञा पुं० [सं० चन्दाक ] १. एक प्रकार की वनस्पति जो बरावर हुमा करे । जैसे, हद बांधना, महसूल बांधना, अन्य वृक्षों की शाखाओं पर उगकर पुष्ट होतो है । महीना बांधना। १०. पानी का बहाव रोकने के लिये वाघ पर्या०-तरुभुक् । शिखरी। वृक्षरुहा | गंधमादनी । वृक्षादनी । आदि बनाना । ११. पूर्ण प्रादि को हाथों से दबाकर पिंड श्यामा। के रूप में लाना । जैसे, लड्डू बांधना, गोली वांधना। १२. २. किसी वृक्ष पर उगी हुई कोई दूसरी वनस्पति । मकान प्रादि बनाना। जैसे, घर बांधना। १३. किसी बाँदी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० बंदह ] लौड़ी । दासी । विषय का, वर्णन पादि के लिये, ढांचा या स्थूल रूप तैयार ७-२३