पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१९७

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पा बाँसुली २४३६ एक सिरावास की गाँठ के कारण बंद रहता है। बद सिरे की २. वल । शायिन । भुजबल । उ०-मैन महीप सिंगार पुरी निज मोर सात स्वरो के लिये सात छेद होते हैं और दूसरी ओर वाह बसाई है मध्य ससी के |-- (शब्द॰) । ३. सहायक । बजाने के लिये एक विशेष प्रकार से तैयार किया हुप्रा छेद मददगार। होता है । उसी छेदवाले सिरे को मुह में लेकर फूकते हैं और मुहा०-याह टूटना = सहायक या रक्षक आदि का न रह स्वरोंयाले छेदो पर उंगलियां रखकर उन्हे बंद कर देते हैं । जाना । शक्तिहीन होना। जब जो स्वर निकालना होता है तब उस स्वरवाले छेद पर ४. भरोसा । प्रासरा । सहारा । शरण । उ०-(झ) तेगे की उंगली उठा लेते है। बाह बसत विसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लिए रहै भारति वाँसुली-संज्ञा सी० [ हिं० बोस ] १ एक प्रकार की घास जो न काहु की।-तुलसी (शब्द॰) । (स) तिनकी न काम सके अंतर्वेद में होती है। चापि छाह । तुलसी जे बसें रघुबीर यांह । -तुलसी विशेप-फसल के लिये यह घास वडो ही हानिकारक होती (शब्द०)। ५. एक प्रकार की कसरत जो दो प्रादमी है; इसका नाश करना बहुत ही कठिन होता है । मिलकर करते हैं। २." 'बांसुरी'। विशेष-इसमें बारी बारी से हर एक प्रादमी अपनी वाह दूसरे घाँसुलीकंद-सज्ञा पुं॰ [ हिं० चाँसुली + सं० कन्द ] एक प्रकार का के कंधे पर रखता है और उसे अपनी बांह के जोर से वहां से जंगली सूग्न या जमीकंद जो गले मे बहुत अधिक लगता है हटाता है। इससे बाहों पर जोर पड़ता है और उममें बल और प्रायः इसी के कारण खाने के योग्य नहीं होता। पाता है। वाह-सज्ञा झो० [ स० वाहु ] १. कंधे से निकलकर दंड के रूप में ६. कुरते कमीज, थगे, कोट प्रादि मे लगा हुप्रा वह मोहरीदार गया हा अंग जिसके छोर पर हथेली या पंजा लगा होता टुकड़ा जिसमें बांह डाली जाती है । प्रास्तीन । जैसे,—इस है । भुजा । हाथ । वाहूं। कुरते की वाह छोटी हो गई है। मुहा०-पॉह गहना या पकड़ना = (१) किसी की सहायता पोहर २-सज्ञा ० दे० 'वाह' या 'बाही' । करने के लिये हाथ बढ़ाना । सहारा देना । हर तरह से बॉइतोड़-संश पुं० [हिं० ] कुश्ती का एक पेंच । मदद देने के लिये तैयार होना । अपनाना। उ०—बिन विशेप-इसमें जब गरदन पर जोड़ के दोनों हाथ आते हैं तब सतगुर वाचै नही, फिरि बूड़े भव माह । भवसागर के पास में, उन हाथों पर से अपना एक हाथ उलटकर उसकी जांघ में सतगुरु पकड़े वाह ।-कवीर सा० सं०, भा० १, पृ० ११ । पड़ा देते हैं और दूसरा हाथ उसकी वगल से ले जाकर गरदन (२) विवाह करना । पाणिग्रहण करना। शादी करना । वाह की छह लेना- शरण में माना | वाह के सहारे पर से घुमाते हुए उसकी पीठ पर ले जाते हैं । फिर उसे टांग पर मारकर गिरा देते हैं। रहना= पौरुष फा भरोसा करना। अपने बल विश्वास करना। उ०-है करम रेख मुठियो में ही । बेहतरी बाँहना'-क्रि० स० [सं० वपन ] वाहना। वोना । उ०-राम वाह के सहारे हैं ।-चुभते०, पृ० १० । वाह चढ़ाना = (१) नाम करि बोहड़ा, बांही बीज प्रघाड । अंति कालि सूका पड़े किसी कार्य के करने के लिये उद्यत होना। कोई काम तो निरफल कदे न जाइ।-जावीर न०, पृ० ५८ । करने के लिये तैयार होना । (२) लड़ने के लिये तैयार होना । बाँहना२-क्रि० स० [सं० वाहन (= चालन)] संबान करना। बाह दिखाना= हाथ की नाड़ी दिखाना। रोग का निदान चलाना । उ०-सतगुर लई फमाण करि, वांहण लागा तीर । कराना। उ०-वाबुल वैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई एक जु बाह्या प्रीति सू. भीतरि रह्या शरीर ।-नवीर गं०, । म्हारी बाँह । मूरख बैद मरम नहिं जाने, करक कलेजे महि । बाँहमरोड़-संज्ञा स्त्री॰ [ हिं० ] कुश्ती का पेंच । -संतवाणी०, भा॰ २, पृ० ७२। बाँह देना = सहायता देना । सहारा देना। मदद करना । उ०—(क) भूपुर जनु विशेष- इसमें जब जोड़े का हाथ फधे पर प्राता है तब भरना मुनिवर कलहसन रचे नोड़ दै बांह। -तुलसी (शब्द०)। हाथ उसकी बगल में ले जाकर उसकी उंगलियां पकड़कर (ख) कीन्ह सखा सुग्रीव प्रशु दीन्ह बाँह रघुवीरतु । -लसी मरोड़ देते है और दूसरे हाथ से उसकी फोहनी पकड़कर (शब्द०)। बांह बुलंद होना=(१) बलवान या साहसी टांग मारते हैं, जिससे जोड़ गिर जाता है। यह पेंच उसी होना । (२) हृदय उदार होना। दान देने के लिये उठने- समय किया जाता है जब जोड़ पारीर से नहीं सटा रहता, वाला हाथ होना। कुछ दूर पर रहता है। यौ०-बाह बोल = रक्षा करने या सहायता देने का वचन । बाँही-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'बाह' । सहायता देने का वादा । उ०-लाज वांह बोल की, नेवाजे बा'-संज्ञा पुं० [सं० वार >वाः (= जल) ] जल । पानी । उ.--. की सँभार सार, साहेब न राम सो, वलैया लीजै सील की।- राधे त कत मान कियो री। धन हर हित रिपु सुत सुजान को तुलसी (शब्द०)। नीतन नाहिं दियो री। बाजा पति अग्रज मंबा के भानुपान फा