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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२०

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फैदाना ३२५६ उ०-(क) पाप पुन्य महँ सबै फैदाना। यहि विधि जीव सबै उ०-अखि उठाकर भी फंसाऊ और बतोलिये उपदेशक उरझाना ।-कबीर सा०, पृ० ४५। (ख) फंद अनेकन की अोर नही !-प्रेमघन०, भा०२, पृ० २७५ । सकल फंदाना । मूरख जीव शब्द नहिं माना। -कवीर सा०, फँसान-संज्ञा स्त्री० [हिं० फँसना + पान (प्रत्य॰) ] दे० 'फंसाव' । पृ० २७३। फँसाना-क्रि० स० [हिं० फॅसना] १. फंदे में लाना या अट- फंदाना-क्रि० स० [सं० स्पन्दन, फन्दन ] उछालना । कुदाना । काना । वझाना। उ०-और जो कदाचि काहू देवता को फांदने का काम दूसरे से कराना । उ०-उनके पीछे रथों के होय छल तो तो ताहि नीके ब्रह्म फांस सों फसाइयो।- ताते दृष्टि प्राते थे, उनकी पीठ पर घुड़चढ़ों के यूथ के यूथ हनुमान (शब्द०)। २. वशीभूत करना । अपने जाल या वश वर्ण वर्ण के घोड़े गोटे पट्टे वाले गजगान पाखर डाले, जमाते में लाना । जैसे, इन्होंने एक मालदार असामी को फंसाया ठहराते नचाते कुदाते, फंदाते चले जाते थे। लल्लू (शब्द०)। है । ३. अटकाना । बझाना । उ०-गायगो री मोहनी सुराग फंदाना+-क्रि० स० [हिं० फानना का प्रे० रूप ] तैयार वांसुरी के बीच कानन सुहाय मार मंत्र को सुनायगो । नायगो कराना । सजवाना । उ०—(क) जल्दी से डोलिया फंदाय मांगे री नेह डोरी मेरे गर मे फंसाय हदय थली बीच चाय बेलि बलम् ।-कबीर० श०, भा० २ पृ० १०४ । (ख) रांघ परोसिनि को बँधायगो।-दीनदयाल गिरि (शब्द०)। भेटहूँ न पायों, डोलिया फंदाए लिए जात हो ।-घरनी०, फँसाव-संज्ञा पुं० [हिं० फँसना + प्राव (प्रत्य॰)] फंसने का पृ० ३४। (ग) सत गुरु डोलिया फंदावल लगें चार कहार भाव या स्थिति । फंसना। २, ऐसी बात या स्थिति जिससे हो।-घरनी०, पृ० ४७ । वचा न जा सके। ३. अवकाश या फुरसत न होना । प्रति फँदेता-संज्ञा पुं० [हिं० फँदा + ऐत (प्रत्य॰)] वह सिखाया हुप्रा व्यस्तता। पशु या पक्षी जो किसी प्रकार अपनी जाति के अन्य पशुओं फंसावा-संज्ञा पुं० [हिं० फसना+मावा (प्रत्य॰)] २० 'फेसाव'। या पक्षियों आदि को मालिक के जाल या फंदे में फंसाता हो। फॅसिहारा - वि० [हिं० फाँस + हारा (प्रत्य॰)] [स्त्री० फॅसि. फंधना-क्रि० प्र० [हिं० फंदना ] दे० 'फंदना' । उ०—कृपन हारिन] फंसानेवाला। उ०-ठगति फिरति ठगिनी तुम जु गृह ममता करि धंधे । चलि न सकत दृढ़ फंदनि फंधे।- नारी । जोइ प्रावति सोइ सोइ कहि डारति जाति जनावति नंद००, पृ० २४४ । दे द गारी। फैसिहारिन बटपारिनि हम भई प्रापुन भए फँफाना-क्रि० प्र० [अनु॰] १. शब्द उच्चारण के समय जिह्वा सुधर्मा भारी। फंदा फासि कमान बान सों काहू देख्यो डारत का कापना । हकलाना । उ०-झोला बाइ सों फैफात । मारी । जाके मन जैसोई बरतै मुखबानी कहि देत उघारी। वोला काल ज्यों हंकात ।-सूदन (शब्द०)। २ आग पर सुनहु सूर प्रभु नीके जान्यो ब्रज युवती तुम सब वटपारी । खौलते दूध का फेन छोड़कर ऊपर उठना । -सूर (शब्द०)। फैसड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फाँस+ड़ी (प्रत्य॰)] फास ! बंधन । फंदा । फॅसौरी -संज्ञा स्त्री० [हिं० फाँसना+ौरी (प्रत्य॰)] फंदा । उ.-ऋणी हो जाने से किसान के गले की फैसड़ी महाजन पाश । उ०-गच कांच लखि मन नाच सिखि जनु पांचसर के हाथ हो जाती है।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० २६७ । सु फंसोरि । —तुलसी (शब्द०)। फँसना-क्रि० स० [सं० पाश, हिं० फाँस ] १. बंधन में पड़ना । फ'-संज्ञा पुं० [सं०] १. कटु वाक्य । रूखा वचन । २. फुक्कार । पकड़ा जाना । फंदे में पड़ना । उ०-हाय, संसार छोड़ा भी फुफकार । ३. निष्फल भाषण । ४. यक्षसाधन । ५. अंधड़ । नहीं जाता । सव दुःख सहती हूँ पर इसी में फंसी पड़ी हूँ। ६. जम्हाई । ७. स्फुट । ८. फललाभ | ६. वृद्धि । विस्तार । -हरिश्चंद्र (शब्द०)। २. अटकना । उलझना । जैसे, काँटे वर्धन (को०)। में फंसना, दलदल में फंसना, काम में फंसना । उ०—(क) फर-वि० सुस्पष्ट । प्रकट । व्यक्त । प्रत्यक्ष [को०] । यही कहे देता है कि तू किसी की प्रीति में फँसी है।- हरिश्चंद्र (शब्द॰) । (ख) ऐसी दशा रघुनाथ लखे यहि फउज-सज्ञा स्त्री० [अ० फ़ौज़ ] सेना। उ०-मारे गोला नाम के पाचरज मति मेरी फंसे । -रघुनाथ (शब्द॰) । सब फउज पराई।-धरनी० ०, पृ०६। मुहा.-किसी से फंसना = किसी से प्रेम होना। किसी से फउजदारी-संज्ञा पुं० [हिं० फउज + दार ] दे॰ 'फौजदार' । अनुचित संबंध होना। बुरा फँसना = प्रापत्ति में पड़ना । फउदार-संज्ञा पुं० [अ० फ़ौज+फा० दार] सेनापति । फौजदार । विपत्ति में पड़ना । उ०-हा ! मेरी सखी वुरी फंसी।- उ०-पांच पचीस नगर के वासी मनुवां है फउदार । हरिश्चंद्र (शब्द०)। -गुलाल० बानी, पृ० १५ फंसनी-संक्षा सी० [हिं० फंसना ] एक प्रकार की हथोड़ी जिससे फक'-वि० [सं० स्फटिक ] १. स्वच्छ । सफेद । २. बदरंग । फसेरे लोटे गगरे मादि का गला बनाते हैं। मुहा०-रंग फक हो जाना या फक पड़ जाना = हक्का बक्का फंसरी -संज्ञा स्त्री० [हिं० फास +री (प्रत्य॰)] १. फंदा। २. हो जाना । घबरा जाना। चेहरे का रंग फीका पड़ जाना । फांसी। जैसे, हमें देखते ही उनके चेहरे का रंग फक हो जाता है । फँसाऊ-वि० [हिं• फँसाना + श्राऊ (प्रत्य॰)] फंसानेवाला । फक-संज्ञा स्त्री० [अ० फ़क, फ़क्क ] १. दो मिली हुई चीजों 1