पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२०३

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बाजहर घाजी वोते हैं। बाजरे के दानों का प्राटा पीसकर और उसकी वह स्थान जहाँ किसी निश्चित समय, तिथि, वार या अवसर रोटी बनाकर खाई जाती है। इसकी रोटी बहुत ही बलवर्धक प्रादि पर सब तरह की दुकानें लगती हो । हाठ । पैठ । और पुष्टिकारक मानी जाती है। कुछ लोग दानो को यों मुहा०- बाजार लगना = बाजार में दुकानो का खुलना । ही उबालकर और उसमें नमक मिचं श्रादि डालकर खाते हैं। इस रूप में इसे 'खिचडी' कहते हैं। कही कहीं लोग इसे बाजारण-वि० [हिं० वाजार + न (प्रत्य॰)] बाजारू । निम्न । उ०--रे बाजारण छोहरी, कांद खेलाद६ घाति ।- पशुओं के चारे के लिये ही बोते हैं। वैद्यक में यह वादी, ढोला०, दू० ३३४ । गरम, रूखा, अग्निदीपक, पित्त को कुपित करनेवाला, देर में पचनेवाला, कांतिजनक, बलवर्धक और रित्रयो के काम को याजारी-वि० [फा० बज़ारी ] १. बाजार संबंधी। बाजार का । २. बढ़ानेवाला माना गया है। मामूली । साधारण । जो बहुत अच्छा न हो । ३. बाजार में बाजहर-सज्ञा पु० [हिं० बाज ( = वेग ) + हर ] दे॰ 'जहर इधर उधर फिरनेवाला। मर्यादारहित । जैसे, बाजारी मोहरा-१। लोहा। ४. अशिष्ट । जैसे, बाजारी बोली, बाजारी प्रयोग । बाजा-संज्ञा पुं० [सं० वाद्य ] कोई ऐसा यंत्र जो गाने के साथ यो यो०-बाजारी औरत = वेश्या । रढी । ही, स्वर ( विशेषतः राग रागिनी) उत्पन्न करने अथवा बाजारू-वि० [हिं०] दे० 'वामारी'। ताल देने के लिये बजाया जाता हो । बजाने का यंत्र । वाद्य । वाजिg+-संज्ञा पुं० [सं० वाजिन् ] १. घोहा । उ०-वाजि चारि विशेष-स 1-साधारणतः बाजे दो प्रकार के होते हैं। एक तो वे महि मारि गिराए। -राम, पृ० ५३६ । २. वाण । ३. जिनमें से स्वर या राग रागिनियां आदि निकलती हैं । जैसे, पक्षी । ४. प्रडूमा। वीन, सितार, सारंगी, हारमोनियम, बाँसुरी आदि और दूसरे वे जिनका उपयोग केवल ताल देने में होता है । जैसे, मृदंग, वाजि - वि० चलनेवाला। तबला, ढोल, मजीरा, प्रादि । विशेष—दे० 'वाद्य' । वाजिन-संज्ञा पुं० [सं० वादिन] दे० 'वादित्र' । उ०-गुरु गीत बाद क्रि० प्र०-बजना ।-बजाना । बाजिक नृत्य ।-पृ० रा०, १७३२॥ बाजी'-संज्ञा स्त्री० यौ०-घाजा गाजा = अनेक प्रकार के बजते हुए वाजों का समूह । फ़ा० घाज़ी] १. दो व्यक्तियों या दलों में ऐसी प्रतिश जिसके अनुसार यह निश्चित हो कि अमुक बाजान्ता'-त्रि० वि० [फा० बाजास्तह ] जाब्ते के साथ । नियमा- बात होने या न होने पर हम तुमको इतना धन देंगे अथवा नुसार । कायदे के मुताविक । जैसे, बाजाब्ता दरखास्त दो। तुमसे इतना धन लेंगे। ऐसी शतं जिसमें हार जीत के अनुसार बाजाब्ता-वि० जो जाब्ते के साथ हो । जो नियमानुकूल हो । कुछ लेन देन भी हो । शर्त । दाँव । वदान । जैसे,—अभी वाजावता नकल नही मिली है। क्रि० प्र०-यदना। -लगना । —लगाना । बाजार-सज्ञा पु० [फा० बाज़ार ] १. वह स्थान जहाँ अनेक प्रकार के पदार्थो की दुकानें हों। वह जगह जहाँ सब तरह की मुहा०-याजी पर बाजी जीतना= लगातार विजयी होना । चीजों की, अथवा किसी एक तरह की चीज की बहुत सी उ०—वह बड़े शहसवार है । कई घुड़दौड़ो में बाजियो पर दुकानें हों। २. भाव । मूल्य । वाजिया जीत चुके हैं । —फिसाना०, भा० ३, पृ० २२ । मुहा०-बाजार करना= चीजें खरीदने के लिये बाजार जाना । बाजी वीस होना = (१) मन्य खेलनेवालो से अधिक जीतना । बाजार गर्म होना=(१) बाजार में चीजो या ग्राहकों आदि (२) व्यापार में गहरा मुनाफा कमाना। बाजी मारना = वाजी जीतना। दाव जीतना । बाजी ले जाना=किसी बात की अधिकता होना । खूब लेन देन या खरीद विक्री होना। (२) खूब काम चलना। काम जोरो पर होना । जैसे,- में आगे बढ़ जाना । श्रेष्ठ ठहरना । आजकल गिरफ्तारियों का बाजार गर्म है। बाजार तेज २. प्रादि से अंत तक कोई ऐसा पूरा खेल जिस में शर्त या दांव होना = (१) बाजार मे किसी चीज की मांग बहुत लगा हो । जैसे,-दो बाजी ताश हो जाय, तो चलें । ३. होना । गाहको फी अधिकता होना । (२) किसी चीज खेल में प्रत्येक खिलाड़ी के खेलने का समय जो एक दूसरे के का मूल्य वृद्धि पर होना । (३) काम जोरों पर बाद क्रम से आता है। दीव । होना । खूब काम बाजार मंद या मदा मुहा०-पाजी श्राना= गंजीफे या ताश प्रादि के खेल में अच्छे होना = (१) बाजार मे किसी चीज की मांग कम होना । पत्ते मिलना। ग्राहको की कमी होना । (२) किसी पदार्थ के मूल्य में निरंतर ३. कौतुक । तमाशा। ४. धोखा । छल । असत्य । माया । ह्रास होना। दाम घटना । (३) कारवार कम चलना । उ०-प्रविगति प्रगम अपार मौर सब दीसे वाजी । पढ़ि घाजर लगाना = बहुत सी चीजो का इधर उधर ढेर लगना । पढ़ि बेद कितेब भुले पंडित पौ काजी। -घरम० श०, पृ० बहुत सी चीजों का यों ही सामने रखा होना । बाजार ८६ । ५. मसखरापन (को०) । लगाना = चीजों को इधर उपर फैला देना । पटाला लगाना। बाजो-सज्ञा पु० [सं० वाजिन् ] घोड़ा । यौ०-यामार भाव = वह मूल्य जिसपर कोई चीज बाजार में मिलती बाजो--संज्ञा पुं० [हिं० वाजा ] वह जिसका काम वाजा बजाना या बिकती है। प्रचलित मूल्य हो । बजनिया। चलना। 1