पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२०९

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बात किसी प्रसंग की चर्चा चलाना या छेड़ना । उ०-(२) फिरि फिरि नृपति चलावत बात । कही सुमत कहाँ तें पलटे प्रान- जिनव कैसे बन जात । —सूर (शब्द०)। (ख) अघो कत ये बाते चाली । क्छु मीठी क्छु करुई हरि की अंतर मे सब साली। —सूर (शब्द०)। (अमुक की ) बात मत चलायो = इस संबंध मे (अमुक की) चर्चा करना (दृष्टांत या उदाहरण के लिये) व्यर्थ है। (अमुक का) दृष्टांत देना ठीक नहीं है। जैसे,-उनकी बात मत चलाप्रो; वे रुपए वाले हैं सब कुछ खर्च कर सकते हैं । (अमुक की) बात क्या चलाते हो= दे० 'बात मत चलायो'। बात छिडना= दे० 'वात चलना'। बात छेड़ना= दे० 'बात चलाना। वात निकालना=बात चलाना। चात पड़ना=किसी विषय का प्रसंग प्राप्त होना। चर्चा छिड़ना । जैसे,-वात पड़ी इसलिये मैंने कहा, नहीं तो मुझपे का मतलब ? वात मुंह पर लाना=(कसी विषय की) चर्चा कर बैठना । जैसे,—किसी के सामने यह बात मुंह पर न लाना। ३. फैली हुई चर्चा | प्रचलित प्रसंग। खबर । अफवाह । किंव- दंती| प्रवाद । मुहा०-बात उड़ना=चारों ओर चर्चा फैलना। किसी विषय का लोगों के बीच प्रसिद्ध होना या प्रचार पाना | उ.- झूठी ही यह बात उड़ी है राधा कान्ह वहत नर नारी । रिस की वात सुता के मुख सों सुनत हंसी मन ही मन भारी।—सूर (शब्द॰) । (किसी पर) वात पाना = दोषा- रोपण होना । दोष लगना । कलंक लगना । बुराई प्राना। बात फैलाना = चर्चा फैलना । वात लोगों के मुह से चारों घोर सुनाई पड़ना । प्रसिद्ध होना। बात फैलाना= इधर उघर लोगों में चर्चा करना । प्रसिद्ध करना । बात बहना = चारों ओर चर्चा फैलना । बात उड़ना । उ०—जे हम सुनति रही सो नाही ऐमी ही यह बात वहानी । —सूर (शब्द०)। (किसी पर) वात रखना, लगाना या लाना=दोष लगाना । कलंक मढ़ना । इल जाम लगाना । लांछन रखना। ४. कोई वृत्त या विषय जो शब्दों द्वारा प्रकट किया जा सके या मन में लाया जा सके । जानी जाने या जताई जानेवाली वस्तु या स्थिनि । मामला । माजरा । हाल । व्यवस्था । जैसे,—(क) बात क्या है कि वह अबतक नहीं पाया ? (ख) उनकी क्या बात है ! (ग) इस चिट्ठी मे क्या बात लिखी है ? उ०-क्यो करि झूठौ मानिए सखि सपने की बात पद्माकर (शब्द०)। मुहा०-बात का बतंगड करना = (१) साधारण विषय या घटना को व्यर्थ विस्तार देकर वर्णन करना । छोटे से मामले को बहुत बढ़ाकर कहना। (२) किसी साधारण घटना को बहुत बड़ा या भीषण रूप देना । छोटे से मामले को व्यर्थ बहुत पेचीदा या भारी बना देना। वात ठहरना=किसी विषय में यह स्थिर होना कि ऐसा होगा। मामला ते होना । जैसे-हमारे उनके यह बात ठहरी है कि कल सवेरे यहाँ से चल दें। बात डालना=विषय उपस्थित करना। मामला पेश करना । जैसे,—यह बात पंचों के बीच डाली जाय । बात न पूछना=दशा पर ध्यान न देना। ख्याल न करना। परवा न करना । उ०-मीन वियोग न सहि सकै नीर न पूछ वात ।-सूर (शब्द०)। बात पर धूल दालना= किसी काम या घटना को भूल जाना । मामले का ख्याल न करना । गई कर जाना। बात पी जाना=जो कुछ हो गया हो उसका ख्याल न करना । जाने देना । दर गुजर करना। बात बतंगड़ होना=किसी साधारण घटना का अर्थ कुछ का कुछ कर लिया जाना या समझना । उ०-जहाँपारा वेगम देख लेंगी तो क्या जाने क्या बात बतंगड़ हो।- फिसाना०, भा० ३, पृ० ३०२। वात बढना=मामले का तूल खीचना। किसी प्रसंग या घटना का घोर रूप धारण करना । जैसे,—प्रन बात बहुत बढ़ गई है, समझाना बुझाना व्यर्थ है। बात बढाना=पामले को तूल देना। किसी प्रसंग, परिस्थिति या घटना को घोर रूप देना। जैसे,—जो हुआ सो हुप्रा. प्रब अदालत में जाकर क्यों बात बढ़ाते हो ? बात बनना=(१) काम बनना । प्रयोजन सिद्ध होना । मामला दुरुस्त होना । सिद्धि प्राप्त होना । उ०-खोज मारि रथ हाँकह ताता। पान उपाय वनहि नहिं बाता। तुलसी (शब्द०)। (२) संयोग या घटना का अनुकूल होना। अच्छी परिस्थिति होना। वोलबाला होना। अच्छा रंग होना। बात बनाना या सॅवारना=काम बनाना। कार्य सिद्ध करना । मतलब गांठना । सिद्धि प्राप्त करना । संयोग या परिस्थिति को अनुकूल करना । जैसे,—यह तो सारा मामला बिगाड़ चुका था, तुमने आकर बात बना दी। उ०—(क) चतुर गभीर राम महतारी। बीच पाय निज वातं संवारी । —तुलसी (शब्द०)। (ख) भरत भगति तुम्हरे मन पाई। तनहु सोच विधि बात बनाई। —तुलसी (शब्द०)। बात बात पर या वात बात में = प्रत्येक प्रसंग पर। थोड़ा सा भी कुछ होने पर। हर काम में। जैसे,—तुम बात बात में बिगड़ा करते हो, कैसे काम चलेगा ? बात बिगड़ना = (१) कार्य नष्ट होना । काम चौपट होना। मामला खराब होना। अच्छी परि- स्थिति न होकर बुरी परिस्थिति हो जाना । (३) प्रयोजन सिद्ध न होना। विफलता होना । जैसे-तुम्हारे वहाँ न जाने से सारी बात बिगड़ गई। बात बिगाड़ना या बिगारना = फार्य नष्ट करना। काम चौपट करना। मामला खराब करना । वुरी परिस्थिति लाना । उ०-विधि बनाइ सब बात विगारी ।—तुलसी (शब्द०)। ५. घटित होनेवालो अवस्था। प्राप्त संयोग । परिस्थिति । जैसे,—(क) इससे एक बात होगी कि वह फिर कभी न प्रावेगा। (ख) रास्ते में कोई बात हो जाय तो कौन जिम्मे. दार होगा। १६. दूसरे के पास पहुँचाने के लिये कहा हुप्रा वचन । संदेश । संदेसा । पैगाम । उ०-ऊबो ! हरि सों कहियो वात ।—सूर ( शब्द०) । ७. परस्पर कथोपकथन । संवाद । वार्तालाप । गपशप । वाग्विलास । जैसे,—क्यों बातों में दिन खोते हो?