पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बात ३४५० बाथ । मुहा०-वात पाना=छिपा हुआ अर्थ समझ जाना । गूढार्थ बातमीज-वि० [फा० बा+ तमीज़ ] शिष्ट । सभ्य । उ•-कितनी जान जाना । जैसे,—वह बात पाफर हँसा है, यों ही नहीं। बातमीज बाशऊर हसीन लड़की थी।-काया०, पृ. ३३६ । २०. गुण या विशेषता । खुवी । जैसे,—यह भी अच्छा है; पर वातय--संज्ञा पुं० [ स० वातायु ] हिरन । मृग ।-अनेकार्थ०, उसकी कुछ बात ही और है। २१. ढंग । ढब । तौर । २२. पृ० ८१1 प्रश्न । सवाल । समस्या । जैसे,-उनकी बात का जवाब बातर-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] पंजाब में धान बोने का एक ढंग । दो। २३. अभिप्राय । तात्पर्य । प्राशय । विचार | भाव । बातलारोग-संज्ञा पुं० [सं० ] एक योनिरोग जिसमें सुई चुभने की जैसे,—किसी के मन की बात क्या जानू ? २४. कामना । सी पीड़ा होती है। इच्छा । चाह । उ०-ऊधो मन की (बात) मन ही माहिं बातायन-संञ्चा पुं० [सं० वातायन ] झरोखा। खिड़की । उ०- रही ।—सूर (शब्द०)। २५. कथन का सार। कहने का कबि मतिराम देखि वातायन बीच पायो।-मति० ग्रं, सार । कहने का असल मतलब । तत्व । ममं । जैसे,—तुमने पृ० ३३६। अभी बात नही पाई, यों ही बिना समझे बोल रहे हो। वातासा-संज्ञा स्त्री० [सं० वात, बं० बातस, हिं० यतास] बतास । मुहा०-वात तक पहुँचना=दे० 'बात पाना' । यात पाना= वायु । उ०-वन उपवन में लेती उसास, चलती है अब असल मतलब समझ जाना। वातास नहीं।-तीर०, पृ० ३४ । २६. काम । कार्य । कर्म । प्राचरण । व्यवहार । जैसे,—(क) बाति-संज्ञा स्त्री० [ सं० वर्तिका, हिं० पाती ] दे० 'बाती-२' । उसे हराना कोई बड़ी बात नहीं है । (ख) एक बात करो तो उ.- ज्ञान का थाल और सहज मति वाति है, अधर मासन वह यहां से चला जाय । (ग) कोई बात ऐसी न करो जिससे किया अगम डेरा |-कवीर श०, भा० २, पृ० ६७ । उन्हें दुःख पहुंचे। २७. संबंध । लगाव । तअल्लुक । जैसे, बातिनः --संज्ञा पुं० [१०] १. अंत कारण । उ०- नई अगर उन दोनों के बीच जरूर कोई बात है । २८. स्वभाव । गुण । वातिन में मेरा राजदौ । सर पै उसके ला सहूं गम के पहाड़। प्रकृति । लक्षण । जैसे,—उसमें बहुत सी बुरी बातें हैं । २६. -दक्खिनी०, पृ० १७८ । २. भीतर । अंदर। अप्रकट । वस्तु । पदार्थ । चीज । विषय । जैसे,—उन्हें कमी किस बात उ०-जाहिर बातिन हाजिर नाजिर, दाना तू दीवान । की है जो दूसरों के यहाँ मांगने जायंगे । उ०-कितक घात -दादू० बानी, पृ० ५७७ । यह धनुष रुद्र को सफल विश्व कर लेहो। पाज्ञा पाय बातिल- वि० [२०] भृठ । मिश्या । गलत । वेवार। उ०-रहा देव रघुपति की छिनक माझ हठि गैहों।-सूर (शब्द॰) । नूरे नबी पा जिस बशर में। बुता दिसते थे बातिल उस नजर ३. वेचनेवाली वस्तु का मूल्य कथन । दाम । मोल । जैसे,- में ।-दविखनी०, पृ० १६३ । यहाँ तो एक बात होती है लीजिए या न लीजिए । ३१. यौ०-बातिल परस्त प्रसत्य या मिथ्या का उपासक । उचित पथ या उपाय । वर्तव्य । जैसे,—तुम्हारे लिये तो प्रव बावी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० वर्ती ] १. लंबी सलाई के प्राकार में बटी यही बात है कि जाकर उनसे क्षमा मांगो। उ०परयो हुई रुई या कपड़ा। २. व.पढ़े या रुई को बटकर बनाई हुई सोच भारी नृप निपठ खिसानो भयो गयो उठि 'सागर में सलाई जो तेल में डुबाकर दिया जलाने के काम में आती वूडौं' यही बात है। -प्रियादास (शब्द०) । है। बत्ती । उ०-(क) परम प्रकाश रूप दिन राती । नहिं बात-संज्ञा पुं० स० वात ] वायु । हवा। उ०-दिग्देव दहे बहु कछु चहिय दिया घृत वाती।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) यही वात वहे ।-केशव (शब्द०)। सराव सप्तसागर घृति बाती शैल घनी।-सूर (शब्द०)। ३. वातकंटक-संज्ञा पुं॰ [स० वातकण्टक ] एक वायुरोग। वह लकड़ी जो पान के खेत के ऊपर बिछाकर छप्पर बातचीत-संज्ञा स्त्री० [हिं० बात + चिंतन ] दो या कई मनुष्यों के छाते हैं। बीच कथोपकथन । दो या कई प्रादमियों का एक दूसरे से चातुल-वि० [सं० वातुल ] १. पागल । सनकी। बौड़हा। उ०- कहना सुनना । वार्तालाप । (क) घातुल मातुल की न सुनी सिष का तुलसी कपि लंक न जारी।-तुलसी (शब्द०) । (ख) मुहा०-बातचीत चलना या छिड़ना=३० 'बात-२' का मुहा० चातुल भूत विबस मतवारे । ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे ।-तुलसी (शब्द०)। 'बात चलना। वातूनिया-वि० [हिं० यात + ऊनियां (प्रत्य॰) ] दे० 'वातूनी' । बातड़ा-वि० [सं० वातल ] वायुयुक्त । वायुवाला। बातूनी-वि० [हिं० वात+ऊनी (प्रत्य॰)] वकवादी । बहुत बोलने बातप-मंज्ञा पुं० [ स० वातप ? ] हिरन । -अनेकार्थ (शब्द०); नंद या बात करनेवाला। , पु०६१। बातूल-संज्ञा पुं० [सं० वातूल ] बवंडर । तूफान । वातचक्र । यातफरोश-संज्ञा पुं० [हिं० बात + फ़ा० फ़रोश ] १. बात बनाने उ०-ज्यों तूल मध्य वातुल पवन जिम पत्त भ्रमाइय । -पृ० 'वाला। बात गढ़नेवाला। झूठ मूठ इधर उधर की बात रा०,७८४ । कहनेवाला। बाथ-सञ्ज्ञा पु० [सं० वस्ति (=कटि या वक्ष)] १. गोद । पंक ।