पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२४९

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विछनाग ३४८८ विछोई बिस्तर धादि का बिछाया जाना। फैलाया जाना । २. किसी विछावना-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'विधाना' । उ०-प्रो भुई पदार्थ । जमीन पर बिखेरा जाना । छितराया जाना । ३. सुरॅग विछाव विछावा । —जायसी ग्रं॰, पृ० १२८ । ( मार पीटकर ) जमीन पर लिटाया या गिराया जाना । विछिआ, बिछिया-संज्ञा स्त्री० [हिं० बिच्छू + इया (प्रत्य॰)] संयो॰ क्रि०-जाना। पैर की उंगलियो में पहनने का एक प्रकार का छल्ला । बिछनाग-सज्ञा पुं० [हिं० पछनाग ] दे० 'बछनाग' । उ० उ.-(क) अनवट विछिया नखत तराई ।-जायसी ग्रं, (गुप्त० ), पृ० १६० । (ख ) तव या प्रकार मूपुर के शब्द भूला अभरन राग सुहागा। सखिय भई दारुण बिछनागा | अनवट विछियान के पाइलन के तथा कटिसूत्रन के सन्दन -हिंदी प्रेमगाथा०, पृ० २६१ । सो पधारे।-दो सौ वावन०, भा० १, पृ. २२० । बिछलन-संज्ञा स्त्री० [सं० विस्खलन दे० 'फिसलन'। उ०- लहरों की बिछलन पर जब मचली पड़ती किरणें भोली। विछिप्ता@-वि० [सं० विक्षिप्त ] दे० 'विक्षिप्त' । -यामा, पृ०६। पिछुआ+g-संज्ञा पुं० [हिं० विच्छू ] १. पैर में पहनने का एक पिछलना-क्रि० स० [हिं० विछलन ] दे० 'फिसलना'। गहना । २. एक प्रकार की छोटी टेढो छुरी। एक छोटा सा शस्त । बघनसा । ३. सन की पूली। ४. प्रगिया या भावर पिछलहरी-वि० [हिं० विछलना+ हर (प्रत्य॰)] पिच्छिल । नाम का पौधा । विशेष—दे० "प्रगिया' । ५. कमर में पहनने फिसलन भरी। उ०-मेड के कपर से लोगों की निकाली का एक गहना । एक प्रकार की करधनी । हुई पगडंडी, वह पानी बरस जाने से पिछलहर । -काले०, पृ० १। बिछुट्टना-क्रि० प्र० [प्रा० वि+छुटना (=छूटना) ] दे० 'छूटना' । उ० बज्जि गहर निसान । अग्गि भगवान बिछु. पिछलाना-क्रि० अ० [हिं० बिछलन ] दे० 'फिसलना' । ट्टिय ।-पृ० रा०, १। ६३६ । बिछवाना-क्रि० स० [हिं० बिछाना का प्र० रूप] बिछाने का काम दूसरे से कराना । दूसरे को बिछाने में प्रवृत्त करना । बिछुड़ना-संशा सी० [हिं० बिछुइना] १. विछड़ने या अलग होने का भाव । २. वियोग । विरह । जुदाई। बिछा-संज्ञा पु० [हिं० विधाना ] विछाने की वस्तु । बिछौना । बिछुड़ना-क्रि० प्र० [सं० विच्छेद १. साथ रहनेवाले दो बिछाना-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० विस्तर ] दे० विद्यौना'। व्यक्तियों का एक दूसरे से पलग होना। २. प्रेमियों का एक विछाना-क्रि० स० [सं० विस्तरण ] १. (विस्तर या कपड़े मादि दूसरे से अलग होना । वियोग होना । को) जमीन पर उतनी दूर तक फैलाना जितनी दूर तक संयो० कि०-जाना। फैल सके। जैसे, विछौना बिछाना, दरी बिछाना । उ०- बिछुरंता संज्ञा पुं० [हिं० बिछुड़ना+अंता (प्रत्य॰)] १. प्रो भुइँ सुरंग बिछाव बिछावा । —जायसी ग्र०, पृ० १२८ । विछुड़नेवाला । उ०-विछुरंता जब भेटिन सो जाने जेहि २. किसी चीज को जमीन पर कुछ दूर तक फैला देना। नेहु ।-जायसी प्र० (गुम०), पृ० २३६ । २. जो बिछड़ बिखेरना । विखराना। जैसे, चूना बिछाना, बताशे विछाना। गया हो। ३. (मार मारकर) जमीन पर गिरा या लेटा देना । विछुरना-कि० म० [हिं ] दे॰ 'विछुडना' । उ०-विछुरत सुदर संयोक्रि०-डालना -देना । अघर ते रहत न जिहि घट सांस |-स० सप्तक, पृ. १८७ । बिछायत-संशा स्त्री० [हिं० विछाना अायत (प्रत्य॰)] १. विछाने विछुरनि@संशा सी० [हिं० ] ३० बिछुडन' । का काम । बिछोना बिछाना । उ०-पाछै नारायन दास ने वा विछुवा-संशा पु० [हिं० यिछुधा ] १. पैर की उंगली का एक दिन बिछायत करि राखी -दो सौ बावन०, भा० १, पृ० गहना । उ०-कंचन के बिछुवा पहिरावत प्यारी सखी १२३ । २. बिछाने की वस्तु । विछौना । उ०—कमरे मे परिहास बढ़ायो।-नंद० न०, पृ० ३३५ । २. क । बघ- रेशमी गलीचे की बड़ी उम्दा बिछायत थी।-श्रीनिवास नख । उ०-भौंहे बांकी बाक सी लखी कुंज की मोट । समर ग्रं॰, पृ० १७७ । सरल विछुवा लग्यो लालन लोटहि पोट । -बज ग्र०, पृ० पिछायति-संज्ञा स्त्री॰ [ हि० विछायत ] दे॰ 'बिछायत' । उ० १५ । दे० 'बिछुपा'। ठेरा ड्योढी करि खरे, करि विछायति वेस । -ह• रासो बिछूना@+-संज्ञा पुं० [ प्रा० बिच्छूढ (=वियुक्त ) या हिं० बिछु। पु०५०। इना ] बिछुड़ा हुपा । जो बिछुड़ गया हो । उ०-मिले रहस बिछाव@-संज्ञा पुं० [हिं० विछाना+श्राव (प्रत्य०) दे० 'विछा-]. भा चाहिय दूना । कित रोइय जी मिले बिछूना।—जायसी वन': उ०-ग्रौ भुइँ सुरंग बिछाव बिछावा ।—जायसी प्र०, पृ० ७६ । न०, पृ० १२८ । विछोईसिंज्ञा पुं० [हिं० विछोह + ई (प्रत्य॰)] १. वह जो बिछावना-संज्ञा पु० [हिं०] दे० 'विछौना' । उ०-करी विछायन बिछुडा हुमा हो। जिसका वियोग हुपा हो। उ०-अधिक तह बड़ भारी। गादी तकिया बहुत अपारी।-कवीर सा०, मोह जौं मिले बिछाई ।—जायसी न०, पृ० ७६ । २. जो पृ० ५४३। विरह का दु.ख सह रहा हो । विरही।