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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२५२

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गिराना % कहर पिजली १४६१ बिजुल' जोर का शब्द होना । विजली चमक जाना=चकाचौध होना । बिजूका, बिजूखा-ज्ञा पुं॰ [ देश०] १. खेतों में पक्षियों आदि चकपकाहट होना । सनसनी फैलना। उ०-अखाड़े में को डराकर दूर रखने के उद्देश्य से लकड़ी के ऊपर उलटो गदका लेकर खड़े हुए तो मालूम हुआ विजली चमक गई। रखी हुई काली हांड़ी। उ०-भेष बिजूका नाम का, देखत -फिसाना०, भा०१, पृ०७ । विजली डरै कुरग। दरिया सिंघा ना रै भीतर निर्भय भग।- ढाना । जुल्म ढाना । उ०--दिल मे जिगर में सीने में पहलू दरिया० बानी, पृ० ३४ । २. धोखा । छल (क्व०)। में प्रापने। विजली कहाँ कहाँ न गिराई तमाम रात । बिजै-सज्ञा पुं० [ प्रा. विजय ] दे० 'विजय' । —फिसाना०, भा०३, पृ० ११६ । विजैसार-पंज्ञा स्त्री० [सं० विजयसार ] दे० 'विजयसार' । ३. भाम की गुठली के अंदर की गिरी । ४. गले में पहनने का बिजोग@-ज्ञा पुं॰ [सं० वियोग, प्रा. विजोग ] वियोग। एक प्रकार का गहना। ५. कान में पहनने का एक प्रकार उ०-खोजी को डर बहुत है, पल पल पड़े बिजोग । प्रन का गहना। राखत जो तन गिरे, सो तन साहेब जोग ।-कबीर सा० बिजली-वि० १. बहुत अधिक चंचल या तेज । २. बहुत अधिक सं०, पृ०२६॥ चमकनेवाला । चमकीला । बिजोना-[सं० घीजवन ] बीज बोना। उ०-पाछी भांति बिजलीघर-संज्ञा पुं० [हिं० ] वह स्थान जहाँ विद्युत् पैदा सुधारिकै खेत किसान बिजोय । नत पीछे पछतायगो समै की जाय । गयो जब खोय |-दीन० प्र०, पृ० २३६ । विजलीमार-मज्ञा पुं॰ [ देश० ] इक प्रकार का बड़ा वृक्ष जो बहुत बिजोरा'-संज्ञा पुं॰ [ सं० घीजपूर, प्रा० विज्ज उर] दे० 'विजौरा' । सुंदर और छायादार होता है । विशेष—इसके हीर की लकड़ी बहुत कड़ी होती है और प्रायः बिजोरा-वि० [सं० वि + फ़ा० जोर (ताकत) ] कमजोर । अशक्त । निर्वल। सिरिस की लकड़ी की तरह काम मे पाती है। यह आसाम और दारजिलिंग के पास पास की तराइयों में अधिकता बिजोहा-सज्ञा पुं० [ देश० ] केशव के अनुसार एक छद का नाम । से होता है। प्रासामवाले इस वृक्ष पर एक प्रकार की लाख विशेष-दे० 'विज्जूहा'। भी उत्पन्न करते हैं। बिजौर, बिजौरा-संज्ञा पु० [ स० बीजपूरक, प्रा० विजऊरश्र ] बिजवारी-संज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'बिजई' । नीबू की जाति का एक वृक्ष । बिजन-वि० [हिं० बीज+हन ] जिसका बीज नष्ट हो गया हो। विशेष-इसके पत्ते नीबू के पत्तों के समान, पर उससे बहुत जिसकी वीज शक्ति नष्ट हो गई हो । जैसे, विजहन गेहूँ। अधिक बड़े होते हैं। इसके फूलों का रंग सफेद होता है और बिजागी-संज्ञा पुं॰ [ स० वज्राग्नि, हिं० बजागि ] दे० 'बजागि' फल बड़ी नारंगी के बराबर होते हैं। यह दो प्रकार का होता उ०-रानी सुनि सिर परी विजागी। सुनतहि जरी कोप है, एक खट्टे फलवाला और दूसरा मीठे फल वाला । फलो का की आगी।-चित्रा०, पृ० ३७ । छिलका बहुत मोटा होता है। वैद्यक मे इसे खट्टा, गरम, बिजाती-वि० [सं० विजातीय ] १. दूसरी जाति का । और जाति कंठशोधक, तीक्ष्ण, हलका, दीपक, रुचिकारक, स्वादिष्ट और या तरह का। उ०-गुरुजन नैन विजातियन परी कौन त्रिदोष, तृषा, खांसी, हिचकी प्रादि को दूर करनेवाला यह बान । प्रीतम मुख अवलोक तन होत जु भाड़े प्रान ।- माना है। इस वृक्ष की जड़, इसके फल और फलों के बीज रसनिधि (एब्द०)। २. जो जाति से वहिष्कृत कर दिया तीनों भौषष के काम आते हैं। गया हो । जाति से निकला हुपा । प्रजाती। पर्या-बीजपूर । मातुलुग । रुचक । फलपूरक । अम्लकेशर । विजान-संज्ञा पुं० [फा० वि+जान ] अज्ञान । अनजान । बीजपूर्ण । पूर्णवीज । सुकेश । बीजक । सुपूरा । बीजफलक । उ०-जो यह एके जानिया तो जानो सव जान । जो यह जंतुन । पूरक । रोचनफल । एक न जानिया तो सबही जानु विजान |--कबीर बिजौरी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं• वीज+औरो (प्रत्य॰)] उड़द की (शब्द०)। पीठी और पेठे के मेल से बनी हुई बड़ी । कुम्हड़ौरी । बिजायठ-संशा पु० [सं० विजय ] बांह पर पहनने का वाजूबंद नामक गहना । अगद । भुज । वाजू । विज्जुल-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० विद्युत् प्रा० बिज्जु ] दे० :विजली'। बिजार- संज्ञा पुं॰ [ देश० १.बैल । २. सांड। उ०-नागर नट पट पीत धर जिमि घन बिज्जु बिलात ।- पोद्दार अभि००, पृ० ४५८ । बिजुरी-संज्ञा श्री० [हिं० पिजली ] दे० 'विजली'। मेघ डर हि गिजुरी जहं डीठी । फुरुम डर घरनी जेहि पीठी। विज्जुपात-संज्ञा पुं॰ [ सं० विद्य त्पात ] बिजली का गिरना। -जायसी मं० (गुप्त), पृ० २६६ । बचपात। विजुल@--संज्ञा स्त्री० [सं० विद्युत् ] विजली । दामिनि । उ०- विज्जुल-संज्ञा स्त्री० [सं० विजुल ] त्वचा । छिलका । कहुँ कहुँ मृगु निरजन बन माही। चमकत भजत विजुल की बिजुल-संज्ञा स्त्री० [सं० विद्युत्, प्रा० विज्जुल ] विजुली। नाई।-पद्माकर (शब्द॰) । दामिनि । उ.- सूर के तेज तें सूरज दीसत चंद के तेज 30