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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२५७

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पिदरी ३४१६ पिदेही विशेप-यह सोने या चांदी के तारों से नक्काशी की हुई होती है । विदर जिसकी बन के पते पराई पत्ते के समान होते हैं। की धातु का काम । २. बिदर पातु का बना हुमा सामान । बिलाईफद । बिदरी-वि० [हिं० विदर+ई (प्रत्य॰)] बिदर या विदर्भ संबंधी। कंद बेल को न में होना है इसका रंग गुछ लाल विदर का। होता है पोर इमोकार एक प्रकार छोटे छोटे रोएं होते बिदरी-संज्ञा रसी० [?] बिदलित । उ०-विदरी कहे वोघि तेहि हैं । वैद्यक में इसे मधुर, पीतन, भाग, स्निग्ध, रक्तपित. लूटा अवर जहां तक पोता।-संत० दरिया, पृ० ११३ । नाशा, पफामा, वीर्यवर्गक, रणं को रादर करनेवाला घोर रुधिरयिकार, दाह तथा वमन को दूर करनेवाला बिदरीसाज-मंशा पु० [हिं० विदरी + फा साज़ ] वह जो विदर माना है। की धातु से बरतन प्रादि बनाता हो । विदर का काम बनानेवाला। विदावा- [फा० देदार ] बेदावा। अधिकार या रिती प्रकार को कामना गरहित । उ०-प्रन टी सिसहनि बिदलना-क्रि० सं० [सं० वि + दलन ] विदीरणं करना । नष्ट पतीना तबते भगा विधाय।-ए, पृ०६६१ । करना । ध्वस्त करना । दलना। उ० रनहरि केहरि के बिदले प्ररि कुतर छैन च्या से ।-तुलसी न०, विदिसा- [ विदिशा ] दे० विदिशा। पृ० २५१ । विदीरनपु-in पुं० [in विदीशान ] फारना । विदीर्ण करने बिदलित-वि० [ स० विदलित ] दे० वदलित' । उ०-सुदर की स्थिति, क्रिया या भाव । जिहा प्रापुनी अपने ही सब दंत । जो रसना विदलित भई तो विदीरना-कि० स० [सं० विदीयोन } दे० विदारना' । कहा वैर करंत । -सुदर ग्र०, भा॰ २, पृ० ८०४ । विदुराना(को-मि० अ० [२० विदुर (:: गनुर) ] मुसकराना। विदहना-क्रि० स० [ स० विदइन ] [ी विदहनी ] धान या घोरे धीरे हसना । 30--धरै स बह होर रजाई । ककुनी प्रादि की फसल पर मारंभ में पाटा या हेंगा चलाना । यद्यो विदेह वनन बिदुराई ।-राज (द०)। विशेष-जिस समय फमल एक वालिप्त हो जाती है और वर्षा विदुरानि-संशो० [हिं० यिदुराग ] मुमा राहट । मुसक्यान होती है, तब मिट्टी गीली हो जाने पर उसपर हेगा या पाटा उ०-नए चाय से बदन बिदुरानि पासी त्यों जवाहिर जड़े चला देते हैं । इससे फसल लेट जाती है और फिर जब उठती काहे दिल फादर ते ।-गुराम (शब्द०)। है, तब जोरो से बढती है। बिदहनी-संज्ञा स्त्री॰ [ मै० विदहन ] बिम्हने की क्रिया या भाव । यिदूखना, विपना थी-कि० प्र० [सं० मिदूपरा] १. दोष लगाना । पलंक लगाना । ऐन लगाना। २. सराव करना। क्रि० प्र०—करना ।-लगना।—लगाना । विगाहना। विदा-संज्ञा स्त्री० [अ० विदाश् ] १. प्रस्थान । गमन । रवानगी। विदूरित-स० [सं० विदूरित ] दूरी न । दूर किया हुमा । मलग रुखसत | उ-बेटी को विदा के भकूलाने गिरिराज कुल व्याकुल सफल शुद्धि बुद्धि बदली गई।-देव (गन्द०)। विदेस- ५० [ मं० विदेश ] विदेश । परदेश । अपने देश के २. जाने की प्राजा । उ०-मागहु बिदा मातुं सन जाई । प्रतिरिक्त प्रौर कोई देश । जैसे, देश विदेश मारे मारे प्रावह वेगि चलहु वन भाई । —तुलसी (शब्द०)। फिरना । क्रि० प्र०-देना ।-मॉगना ।-मिलना। यिदेसी-० [हिं० विदेशी] देकाशी'। ३. द्विरागमन | गौना। विदाई- -ज्ञा स्त्री० [अ० विदाय, हिं० यिदा + ई (प्रत्य॰)] १. विदा विदेह-संज्ञा पु- [म० वि + देह ( = मारीररहित) ] १. मनंग। कामदेव । ३०-त्यो दुख देसि हंसै पपला, परु पोन हूँ होने की क्रिया या भाव । २. बिदा होने की प्राज्ञा । ३. वह दूनो बिदेह ते दाहक ।-घनानंद, पृ० १०४ । २. राजा धन जो किसी को विदा होने के समय, उससा सत्कार करने जनक का एक नाम । ३. वह जो देहाभिमान वा शरीर की के लिये दिया जाय। स्थिति से रहित हो । 30-~भएउ विदेह विदेह विसेखी।- बिदामी-वि० [हिं० बादाम ] दे० 'बादामो' । मानस, ११२१५॥ विदारना-क्रि० स० [ स० विदारण ] १. चीरना । फाड़ना। विदेहना-शा ती० [हिं० ! विदहने की मिया । उ०---कुछ उ०-सीयबरन सन केतकि अति हिय हारि । किहेसि भंवर बोज परती (बिना जुते) सेतों में ही बोए जाते हैं। इस कर हरवा हृदय विदारि -तुलसी ०, पृ० २१ । प्रक्रिया को विदेहना कहते हैं।-संपूर्णा० अभि० प्र०, विदारी-संशा पु० [सं० विदारी] १. शालपर्णी । २. भूमि कूष्मांड । पृ० २४७ । भुई कुम्हड़ा । ३. अठारह प्रकार के कंठरोगो में से एक विदेही-वि० [मं० वि+देहिन् ] देहाभिमान से रहित । उ०- प्रकार का रोग। साहेब फबीर प्रभु मिले विदेही, झीना दरस दिखाइया ।- विदारीकंद-संज्ञा पु० [सं० विदारीकन्द ] एक प्रकार का कंद घरम००, पृ०५६ । किया हपा। 1