बिलल्ला बिलावल न गात ।-बिहारी (शब्द०)। २. व्याकुल होकर असंवर विला नागा=प्रतिदिन । रोजाना । पिला वजह = प्रकारण । बातें कहना । उ०-दीन हुवो बिललात फिरै नित इंद्रिनि व्यर्थ । बिला वास्ता= बिना किसी संबंध या सिलसिला के। कै बस छोलक छोले ।-सुदर० प्र०, भा० २, पृ० ५८७ । विला शक, विला शुबहा= मंदेह रहित । निस्संदेह । बिला विलल्ला-वि० [ देश० अथवा स० वि = (रहित) + हिं० लुर = (लर)] सयवदे० 'विला वजह'। बिला शर्त = बिना किसी दांव या [वि० स्त्री० बिलल्ली ] जिसे विसी बात का कुछ भी शऊर या वाजी के। बिना किसी प्रतिबंध के । ढग न हो । गावदी । मुख । उ०—बिलल्ली है ! तुम ऐसी बिलाइता-संज्ञा पु० [अ० वलायत मंरक्षक | स्वामी । वली। दस को बेच ले ।-सैर०, पृ०३२ । २. इधर उधर भावारा उ०-जोगी सो जे मन जोगवे, बिन बिलाइव गज भोगवै । गर्दी में समय बितानेवाला। -गोरख०, पृ० ३५ । विलल्लापन-संज्ञा पुं० [हिं० थिलल्ला + पन ( प्रत्य० ) ] प्रायो- विलाई-पज्ञा स्त्री॰ [हिं० थिल्ती ] विन्ली । विलारी । उ०—नवनि रगी। मुर्खता । फूहडपन । उ०-दो एक और हो तो बस नीच के अति दुखदाई । जिमि अकुश धनु उरग विलाई ।- मुहल्ला उजड़ जाय । बिलल्लेपन की एक ही कही ।-बैर०, तुलसी (शब्द० )। २. कुएं में गिरा हुमा बरतन या रस्सी पु० ३.1 प्रादि निकालने का कोटा जो प्रायः लोहे का बनता है । इसके बिलवाना-क्रि० स० [ स० वि + लप, विलयन ] १. किसी वस्तु अगले भाग मे बहुत सी अंकुसियां लगी रहती हैं जिनमे चीज को खो देना । नष्ट करना । बरवाद करना । २. किसी वस्तु फंसकर निकल पाती है। ३. लोहे या लकड़ी की एक स्टिकनी जो किवाडों में उनको बद करने के लिये लगाई को दूसरे द्वारा नष्ट कराना । वरवाद कराना । दूसरे को बिलाने में प्रवृत्त करना। जाती है । पटेला । ४. [ मशा पुं०] दे० 'बिलया-२' । संयो० कि०-ढालना ।-देना । बिलाईकंद-प्रशा पुं० [हिं०] दे० 'विदारीकद' । ३. ऐसे स्थान में रखवाना या रखना जहाँ कोई देख न सके। विलाना-क्रि० प्र० [सं० विलायन] १. नष्ट होना । विलीन होना। छिपाना अथवा छिपाने के काम मे दूसरे को प्रवृत्त करना । न रह जाना। उ०—कबहुं प्रवल चल मारुत जहं तहँ संयो॰ क्रि०-देना। मेघ बिलाहिं । -तुलसी (शब्द॰) । २. छिप जाना । अदृश्य हो जाना । गायब होना । उ०-जेवत अधिक सुवासिक मुह बिलसनाg+9-कि०म० [सं० विलसन ] विशेष रूप से शोभा में परत विलाय । सहस स्वाद सो पावै एक कौर जो देना । वहुत भला जान पड़ना। उ०-(क) त्यों पद्माकर खाय ।-जायसी (शब्द०)। वोल हंसे हुलसै विलसे मुखचंद्र उज्यारी-पद्माकर विलाप-तज्ञा पुं॰ [ सं० विलाप ] दे० 'विलाप' । (शब्द०)। ( ख ) बिलसत बेतस बनज बिकासे । -तुलसी बिलापना-क्रि० प्र० [हिं० घिलाप +ना (प्रत्य॰)] दे० (शब्द०)। 'बिलपना। बिलसनारे-क्रि० स० भोग करना । भोगना। विलास करना। बिलायत-संशा पुं० [हिं०] ३० 'विलायत' । उ०-सुनि बिलाप दखल उ०—(क) सज्जन सीव विभीषन मो अजहूँ - बिलसै वर दुख लागा।-मानस, २ । वधुवधू जो।—तुलसी (शब्द०) । (ख) इंद्रासन बैठे सुख विलायती-वि० [हिं० विनायत + ई (प्रत्य॰)] विलायत का । विलसत दूर किए भुवमार । - सूर (शब्द०)। विदेश संबधी । उ०—यहे सेमो का कपड़ा विलायती जरबफ्त बिलसानाg+-क्रि० स [हिं० विलसना ] १. भोग करना । का था और बाहरी मोर पुर्तगाली कपड़ा था । हुमायू, बरतना | काम में लाना । उ०-दान देय खाही बिलसाही । पृ०४०। ता को धंन मुनी यश गाही। -सवल (शब्द०)। २. दूसरे बिलायन-संज्ञा पु० [सं०] १. गुफा । गुहा । २. माद [को०] । को विलसने मे प्रवृत्त करना । दूसरे से भोगवाना ।, बिलारी-संज्ञा पुं० [स० बिडाल ] [ स्त्री० पिलारी ] विल्ला । बिलस्त-सज्ञा पुं० [हिं०] 'बालिस्त' । मार्जार। बिलहरा-संज्ञा पु० [हिं० वेल ] [धी यिलहरी] बाप की तीलियों बिलारी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बिलार ] बिल्ली । मंजारी । या खस प्रादि का बना हुमा एक प्रकार का संपुट जिसमें पान बिलारी कंद-मंज्ञा पुं० [सं० विदारीकन्द ] एक प्रकार का कंद । के लगे हुए बीड़े रखे जाते हैं । दे० 'विमारीकंद'। बिलाँदा-सज्ञा पु० [हिं० पिलस्त ] वालिश्त । बित्ता। उ०—किस बिलोला-संज्ञा पु० [ सं० विडाल ] दे० 'बिलार' । भांति यह बिलाद भर की चीज खिलौना नहीं है।-सुनीता, बिलाव-पंज्ञा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'बिलार' । उ०-मैं अपने जीने से पृ० २०६। ऐसा निरास हो रहा हूँ जसे बिलाव का पकड़ा मूसा। बिला-प्रव्य० [अ०] बिना। बगैर । उ०-प्राज अपनी जरा सी --शंकुतला, पृ० १२८ । मेहर की निगाह से इस बादशाहत को बिला कीमत खरीद बिलावर-संज्ञा पुं० [अ० बिल्लौर ] दे० 'बिल्लौर'। सकती हो ।-राधाकृष्ण दास (शब्द०)। बिलावल'-संशा पु० [सं०] एक · राग जो केदारा और कल्याण के यौ०-पिला तकल्लुफ= निःसंकोच । बिला तरह द = निःशंक । योग से बनता है। इसे दीपक राग का पुत्र मानते हैं। यह
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