पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२७०

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नाम। बिलावल विलोना सबेरे के समय गाया जाता है। उ०-बजि ललित बिलावल बिलूमना-क्रि० प्र० [सं० वि + लम्यन ] विलपना । लटवाना । गिरी देव ।-ह. रासो०, पृ० ११० । अटकना । उ.-वह प्यारी के फंठ विलूम्यो करै, मुख घूम्पो बिलावल@P-संज्ञा स्त्री० [ स० वल्लभा ] १. प्रेमिका । प्रियतमा । करै त्यों ही झम्यो करै ।-नट०, पृ०५० । २ स्त्री । पत्नी । जैसे, राजबिलावल । बिलूर'--संक्षा पुं० [फा० बिलोर ] दे० चिल्लो'। उ.-विसद विलास-संज्ञा पुं० [सं० विलास ] दे॰ 'विलास' । उ०-चित्त बसन मेहीन मैं ती तन नूर जहूर । मनु बिलूर फानूस में दीप सुनाल के अन लसे लहु कंठव कष्ट विलास बिलासे ।- दीप कपूर ।-स० सप्तक, पृ० २७३ । कशव (शब्द०)। बिलूरगात-संज्ञा पुं० [सं० तिव्वती ] तिव्यत के एक पर्वत का विलासना-क्रि० स० [सं० विलसन ] 'भोग करना। भोगना । बरतना । उ०—चित्त सुनाल के अग्र लसे लहु कंठव कष्ट विशेप-यह शब्द जैनियों के वैताड्य (पर्वत) का घपभ्रंश विलास बिलासे | - केशव (शब्द०)। जान पड़ता है। बिलासिका-वि० स्त्री० [सं० विलासिका अानद देनेवाली। बिलेशय-संज्ञा पुं० [सं०] १. सर्प । २. चूहा। ३. बिल या माद विलास करनेवाली। उ०-देवनदी बर वारि बिलासिका। मे रहनेवाला कोई जानवर । ४. खरगोश [को०] । भारतेंदु म, भा० १, पृ०२८१ । बिलैया -संज्ञा स्त्री० [हि० बिल्ली + ऐया (प्रत्य०)] १ बिल्ली। बिलासिनी-पंशा स्त्री० [सं० विलासिनी ] पुश्चली। दे० 'विला २. सिटकिनी । अगला । ३. पेठा, कद्दू, मूलो प्रादि के महीन सिनी'। महीन डोरे से लच्छे काटने का एक प्रोजार । कदकश बिलासी'-सज्ञा पु० [ देश० ] एक प्रकार का वृक्ष जो दक्षिण विशेष—यह वास्तव में लोहे की एक ( चार पायों की) चौकी भारत में मालाबार और कनारा मे प्रापसे पाप होता है सी होती है जिसपर उभरे हुए छेद बने होते हैं। उभारों से और दूसरे स्थानों में लगाया जाता है । बारना । रगड़ खाकर कटे हुए कतरे छेदों के नीचे गिरते जाते हैं। विशेष-इसकी पत्तियां अंडाकार और ३ से ६ इंच तक लंबी बिलोकना-क्रि० स० [सं० विलोकन ] १. देखना। लोचन लोल विमाल बिलोकनि को न बिलोकि भयो बस माई। होती हैं। इसकी छाल और पत्तियों का प्रोषधि के रूप में -मति० प्र०, पृ० ४०३ । २. जांच करना। परीक्षा व्यवहार होता है और इसके फल का गूदा राज लोग इमारत करना। की लेई में मिलाते हैं जिससे उनकी जुडाई बहुत मजबूत हो जाती है। घिलोकनि-संज्ञा सी० [सं० विलोकन ] १. देखने की क्रिया । चितवन । उ०-लोचन लोल बिसाल बिलोकनि को न बिलासी२-वि० [सं० विलासिन् ] [ वि० स्त्री० विलासिनी ] विलास बिलोकि भयो बस माई-मति० ग्र०, पृ० ४०३ । २. करनेवाला । भोग करनेवाजा। उ०-देखि फिरौं तब ही दृष्टिपात । कटाक्ष । उ०-ललित बिलोकनि पै विवध तब रावण साता रसातल के गे विलासी ।-केशव (शब्द०)। विलास है।-मति० प्र०, पृ० ४२० । बिलिवी-संज्ञा स्त्री॰ [ मलया० बलिया ] एक प्रकार की कमरख बिलोगी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की घास । का फल या उसका पेड़ । पिलोजन-संशा पुं० [सं० विलोचन ] प्रख । दे० 'विलोचन'। विलियर्ड-संज्ञा पुं० [अं॰] एक अंग्रेजी खेल जो गोल मंटों और उ०-काल न देखत कालवस, बीस बिलोचन पंधु । -तुलसी लवी लंबी छड़ियों द्वारा बड़ी मेज पर खेला जाता है। ग्रं॰, पृ० ८७ ॥ यौ- विलियर्ड टेबुल = वह मेज जिसपर विलियर्ड का खेल पिलोचना@-क्रि० स० [सं० विलोचन ] जाँचना। परीक्षा खेला जाता है। विलियर्ड रूम = वह घर जहाँ यह खेल खेला करना । उ०-लोचन बिलोच पोच ललिता की प्रोटन सों जाता है। हाव भाव भरी करत झोटन में ललित वात ।-नद००, विलिया-संशा खी० [हिं० वेला=(कटोरा)] कटोरी। पृ० ३७६ । बिलिया-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] गाय, यल के गले की एक बीमारी। बिलोडना-फ्रि० स० [सं० विलोटन ] १. मथना । पानी की बिलिश-संशा पु० [ स० बडिश ] मछली मारने का काटा या सी वस्तु को चारों ओर से खूब हिलाना। २. अस्त व्यस्त उसमे का चारा। कर देना । गड्ड बड्ड करना । विलुठना-क्रि० प्र० [सं० विलुण्ठन ] लोटना । उ०-मुनिजन घिलोन'-वि० [सं० वि+हिं० लोन (= लवण = नावण्य) ] चिना जिनहि पत्यात न रती । ते पद पिलुठत ताकी छती। नंद. लावण्य का। कुरूप । बदसूरत । उ०-~-लोन बिलोन तहाँ को ग्रं॰, पृ०२३६। कहै । लोनी सोइ कंत जेहि चहै ।-जायसी (शब्द॰) । बिलूधना-नि० अ० [सं० वि + नुब्ध] विलुप्त होना । बिलाना। षिलोन'-वि० [सं० वि+लवण ] अलोना । बिना नमक का । उ०-चद सुर दोउ गगन विधा भईला घोर अंधार। बिलोना-क्रि० स० [सं० विलोटन ] १. मथना । किसी वस्तु, -गोरखपृ०६६ । विशेषतः पानी की सी वस्तु, को खूब हिलाना । जैसे, दही