वीतरागी बीभंग राममंत्र फल पायो। उलटा नाम जपत अघ, बीत्यो पुनि पोद्दार अभि० ग्रं, पृ० ४६१ । (ख) सूरदास की बीनती उपदेश करायो । —सूर (शब्द०)। २. संघटित होना । कोउ ले पहुंचावै ।-सूर०, ११४ । घटना। पड़ना। उ०-मन बच क्रम 'पल प्रोट न भावत बीनना'-क्रि० स० [सं० विनयन ] १. छोटी छोटी चीजों को छिन युग बरस सयाने । सूर श्याम के वश्य भए ये जेहि बीते उठाना । चुनना । उ०-(क) भोर फल बोनवे को गए सो जाने ।-सूर (शब्द०)। फुलवाई हैं । सीसनि टेपारे उपवीत पीत पट कटि दोना वाम बीतरागी-[सं० वीतराग+ हिं० ई (प्रत्य॰) ] दे० 'वीतराग' । करन सलोने भे सवाई हैं।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) नैन उ०-सहज का ख्याल सोइ घीतरागी।-पलटु वानी, भा० किलकिला मीत फे ऐसे कहू प्रवीन । हिय समुद्र ते लेत हैं २, पृ०४०। बोन तुरत मन मीन ।-रसनिधि ( शब्द०)। बीता-संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'वित्ता' । २. छाटकर अलग करना । छाँटना। ३०-सुदर नवीन निज करन सो बीन बीन वेला की कली ये पाजु कौन धोन बीती-संज्ञा स्त्री० [सं० व्यतीत या व त] १. गुजरी हुई स्थिति या लीनी है।-प्रताप (शब्द०)। बात । २. खबर । हाल । यौ०-घीनाचोंनी =विनने पौर चुनने का काम। बीनना बोथि-सज्ञा स्त्री० [सं० वीथि ] दे० 'वीथी' । चुनना । उ०-तब रेडा श्रीगुमाई जी की प्राज्ञा मानि बीथितgf-वि० [सं० व्यथित ] दुखित । पीडित । उ०—पातकी के भंडार मे बीनाचोनी करि प्रावै। -दो सौ बावन०, पपीहा जल पान को न प्यासो काहू बीथित वियोगिनि के प्रानन को प्यासो हैं । -पद्माकर (शब्द०)। भा०२, पृ०७४ । वोथी-संज्ञा स्त्री॰ [ स० वीथि ] दे॰ 'वीथी' । उ०-बीथी बोनना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'बीधना' । सीची चतुरसम चौकै चारु पुराइ ।-मानस, ११ २६६ । बीनना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'बुन्ना' । योध-सज्ञा स्त्री॰ [सं० विधि] दे॰ 'बिघि' (प्रकार)। वीनवना@-क्रि० स० [सं० विनवन ] दे० 'बिनवना' । उ.- उ०-बुध का कोट सबल नाहाँ टूटे । ताते मनसा कीस बीध पय लग्गि प्रानपति वीनवों, नाह नेह मुझ चित धरहु । दिन लुटे ।-रामानंद०, पृ० ३२ । दिन अबद्धि जुन्बन घटय कंत वसंत न गम करहु ।-पु० रा०,११।१०। बोधना'-कि० अ० [सं० विद्ध ] फंसना । उलझना । उ०- (क) धरती बरसे बादल भीजे भीट भया पौराऊ । हंस उड़ाने बीना - संज्ञा स्त्री॰ [ स० वीणा ] दे० 'वीन' उ.-कहूँ सुदरी वेन, ताल सुखाने चहले बीघा पाऊं ।-कबीर (शब्द॰) । (ख) बीना बजावें। केशव (शब्द०)। नैना बीधे दोऊ मेरे । श्याम सुंदर के दरस परस में इत बीफै-संज्ञा पुं॰ [ सं० वृहस्पति ] वृहस्पतिवार । गुरुवार । उत फिरत न फेरे ।-मूर (शब्द॰) । (ग) कौन भांति रहिहै वीवा -संज्ञा पु० [ देश० ] मुसलमान । उ०-मरे गई कबरा महीं, बिरद अव देखबी मुरारि । बीधे मोसो प्राय के गोधे गीहि बीवा मंसवदार-बाकी० म०, भा०२, पृ०६८। तारि ।—बिहारी (शब्द०)। बीवादी-वि० [सं० विवादिन् ] दे० 'विवादी'। उ०-बकवादी पीधना-क्रि० स० दे० 'बीघना'। बीवादी निंदक, तेहिं का मुह करु काला ।-जग० था भा०२, पृ०१८। बोधा-संज्ञा पु० [सं० विधान ] यह तय करना कि इस गांव की इतनी मालगुजारी सरकारी होगी। मालगुजारी निश्चित बीबी-संज्ञा स्त्री० [फा०] १. कुलवधू । कुलीन स्त्री । २. पत्नी । करना। स्त्री। उ०—चित्त मनचैन प्रासू उमगत नन देखि बीबी कहैं वोन-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० वीण ] एक प्रसिद्ध वाजा जो सितार की बैन मिया कहियत काहि नै ।-(शब्द०)। ३. स्त्रियों के लिये प्रादरार्थक शब्द । तरह का पर उससे बड़ा होता है । ४. मविवाहिता लड़की । कन्या । (आगरा)। विशेप-इसमे दोनों ओर बहुत बड़े तू वे होते हैं जो बीच के एक लवे डांड़ से मिले होते हैं। इसमे एक सिरे से दूसरे सिरे वीवेक-संज्ञा पुं० [सं० विवेक ] दे० विवेक' । उ०-दरिया जो तक साधारणतः ५ या ७ तार लगे होते हैं जिनमें प्रत्येक में कहें जब ज्ञान नहीं वीवेक बिना बहु भेख पसारी !-संत. दरिया, पृ० ६२। अावश्यकतानुसार भिन्न भिन्न प्रकार के स्वर निकाले जाते हैं। यह व बहुत उच्च कोटि का माना जाता है और बीबेरना-संज्ञा पुं० [ सिंहाली ] एक प्रकार का वृक्ष जो दक्षिण बड़े गवैयों के काम का होता है। दे० भारत के पश्चिमी घाटों में बहुत होता है । रन-संवा पुं० [. विशेष—इस वृक्ष की लकड़ी का रंग पीला होता है और यह चोजरी-सज्ञा स्त्री = बीणा का जानकार । वीणावादक । इमारत और नावें बनाने के काम में पाती है । इसकी लकड़ी ० [सं० बिनती] विनय । दे० 'विनती' । उ० में जल्दी घुन या कीड़ा आदि नही लगता । वीजरुह-संज्ञा पुं० नि ने ऐसी बीनती करी, तब प्राकासबानी भई ।- बोभंग--वि० [ सं० विभङ ग ] चंचल । चपल | उ.-नाचत चित वीजरेचन-संज्ञा पुं० . ." { यह [ प्रायः संज्ञा पुं० [
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२८५
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