पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२९

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३२६८ फनी उ०-फकत सायक चारिहु मोर । भनंकत गोलिन की पावै ।-पलटु०, भा०१, पृ० ७६ । ३. तुप्त । गायव । घनघोर ।-सूदन (शब्द०)। प्रतर्धान । उ०-मेरी तो इन हथकंडो से रूह फना होती फन'-संशा पु० [सं० फण ] १. साप का सिर उस समय जय है। -रंगभूमि, मा०२, १० ६६२ । वह अपनी गर्दन के दोनो ओर की नलियो मे वायु भरकर मुहा०-दम फना होना = मारे भय के जान सूमना । बहुत उसे फैलाकर छत्र के भाकार का बना लेता है। फण। अधिक भयभीत होना । जैसे,- तुम्हें देराते ही लटफे का दम उ.- शेषनाग के सहस फन जामें जिह्वा दोय । नर के एक फना हो जाता है। जीभ है ताही में रह सोय ।-फवीर (शब्द०)। २. वाल । फनाना-क्रि० स० [हिं० फानना] १. प्रारंभ करना। शुरु ३. भटवास । ४. नांव के डाँड का वह अगला और घोड़ा पारना। २. तैयार करना। भाग जिससे पानी काटा जाता है। पत्ता । (लश०) । ५. फनाली@-संसरा सी [सं० फणावली ] फनो की पनि । फनों की पगला सिरा । अग्रभाग । उ०-थल वेत छुट्टी फनं वेत उट्टी। प्रवली । 30-जनम को चाली एरी अद्भुत सयाली पाजु पृ० रा०, १२।८३ ॥ काती की फनाली पै नघत बनमाली है।-पग्राफर ग्र०, फन-सञ्ज्ञा पु० [ स० फणी ] दे॰ 'फणी' । २३१ । फन--सज्ञा पु० [अ० फन] १. गुण । खूबी। २. विद्या । ३. फनाह-संश पी. [१० फना ] 20 'फना' । उ०-भयो तो दस्तकारी। ४. बाजीगरी। इद्रजाल (को०)। ५. छलने का दिली को पति देसत फनाह माज ।हम्मीर०, पृ० ३७ । ढग । मकर । उ०-नागिन के तो एक फन नारी के फन वीस । जाको डस्थो न फिरि जिऐ मरिहै विस्वा बीस । फनिंग-संज्ञा पुं० [सं० फणीन्द्र, हि० फन+इंग (प्रत्य॰)] साप । कबीर (शब्द०)। उ०-दान लेहो सब मंगनि को। प्रति मद गलित ताल फनफना-क्रि० अ० [अनु० ] हवा मे सन् सन करते हुए हिलना, फल ते गुरु इन गुग उरोज उतंगनि को। ... कोकिल कीर डोलना या चलना । फन् फन शब्द करना । फनफनाना। कपोत किसलता हाटक हंस फनिंगन को।-सूर (शब्द०)। फनकार – सज्ञा क्षी० [अनु० ] फन फन होने का शब्द वैसा शब्द फनिंद-संज्ञा पुं० सं० फणीन्द्र ] सर्प । फणोद्र । उ०-फैने जैसा साँप फे फूकने या बैल प्रादि के सांस लेने से होता है । वृद फनिंद के गैल छैल नहिं भूल । मेष पुंज तम फुज को फनकार-सज्ञा पुं० [अ० फन + फ़ा० कार ] कलावंत । गुणवाला चली अली अनुकूल ।-स० सप्तक, पृ० ३६१ । विद्वान् को०] । फनिदी-संश रसी० [हिं० फनिंद + ई (प्रत्य०) ] सपिणी । फनगना-क्रि० प्र० [सं० स्फुटन; हिं० फुनगी ] नए नए मंकुरौं नागिन । उ०-नाथि फनिदहि तोपि फनिंदी प्रगट भयो द्रुत का निकलना । कल्ला फूटना । पनपना । मध्य कलिदी।-भिखारी० ग्रं०, भा० १, पृ० २६८ । फनगा'-सज्ञा पु० [हिं० फनगना ] १. नई और कोमल डाली। फनि-संप पु० [मं० फण ] १. दे० 'फणी' । उ०-स्वाति बूंद कल्ला। २. बांस प्रादि की तीली । वरसै फनि ऊपर सीस विष होई जाई । वही बूद के मोती फनगारे-सञ्ज्ञा पु० [ स० पतङ्ग] फतिंगा। उ०-पीसी और फनगे निपज संगत को पधिकाई।-रैदास वानी, पृ० ७२ । २. इत्यादि ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० १३ । दे० 'फरण'। फनना-क्रि० प्र० [हिं० फानना ] काम का प्रारंभ होना। फनिक-संश पुं० [हिं०] २० 'फरिण' । उ०-गर ननि मन काम हाथ में लिया जाना । काम में हाथ लगाया जाना । फनिक फिरि पाई। -मानस, २।४४ । फनपति-संज्ञा पुं० [सं० फणिपति ] सपों का राजा। शेष या फनिग@-सहा . [हिं० ] दे० 'फणिक' । वासुकि । उ०-फनपति वीरन देख के, रासे फनहि सकोर । फनिगर-संग पु० [हिं० फतिंगा ] फतिंगा। फनगा । उ०-सवद -कबीर सा०, पृ०८६४ । एक उन्ह कहा अकेला। गुरु जस भिग फनिग जस चेला। फनफन-संज्ञा स्त्री॰ [ अनुध्व० ] १. बार बार फन फन शब्द होना। -जायसी (शब्द०)। २. नाक से जोर से मल बाहर निकालना। फनिधर-संशा पु० [सं० फणिधर ] साप । फनफनाना-क्रि० प्र० [अनु०] १. हवा छोड़कर वा चीरकर फनिपति-संज्ञा पुं० [सं० फणिपति ] दे० 'फणिपति' । फन फन शब्द उत्पन्न करना। जैसे, सांप का फनफनाना । २. चचलता के कारण हिलना या इधर उधर करना । फनियाना-संज्ञा पुं० [हिं० देश० ] गज डेढ़ गज लंबी करघे की उ०—छनछनत तुरंगम तरह हार । फनफनत बदन उच्छलत एक लकड़ी जिसपर तानी लपेटी जाती है और जिसके दोनों सिरों पर दो चूलें और घार छेद होते हैं। लपेटन । तुर । वार। -सूदन (शब्द०)। फनस-संज्ञा पु० [सं० पनस, प्रा० फनस ] कटहल । फनियाला-संशा पु० [हिं० फन+इयाला (प्रत्य॰)] साँप । फना-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० फना ] १. विनाश । नाश । बरवादी। २. फनिराज-संग पु० [सं० फणिराज] फणीद्र । मृत्यु । मौत । उ०—(क) फना को करे कबूल सोई वह काबा फनी'--संज्ञा पु० [ स० फणी ] दे० 'फणी'।