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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२९४

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धुद्धिक वृचियों का पूर्णरूप से नाश कर लिया। उसी अवसर पर यौ०-बुद्धगया = बिहार प्रदेश के गया जिले का वह स्थान घर से निकलने के प्रायः सात वर्ष बाद एक दिन प्राषाढ़ जहाँ बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध द्रव्य =बुद्ध की पूर्णिमा की रात को महाबोधि वृक्ष के नीचे इनको संवधी स्मृतिचिह्न । बुद्ध धर्म = दे० 'वोद्धघम' । उद्बोधन हुआ और इन्होंने दिव्य ज्ञान प्राप्त किया। उसी २. ज्ञान । बोध (को०)। ३. परमात्मा (को०)। ४. वह जो दिन से ये गौतम बुद्ध या बुद्ध देव कहलाए। इसके उपरांत ज्ञानी हो । ज्ञानवान् । संत (को०) । ये धर्मप्रचार करने के लिये काशी पाए । इनके उपदेश वुद्ध-संज्ञा पुं॰ [ स० वुद्ध ] 1. दे० 'बुध' ( ग्रह )। उ०-- सुनकर धीरे धीरे बहुत से लोग इनके शिष्य और अनुयायी सुन भयो सोम कै बुद्ध प्राय ।-हे. रासो, पृ० ६ । २. होने लगे पोर थोड़े ही दिनो में अनेक राजा, राजकुमार बुधवार । बुध का दिन । और दूसरे प्रतिष्ठित पुरुष भी इनके अनुयायी बन गए जिनमें बुद्ध-संशा स्त्री० [सं० बुधि ] बुद्धि । अक्ल । समझ । उ०- मगध के राजा विबिसार भी ये । ( क ) अष्टपदी अभ्यास करे तिहुँ बुद्ध बढ़ावै ।- उम समय तक प्रायः सारे उत्तर भारत में उनकी ख्याति हो भक्तमाल (प्रि०), पृ० ५०१ । ( ख ) बड़े पादमियो की हो चुकी थी। कई बार महाराज शुद्धोदन ने इनको देखने बुद्ध भी बड़ी ही होती है। -रगभूमि, भा० १, पृ०४६७ । के लिये कपिलवस्तु में बुलाना चाहा, पर जो लोग इनको बुद्धद्रव्य-ज्ञा पु० [सं०] बुद्ध भगवान् की अस्थि, केश, नख, बुलाने के लिये जाते थे, वे इनके उपदेश सुनकर विरक्त हो मादि स्मृतिचिह्न जो किसी स्तूप में संरक्षित हो । जाते और इन्ही के साथ रहने लगते थे। अंत में ये एक बुद्धि-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह शक्ति जिसके अनुसार मनुष्य बार स्वयं कपिलवस्तु गए थे जहाँ इनके पिता अपने बंधु- किसी उपस्थित विषय के संबंध में ठीक ठीक विचार या बांधवों सहित इनके दर्शन के लिये प्राए थे। उस समय तक निर्णय करता है। विवेक या निश्चय करने की शक्ति । शुद्धोदन को प्राशा थी कि सिद्धार्थ गौतम कहने सुनने से अक्ल । समझ। फिर गृहस्थ प्राश्रम में प्रा जायेंगे और राजपद ग्रहण कर विशेप-हमारे यहां बुद्धि पंत.करण को चार वृत्तियों में से लेंगे। पर इन्होंने अपने पुत्र राहुल को भी अपने उपदेशों से मुग्ध करके अपना अनुयायी बना लिया। इसके कुछ दिनो दूसरी वृत्ति मानी गई है और इसके नित्य और अनित्य दो के उपरांत लिच्छिवि महाराज का निमंत्रण पाकर ये भेद रखे गए हैं। इसमें से नित्य बुद्धि परमात्मा की और वैशाली गए थे। वहां से चलकर ये संकाश्य, थावस्ती, मनित्यबुद्धि जीव की मानी गई है। सारुप के मत से त्रिगुणात्मिका प्रकृति का पहला विकार यही बुद्धितत्व है; कौशांबी, राज्गृह, पाटलिपुत्र, कुशीनगर प्रादि अनेक स्थानों में भ्रमण करते फिरते थे और सभी जगह हजारों पादमी और इसी को महतत्व भी कहा गया है। सांख्य में यह भी इनके उपदेश से संसार त्यागते थे। इनके अनेक शिष्य भी माना गया है कि प्रारंभ में ज्यों ही जगत् अपनी चारों ओर घूम घूमकर धर्मप्रचार किया करते थे । इनके सुपुप्तावस्था से उठा था, उस समय सबसे पहले इसी महत् या धर्म का इनके जीवनकाल में ही वहुन अधिक प्रचार हो गया बुद्धितत्व का विकास हुपा था। नैयायिकों ने इसके अनुभूति और स्मृति ये दो प्रकार माने हैं। कुछ लोगो के मत से बुद्धि था। इसका कारण यह या कि इनके समय में वर्मकांड का जोर बहुत बढ़ चुका था और यज्ञों प्रादि में पशुओं की हत्या के इष्टानिष्ट, विपत्ति, व्यवसाय, समाधिता, संशय और प्रतिपत्ति ये पांच गुण और कुछ लोगो के मत से सुश्रूषा, बहुत अधिक होने लगी थी। उन्होने इस निरर्थक हत्या को रोककर लोगों को जीवमात्र पर दया करने का उपदेश श्रवण, ग्रहण, धारण, उह, मोह और प्रथविज्ञान ये सात दिया था। इन्होंने प्रायः ४४ वर्ष तक बिहार तथा काशी गुण हैं। पाश्चात्य विद्वान् प्रतःकरण के सब व्यापारों का स्थान मस्तिष्क मानते हैं । इसलिये उनके अनुसार बुद्धि का के आस पास के प्रांतों में धर्मप्रचार किया था। अंत में स्थान भी मस्तिष्क हो है । यद्यपि यह एक प्राकृतिक शक्ति है, कुशीनगर के पास के वन में एक शालवृक्ष के नीचे तथापि ज्ञान और अनुभव की सहायता से इसमें बहुत कुछ मे इनका शरीरात या परिनिर्वाण हुया था। पीछे से इनके कुल उपदेशों का संग्रह हुमा जो तीन भागों में होने के कारण वृद्धि हो सकती है। 'त्रिपिटक' कहलाया। इनका दार्शनिक सिद्धात यावाद या पर्या-मनीपा । धीष्णा । धी। प्रज्ञा । शेमुपी । मति । प्रेक्षा । सर्वात्मवाद था। ये संसार को कार्य कारण के अविच्छिन्न चित् । चेतना । धारण । प्रतिपत्ति । मेधा । मन । मनस् । नियम मे बद्ध और अनादि मानते थे तथा छह इद्रियों और ज्ञान । बोध । प्रतिमा। विज्ञान । सख्या। अष्टांग मार्ग को ज्ञान तथा मोक्ष का साधन समझते थे । मुहा०-'बुद्धि' शब्द के मुहा० के लिये दे० 'पक्ल' शब्द । विशेष-दे० 'बौद्ध धर्म'। २. उपजाति वृत्त का चौदहवां भेद जिसे सिद्धि भी कहते हैं। हिंदू शास्त्रो के अनुसार बुद्धदेव दस अवतारो मे से नवें अवतार ३. एक छद जिसके चारो पदों मे क्रम से १६, १४, १४, और चौबीस अवतारो मे से तेईसवें अवतार माने जाते हैं। १३ मात्राएँ होती है । इसे 'लक्ष्मी' भी कहते हैं। ४. छप्पय विष्णु पुराण और वेदात सूत्र प्रादि में इनके संबंध की बातें का ४२ वा भेद । और कथाएं दी हुई है। बुद्धिक-सञ्ज्ञा पु० [ स०] एक नाग का नाम । वृद्धावस्था