पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३१६

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पर बेधात भाव । वात । अंडबंड या बेमेल बात 1 उ०-कंकरीली राहे न बेमतलव । उ०---ऐसी वेफजूल बातों में पुलिस नही पड़ती। फटेंगी, बेपर की बातें न पटेंगी।-अर्चना, पृ० ८४ । -न्यासी, पृ० १०६ । वेपरद-वि० [फा० बे+ परद ] [ संज्ञा स्त्री० वेपरदगी ] १. जिसके बेफरमाणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० बेफर्मान + ई (प्रत्य॰)] आज्ञा का ऊपर कोई परदा न हो। जिसके प्रागे कोई प्रोट न हो। उल्लघन । आदेश न मानना। हुक्मउदूली। उ०-हिंदू अनावृत । २. नंगा। नग्न । घात करै प्रजका हरि तूं बेफरमाणी । मुख सू स्वाद करे मन बेपरदगी-उज्ञा स्त्री॰ [फा०] परदे का प्रभाव । परदा न होना। सेती जीव दया नही जाणी।-राम० धर्म०, पृ० १४२ । बेपरवा-वि० [फा० वेपरवा ] दे० 'वेपरवाह' । वेकसला-वि० [फा० बे+ फ़सल ] विना मौसम का । वे मौसम । वेपरवाई-संज्ञा सी० [फा० बेपरवाही ] दे० 'बेपरवाही'। उ० बेफायदा'-वि० [ फा वे+अ० फाइदह ] जिससे कोई फायदा न लाला ब्रजकिशोर ने वेपरवाही से कहा।-श्रीनिवास , हो । जिससे कोई लाम न हो सके । व्यर्थ का। पृ० २६६ वेफायदा-क्रि० वि० बिना किसी लाभ के । बिना कारण । व्यर्थ । बेपरवाह-वि० [फा० ] १. जिसे परवा न हो । वेफिक्र । २. जो नाहक। किसी के हानि लाभ का विचार न करे और केवल अपने बेफिकरा-वि० [हि• बे+अ० फ़िक ] जिसे किसी बात की फिक इच्छानुसार काम करे । मनमौजी । ३. उदार । या परवाह न हो। निश्चित । येपरवाहो-तज्ञा सी० [फा०] १. बेपरवाह होने का भाव । बेफिक्र-वि० [फा० बे+अ० फिक्र ] जिसे कोई फिक्र न हो। वेफिकरी । २. अपने मन के अनुसार काम करना । निश्चित । बेपरवाह । वेपर्द-वि० [फा०] [ स्त्री० वेपर्दगी ] दे० 'वेपरद' । बेफिक्री-सज्ञा स्त्री॰ [फा० बेफ़िकी ] बेफिक्र होने का पाइ@-वि० [हिं० बे+सं० उपाय ] जिसे घबराहट के कारण निश्चितता। कोई उपाय न सूझे । भौचक । हक्का बक्का । उ०-कोहर सी मुहा०-बेफिक्री की रोटियाँ बिना हाथ पांव हिलाए मिलने- एडीनि को लाली देखि सुभाइ। पाय महावर देन को प्राप वाली रोजी । सुख की रोटी। उ०-जब बेफिक्रो की रोटियां भई बेपाइ ।-बिहारी। (शब्द०)। मिलती हैं तो ऐसी सूझती है ।-पैर०, पृ० १५। वेपार'-सज्ञा पु० [ देश० ] एक प्रकार का बहुत ऊँचा वृक्ष जो वेबदल-वि० [फा० बे+श्र• बदल ] जिसकी जोड़ न हो। हिमालय की तराई में ६००० से ११००० फुट की ऊंचाई वेजोड़ । अद्वितीय । उ०—जो बेटा दिया शाह कू बेवदल । तक अधिकता से पाया जाता है। फेल । चंद्र सूरत खूब निर्मल निछल । -दक्खिनी०, पृ० ६४ । विशेष-इसकी लड़की यदि सीड़ से बची रही तो बहुत दिनों बेबस-वि० [सं० विवश ] १. जिसका कुछ वश न चले । लाचार । तक ज्यों की त्यो रहती है और प्रायः इमारत से काम पाती उ०-बेबसों पर छुरी चला करके क्यों गले पर छुरी चलाते है । इस लकड़ी का कोयला बहुत तेज होता है और लोहा हो। -चुभते०, पृ० ३४ जिसका अपने ऊपर कोई अघि- गलाने के लिये बहुत अच्छा समझा जाता है। इसकी छाल कार न हो । पराधीन । परवश । से जगलों में झोपड़ियां भी छाई जाती हैं । बेबसी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बेबस+ई (प्रत्य॰)] १. वेबस होने वेपारी२-संशा पु० सं० व्यापार ] दे० 'व्यापार का भाव । लाचारी । मजबूरी । विवशता । २. पराधीनता। वेपारी-सज्ञा पुं० [स० व्यापारी] दे० 'व्यापारी'। परवशता । बेपीर-वि० [फा० बे+हिं० पीर ( = पीड़ा) १. जिसके हृदय में वेबहा-वि० [हिं० वे + बाहा ] विना बाहा पर्थात् बिना बांध किसी के दुःख के लिये सहानुभूति न हो। दूसरों के कष्ट को का । वधनविहीन । मुक्त । स्वच्छद । उ०-भूमि हरी भई कुछ न समझनेवाला । २. निदेय । वेरहम । गैले गई मिटि नीर प्रवाह बहा वेबहा है ।-ठाकुर०, वेपदो-वि० [हिं० वे+पेंदा ] जिसमें पेंदा न हो। जो पेंदा न पृ० १०॥ होने के कारण इधर उधर लुढकता हो। बेबाक-वि० [फा० बेबाक़ ] जो चुका दिया गया हो। जो अदा मुहा०-वेदी का लोटा = वह सीधा सादा प्रादमी जो दूसरों कर दिया गया हो। चुकता किया हुआ। चुकाया हुमा। के कहने पर ही अपना मत या कार्य प्रादि बदल देता हो । २. जिसमें प्रब कुछ वाकी या शेष न हो। बिना किसी बाधा किसी के जरा से कहने पर अपना विचार बदलनेवाला के । पूरी तौर से। उ०-फाटे परवत पाप के गुरु दादू की प्रादमी। हॉक । रज्जब निकस्या राह उस पाप मुकत वेवाक ।- वेप्रमाण-वि० [सं० वि+प्रमाण ] अत्यधिक । असंख्य । जिसका रज्जक०, पृ०३। प्रमाण न हो। उ०-हमारे प्रधान पुरुषों की मृत्युसंख्या बेबाको संज्ञा स्त्री॰ [फा० बेबाक़ी ] १. घृष्टता । निर्लज्जता । २. वेप्रमाण बढ़ी है। --प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० २७३ । निर्भयता । निडरता को०] । बेफजूल-वि० [उच्चा० बे (भागम)+ १० फ़ुज ] व्यर्थ । वेकार। वेवात-वि० [फा० बे+ हिं० बात ] १. अनवसर। वेमौका ।