पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३२०

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प्रकार बेक्ष घेलवाना फूल । उ०—सिय तुव अंग रंग मिलि अधिक उदोत । हार वेलदारी-संज्ञा स्त्री० [फा० ) फावड़ा चलाने का काम । वेलदार बलि पहिरावी चंपक होत ।-तुलसी प्रपृ० १६ । का काम। वेल-वि० [ सं० द्वि>प्रा० यि, ये + एल (प्रत्य० ) ] वेलन'--संज्ञा पुं० [सं० चलन ] १. लकड़ी, पत्थर या लोहे प्रादि दो । युग्म । उ०-जद जागू तद एकली जब सोऊं तव का बना हुमा वह भारी, गोल और दड के आकार का खंड वेल ।-ढोला०, दू० ५११ । जो अपने पक्ष पर घमता है और जिसे लुढ़काकर किसी चीज को पीसते, किसी स्थान को समतल करते, प्रथवा बेला-वि० [सं० / भेलय, या हिं० मेल ] मददगार । सहायक । फंकड़, पत्थर कूटकर सड़कें बनाते हैं। रोलर । २. किसी सापी। द० 'वेली' । उ०-संग जैतावत साहिबी, दूंजो जैत यत्र आदि में लगा हुघा इस प्राकार का कोई बड़ा पुरजा दुझल्ल । जैत कमधा वेल जे, भाजण देत मुगल्ल ।-रा० जो घुमाकर दबाने श्रादि के काम मे प्राता है । जैसे, छापने रू०, पृ०१२४॥ की मशीन का वेलन । ऊख पेरने की कल का वेलन । ३. बेलका-संशा पु० [ देश०] फरसा । फावड़ा । कोल्हू का जाठ । ४. करघे मे का पोसार । वि० दे० 'पोसार'। बेलकी-संज्ञा पु० [देश] चरवाहा । ५. रुई धुनकने की मुठिया या हत्था। वि० दे० 'धुनकी' । पलकुन-संज्ञा पु० [ देश०] नछिकनी जाति को एक ६. कोई गोल और लबा लुढ़कनेवाला पदार्थ । जैसे, छापने की लता। को कल मे स्याही लगानेवाला बेलन । ७. दे० 'बेलना'। विशेष-यह लता पजाब की पहाड़ियों पोर पच्छिमी हिमालय बेलन २-सना [ देश ] १. एक प्रकार का जड़हन धान । २. एक मे ५००० फुट की ऊंचाई तक पाई जाती है। यह लका में मिलाई हुई वे दो नावें जिनकी सहायता से डूबी हुई नाव और मलाया द्वीप में भी होती है । वर्षा ऋतु के प्रत में इसमें पानी में से निकाली जाती है । पीलापन लिए सफेद रंग के बहुत छोटे छोटे फूल लगते हैं । बेलनदार-वि० [हिं० बेलन + फा० दार (प्रत्य॰) ] बेलनवाला । वेलखजी-सचा पु० [ देश० ] एक प्रकार का बहुत ऊंचा वृक्ष जिसको जिसमे वेलन लगा हो। हीर की लकड़ी लाल होती है । बेलना'-संज्ञा पुं० [सं० वलन ] काठ का बना हुआ एक प्रकार विशेष—यह वृक्ष पूर्वीय हिमालय मे ४००० फुट की ऊंचाई का लंबा दस्ता जो बीच में मोटा और दोनों ओर कुछ पतला तक होता है जिससे चाय की संदूक, इमारती और पारायशी होता है और जो प्रायः रोटी, पूरी, कचौरी प्रादि की लोई सामान तैयार दिए जाते हैं । वृक्ष को काटने के बाद इसकी को चकले पर रखकर वेलने के काम आता है। यह कभी जड़ें जल्दी फूट आती हैं । कभी पीतल पादि का भी बनता है । वेलगगरा-संज्ञा स्त्री० [ देश• ] एक प्रकार की मछली । बेलना-क्रि० स० १. रोटी, पूरी, कचौरी प्रादि को चकले पर वलगाम-वि० [फा० बेलगाम ] वल्गारहित । निबंध । सरकश । रखकर वेलने की सहायता से दबाते हुए बढ़ाकर बडा और अंकुश न माननेवाला। पतला करना । २. चौपट करना । नष्ट करना। मुहा०-बेलगाम होना = (१) निबंध होना। सरक्श होना। मुहा०-पापड़ बेलना = काम बिगाड़ना । चौपट करना । (२) विना विचार वोलना । अंड बंड बोलना । ३. विनोद के लिये पानी के छीटे उड़ाना । उ०-पानी तीर बेलगिरी-सज्ञा सी० [हिं० बेल+गिरी मींगी ) ] वेल के जानि सब बेलै । फुलसहिं करहिं पाटाकी केले । - जायसी (पाद०)। फल का गूदा। बेलपत्ती-सा स्रो० [हिं० ] दे० 'बेलपत्र' । बेलचका-सज्ञा पु० [फा० वेलचह ] : 'वेलचा'। बेलचा-सज्ञा पुं० [फा० वेलचह ] १. एक प्रकार की छोटी बेलपत्र- पुं० [सं० विल्वपत्र ] बेल के वृक्ष की पत्तियां जो कुदाल जिससे माली लोग बाग की क्यारियां मादि बनाते हर एक सीक मे ३-३ होती है, और जो शिव जी पर चढ़ ई जाती हैं। हैं। २. कोई छोटी कुदाल । कुदारी । ३. एक प्रकार की लवी खुरपी। वेलपात-सशा पु० [सं० चिल्वपत्र ] दे० 'वेलपत्र। चेलज्जत-वि० [फा० पेलज्जत ] १. जिसमें किसी प्रकार का स्वाद बेलपागुरा-सशा पुं० [हिं० ] हिरनों को पकड़ने का जाल । न हो। स्वादरहित । २. जिसमें कोई सुख न मिले । जैसे, बेलबूटेदार-वि० वि० [हिं० वेलबूटा + फा० दार (प्रत्य॰)] गुनाह वेलज्जत । जिसमें वेलबूटे बने हो । बेलबूटोंवाला । बेलड़ी-संशा नी० [हिं० बेल +डी (प्रत्य० ) ] घोटी वेल या घेलमाना-कि० स० [हिं० यिलमानt ] दे० 'विल माना। 'लता। बीर | उ०-चंदबदन मृगलोचनी हो कहत सकल बेलवाती-रात सी० [सं० बिल्वपत्रा ] विल्वपत्र । वेलपत्ती । संसार । कामिनि बिप को वेलड़ी हो नख शिख भरी विकार | उ०-वेलवाती महि परै सुखाई। तोनि सहम संधत सोड -सुदर म०, भा० २, पृ० ६१८ । खाई।-राम०, पृ० ४६ । बेलदार-संशा पु० [फा०] वह मजदूर जो फावड़ा चलाने या जमीन चेलवाना-क्रि० स० [हिं० वेलना ] वेलने का काम किसी दूसरे तोदने का काम करता हो। से लेना । जैसे, पूरी बेलवाना ।