पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३२१

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चेलसना ३५६० चेवटना वेलसनाg-क्रि० प्र० [ स० विलास+ना (प्रत्य०)] भोग वेलि --सझा मो[ सं० परलो ] लता। दे० 'बेल'। उ०-इन करना । सुख लूटना । पानंद करना । लिये हुए कई ग्रथ कहे जाते है जिनमें 'वेलि निमन विमयो वेलहरा-सज्ञा पु० [हिं० वेल (= पान) + हरा (= धारक) री' भी।--अकबरी, पृ० ४२ । (प्रत्य०) [ स्त्री अल्पा० चेलहरी ] लगे हुए पान रखने के लिफ-राजा पुं० [40] दीगनी अदालत मा वह कर्मचारी लिये एक लबोतरी पिटारी जो वांस या धातुप्रो प्रादि की जिसका काम अदालत में हाजिर न होनेवाले को गिरफ्तार बनी होती है। करना और माल फुक करना प्रादि है। वेलहरो-सज्ञा पु० [हिं० वेल + हरी (प्रत्य॰)] साँची पान | वेलिया-संशा ग्री० [हिं० वेला का अल्पा० छोटी कटोरी। बेलहाजो-संज्ञा स्त्री० [हिं० वेल+हाजी ? ] घोती प्रादि के किनारों वेलिहाज-वि० [फा० वे + निशान ] नि:संकोच । निलंग्न । पर लहरिएदार बेल छापने का लकड़ी का ठप्पा । पदब फायदे का स्याल न रखने वाला। २. वे मुरवत [को०] । वेलहाशिया-संज्ञा पुं० [हिं० वेल+हाशिया] घोती प्रादि के वेली-मंग पुं० [ मं० यता, राजवेल (= सहायता)] सापी। फिनारों पर वेल छापने का ठप्पा । सगी । जैसे, गरीबों का वेली पल्लाह है।-(कहावत)। वेला'--संज्ञा पुं० [सं० मल्लिक ] १. चमेली प्रादि की जाति का उ०- (क) सोरह से मंग पली सहेली। केवल न रहा और छोटा पौधा जिसमें सफेद रंग के मुगधित फूल लगते हैं । को बेली।-जायमी (शब्द०)। (स) ऐहें वेली रली रैली विशेष—ये फूल तीन प्रकार के होते हैं-(१) मोतिया, जो उचित प्रदन |-छीत०, पृ० ३६ । मोती के समान गोल होता है, (२) मोगरा जो उमसे बडा घेली२-संशा हा देश ] एक प्रकार का छोटा कंटोला वृक्षा और प्रायः सुपारी के बराबर होता है और (३) मदन- जो ग्रीष्म मे फूलता है और जाडे में फलता है । बान, जिसकी कली प्रायः एक इंच तक लवी होती है। विशेष-हिमालय में यह वृक्ष ४००० फुट तक की चाई पर २. मल्लिका । यिपुरा । ३. बेले ही फूल के प्राकार का एक मिलता है और दक्षिण भारत में भी पाया जाता है । यह प्रकार का गहना। गरमी के दिनों में फूजता पोर जाते में फलता है । इसके वेला २-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० वेला] १. लहर। उ०-वेला सम बढि सागर भिन्न भिन्न अंगों का ध्यवहार प्रोषधि के रूप में होता है। रण मैं । लव कह कूल सरिस तेहि क्षण में। -रामाश्व० इसकी लकड़ी पीले रंग की और फटी होती है। जावा में (शब्द०)। २. चमड़े फी बनी हुई एक प्रकार की छोटी इस फल कपडा धोने के काम में घाते हैं। कुल्हिया जिसमें एक लवी लकही लगी रहती है और जिसकी सहायता से तेल नापते या दूसरे पात्र में भरते हैं। ३. वेहिलाज-वि० [ फा० वे+लिदाज ] १.निःसंकोच । निर्लज्ज । क्टोरा । उ०-वेला भरि हलधर को दीन्हों। पीवत पे बल पदव कायदे का म्यान न रखनेवाला । २. बेमुरवत (को०] । अस्तुति कीन्हो ।—सूर (शब्द॰) । ४. समुद्र का किनारा। वेलुत्फ-वि० [फ० बलुत्फ ] [ संशा वेलुरफी ] पानंदरहित । उ०-बरनि न जाइ कहाँ लो वन्नो प्रेम जलघि वेना बल चेमजा [को०)। बोरे -सूर (पाब्द. )। ५. समय । वक्त । ६. दे० 'वेला'। वेलीस-वि० [हिं वे + फा० लोस ] १. सच्चा । खरा। जैसे, बेला-सज्ञा पुं० [हिं० एक तंत्रवाद्य । २० 'बेहला'। उ०- वलोम प्रादमी। २. बेमुरव्वत । (क्व०) । हमने डाक बंगाली को देखा कि जब वह वेना बजाने लगता लकत-वि० [फा० चेवकत ] बिना व रुत या प्रतिष्ठा का। नगनय प्राप भी मस्त हो जाता।-रस क० (भू०), पृ०६ । तुच्छ । साधारण का०] । वेलाग--वि० [फा० वे+हिं० लाग (=लगावट)] १. जिसमें किसी वेवकूफ-वि० [फा० देवकूफ ] जिसे पिसी प्रकार का वकूफ या प्रकार की लगावट वा सबध न हो। बिल्कुल अलग । २. शाऊर न हो । मूर्स । निर्बुद्धि । नासमझ । वेवकूफी-मज्ञा स्त्री॰ [फा० वेवकतो ] देवकूफ होने का भाव । वेलाडोना-संज्ञा पु० [अ० ] मकोय का सत्त जो प्रायः अंगरेजी मूर्खता । नादानी । नासमझी । दवाप्रो मे खाने या पीड़ित स्थान पर लगाने के काम मे वेवक्त-क्रि० वि० [फा० धेयक्त अनुपयुक्त समय पर। कुसमय मे । प्राता है। मुहा०-वेवक्त का राग = दे० 'वेवक्त की शहनाई' । देवक्त की वेलावल-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बिलावल' । शहनाई = वे मौके फी चीज । प्रामामयिक वस्तु या क्रिया । बेलासा-पज्ञा पु० [ स० विला ] ६० "विलास' । उ०-भोग वेवजा@+-वि० [फा० + वजन (= ढंग) ] बेढंगा। भद्दा । वेलास सवै विछु पावा । - जायसी ग्र० (गुम), पृ० ३४५ । उ०-हमा वेवजा 6प जो फा लहाँ। न पलको, न ताको बेलासना -क्रि० प्र० [ स० विलासन ] दे० 'विलसना' । उ० कट्या, ना भवा । -दक्खिनी० पृ० ६० । पुहप वेलासा सब भ्रभ नासा भरि भरि अम्रित सो पाई। वेवटा-ज्ञा पु० [ स० विवर्त या व्यादतं ] विवशता । संकट की अति मुख सागर सव गुन घागर दरिया दरसन सो पाई। स्थिति । लाचारी। -संतक दरिया, पृ०७॥ चेत टना-त्रि० प्र० [सं० विवर्तन ] १. परिवर्तित होना । लगा साफ । खरा।