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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३२७

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बैठक खेल । - वैखानविद बैखानविदा-वि० [सं० व्याख्यानविद् ] व्याख्या करनेवाले । झटको ।-रसखान०, पृ० १८ । (ख ) सारी तन सजि व्याख्याकार टीकाकार । उ०-जो पडित वैखानविद सो वैजनी पग पैजनी उतारि। मिलु न वैजनी-माल सो सजनी पुनि भाषा चाहि । निंदति हैं प्रजवानि को पहुंचत बुद्धि न रजनी चारि । -भारतेंदु ग्र, भा० २, पृ० ७८५ । जाहि । -पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ५४२ । बैजयती-जमा स्त्री० [स० वैजयन्ती ] वैजती । वैजयती । बैखानस-वि० [स० वैखानस ] दे० 'वैखानस' । उ०-वैखानस सोई बैजला -सज्ञा पुं० [ देश०] १. उदं का एक भेद । २. काही का सौचै जोगू । तप बिहाइ जेहि भावै भोगू ।-मानस, १।१७३ । बैग-संक्षा पु० [मं०] १. थैला । झोला । वोरा । २. टाट का वह बेजवी-वि० [अ० वैज़बी ] दे० 'वैजाची' । थैला जिसमे यात्री अपना असबाब भरकर हाथ में लटकाकर वैजा-सज्ञा पु० [अ० वैज़ह, ] १. पंडा । २. एक प्रकार का फोड़ा साथ ले जाते हैं। जिसके भीतर पानी होता है। फफोले की तरह का फोड़ा । बैगन-सञ्चा पु० [हिं० ] दे० 'वैगग' । गलका | २. अडकोश (को०)। ४. गिराहियो के सिर पर वैगना-सज्ञा पु० [हिं० बैंगन ] एक प्रकार का पकवान या पकौड़ी की लोहे की टोपी (को०) । ५. सिरदर्द (को०) । जो बैगन आदि के टुकड़ो को बेसन मे लपेटकर भोर तेल मे वैजावी-वि० [फ़ा॰ बैजाय] पंडाकृति । महाकार । उ०- बूझा तलकर बनाई जाती है। पत्थर के खड़ में से चिप्पट ठोककर बनाया हुप्रा वैजाबी वैगनी-वि० [हिं वैगन ] दे० 'बैंगनी' । (भंडाकृति ) पहले का सुगठित मोजार नभंदा की उपत्यका बैगनी-सच्चा स्त्री० दे० 'बैगन' । मे तृतीयकोत्तर (पोस्ट टशियरी ) युग कंकरीली धरती वैजंती-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० वैजयन्ती] १. फूल के एक पौधे का नाम । में पाया गया था ।-हिंदु० सभ्यता, पृ० ११ । वैजयंती । उ०—राजति उर वैजती माल । घलत जु मत्त वैजिक'- वि० [सं०] [ वि० श्लो० बैजिको ] १. वीज सबधी । द्विरद की चाल ।-नद० प्र०, पृ० २६३ । २. मूलभूत । मूलगत । ३. परंपराप्राप्त । पैतृक । ४. विषय विशेष-इसके पत्ते हाथ हाथ भर तक के लबे पोर चार पांच संबंधी। संभोग से संबद्ध [को०] । अगुल घोड़े धड़ या मूल काड से लगे हुए होते हैं। इसमें चैजिक-संञ्चा पुं० १. अकुर । २. हेतु । कारण । ३. श्रात्मा । टहनिया नही होती, केले की तरह कांड सीधा ऊपर की ४. शिम का तेल [को०] । पोर जाता है। यह हलदो और कचूर जाति का पौधा है । वैट-संज्ञा पुं० [अ०] क्रिकेट के खेल में गेंद मारने का ईहा जो प्रागे फाड के सिर पर लाल या पीले फूल लगते हैं । फूल लवे पौर की मोर चौड़ा पौर चिपटा होता है। बल्ला । कई दलो के होते हैं और गुच्छो में लगते हैं। फूलों की जड़ बैटरी-संज्ञा स्त्री॰ [पं०] १. चीनी या शीशे आदि का पाय जिसमें मे एक एक छोटी घुडी हाती है जो फूल सूखने पर बढ़कर रासायनिक पदार्थों के योग से रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बौड़ी हो जाती है। यह बोड़ो तिकोनी और लबोतरी होती बिजली पैदा करके काम में लाई जाती है । २. तोपखाना । है जिसपर छोटी छोटी नोक या कँगूरे निकले रहते है। वैटा-सज्ञा नो [देश॰] रूई प्रौटने को ची । प्रोटनी । वोड़ी के भीतर तीन कोठे होते हैं जिनमें काले काले दाने भरे बैठ-सचा पु० [हिं० बैठना ( = पड़ता पड़ना)] सरकारी मालगुजारी हुए निकलते हैं। ये दाने कड़े होते हैं और लोग इन्हे छेदकर या बगान या उसकी दर। राजकीय कर या उसकी दर । माला बनाकर पहनते है । यह फूलो के कारण शोभा के लिये बैठक -सशा मा० [हिं० बैठना ] १. वैठने का स्थान । उ०-चरण वगीचे मे लगाया जाता है । संस्कृत में इसे वैजयती कहते हैं । सरोवर समोप किधौ बिछिया, क्वणित कलहनि की बैठक २. विष्णु की माला। बनाय की।- केशव (शब्द०)। २. वह स्थान जहाँ कोई बैठता वैजनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० वैजयन्ती ] दे० 'वैजती' । उ०-मोर हो अथवा जहाँपर दूसरे लाग माकर उसके साथ बैठा करते पच्छ चंदा एह माथे निव बैजनी माला।-त. दरिया, हो । चौपाल । प्रथाई । उ०-वह पानी बैठक में पलंग पर पृ० १०३। लेटा है, उसकी मांख कड़ियो से लगी हैं, भौहे कुछ ऊपर को बैज-संज्ञा पु० [अं०] १. चिह्न । २. चपरास । खिच गई हैं भोर वह चुपचाप देवहूति की छवि मन ही मन बैजई -वि॰ [ पं० बैजा (= अंडा ) ] हलके नीले रंग का । खीच रहा है। -मखिला० (शब्द०)। वैजई-सञ्ज्ञा पुं० एक रंग जो बहुत हलका नीला होता है । इस रंग यौ०-बैठकखाना-बैठने का स्थान । की रंगाई लखनऊ मे होती है। ३. वह पदार्थ जिसपर बैठा जाता है । मासन । पीठ । उ०- विशेप-कौवे के पडे के रंग से मिलता जुलता होने के कारण (क) अति पादर सो बैठक दोन्हों। मेरे गृह च द्रावलि आई इस रंग को लोग वैजई कहते हैं । अति ही पानंद कीन्हो ।—सूर (शब्द०)। (ख) पिय प्रावत बैजनाथ-संज्ञा पुं॰ [ स० वैद्यनाथ ] दे० 'वैद्यनाथ' । अंगनैया उठि के लीन । साथै चतुर तिरियवा बैठक दीन ।- बैजनी-वि० [हिं० बैंगनी ] हलके नीले रग घा। वैजनी । उ० रहिमन (शब्द०)। ४. किसी मूर्ति या खभे भादि के नीचे की (क) सुभ काछनी बैजनी पैजनी पायन मामन मैन लय चौकी। प्राषार । पदस्तल । ५.बैठरे का व्यापार। बैठाई।