पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३२८

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पटना बैठकयाज ३५६७ जमाव । जमावडा । जैसे,—उसके यहाँ शहर के लुच्चों की वैठक होती है। यो०-बैठकबाज । ६. अधिवेशन । सभासदों का एकत्र होना । जैसे, सभा की बैठक । ७. बैठने का ढंग या टेव । जैसे, जानवरो की बैठक । ८. साथ उठना बैठना । संग । मेल । उ•-माथुर लोगन के संग की यह बैठक तोहि अजी न उबीठी। केशव (शब्द०)। १०. कांच या धातु प्रादि का दीवट जिसके सिरे पर बची जलती या मोमबत्ती खोसी जाती है। वैठकी। उ०-बैठक और हंडियों मे मोमबत्तियां जल रही हैं।-अधखिला० ( शब्द०)। ११. एक प्रकार की कसरत जिस में बार बार खड़ा होना और बैठना पड़ता है। वैठकबाज-वि० [हिं० बैठक +फा० घाज़ ] जमावड़े में बैठने- वाला । धूर्त । चालाक। शरारती । उ०-साधारण बुद्धि का मनुष्य ऐसी परिस्थिति में पडकर घबडा उठता है, पर बैठकबाजों के माथे पर बल नहीं पड़ता।-गवन, पृ० १५० । वैठका-संज्ञा पुं० [हिं० बैठक] वह चौपाल या दालान प्रादि जहाँ कोई बैठता है और जहां जाकर लोग उससे मिलते या उसके पास बैठकर बातचीत करते हों । वैठक | २. प्रासन । प्राधार । वैठकी। उ०-कनक सिंहासन बैठका, घोढ़न अंचर चीर । -धरनी० बानी, पृ० ५४ । वैठकी'-संज्ञा स्त्री० [हिं० बैठक + ई (प्रत्य॰)] १. वार बार बैठने और उठने की कसरत । बैठक २. प्रासन । प्राधार । उ०-कनक भूमि पर कर पग छाया, यह उपमा एक राजत । कर कर प्रति पद प्रति मणि बसुधा कमल बैठकी साजत । —सूर (शब्द॰) । ३. दे० 'बैठक-२, ४,८' । बैठको-संज्ञा स्त्री० [हिं० वैठना ] वह कर जो जमीदार की ओर से बाजार में बैठनेवाले बनियों और दुकानदामों प्रादि पर लगाया जाता है । घरतराई। वैठन -संज्ञा स्त्री० [हिं० बैठना ] १. बैठने की क्रिया । २. वैठने का ढंग या दशा। उ०-धनि यह मिलन धन्य यह बैठक धनि अनुराग नहीं रुचि थोरी। धनि यह प्ररस परस छवि लूटन महा चतुर मुख भोरे भोरी ।—सूर (शब्द०)। ४. बैठक । प्रासन। चैठना-क्रि० प्र० [सं० वेशन, विष्ठ; प्रा० यिठ +हिं० ना या म० चितिष्ठति, प्रा० बइ8 ] १. पुढे के बल किसी स्थान पर इस प्रकार जमना कि धड़ ऊपर को सीधा रहे और पैर घुटने पर से मुडकर दीहरे हो जायं। किसी जगह पर इस प्रकार टिकना कि कम से कम शरीर का प्राधा निचला भाग उस जगह से लगा रहे । स्थित होना । प्रासीन होना । श्रासन जमाना। उ०—(क) बैठो कोइ राज पो पाटा। पंत सबै धेसे पुनि घाटा । —जायसी (थब्द०) । (ख) बैठे बरासन राम जानकि मुदित मन स रथ भए।-तुलसी (शब्द॰) । (ग) बैठे सोह काम रिपु कैसे । घरे शरीर शांत रस जैसे ।- तुलसी (शब्द॰) । (घ) शोभित बैठे तेहि सभा, सात द्वीप के भूप । वह राजा दशरथ लसे देव देव पनुरूप |-केशव (शन्द०)। संयो० कि०-जाना। मुहा०-कहीं या किसी के साथ बैठना उठना = (१) संग में समय बिताना। कालक्षेप करना । 30-जाइपाइ जहां तहाँ वैठि उठि जैसे तैसे दिन तो वितायो बधू बीतति हैं कैसे राति ।- पद्माकर (शब्द०) । (२) रहना । संग में रहना। संगत में रहकर बातचीत करना या सुनना । बैठे टाले= विना काम काज के खाली बैठे रहनेवाले । उ०—फिर किसी भाव का स्वरूप दिखाकर बैठनेवाले लोगों को एक प्रकार के प्रानंद का अनुभव करा देता है।-रस० पृ०६८ । बैठे- विठाए = (१) अकारण । निरर्थक । जैसे,-बैठे विठाए यह झगड़ा मोल लिया। उ०-एक रोज बैठे बिठाए किसी ने शगूफा छोड़ा कि हुजूर घल के पहाड़ की सैर कीजिए- सैर०, पृ० १५ । (२) अचानक । एकाएक । जैसे-बैठे बिठाए यह प्राफत कही ये प्रा पड़ी। बैठे बैठे=(१) निष्प्र- योजन । (२) अचानक । (३) अकारण। बैठे रहो = (१) पलग रहो । हाथ मत लगायो । दखल मत दो। तुम्हारी जरूरत नही । (२) चुप रहो । कुछ मत बोलो । वैठे दंड = एक कसरत जिसमें दंड करके बैठ जाते हैं और वैठते समय हाथो को कुहनी पर रखकर उकडू बैठते हैं । इनके अनंतर फिर दंड करने लगते हैं। उठ बैठना=(१) लेटा न रहना । (२) जाग पड़ना । जैसे,—खटका सुनते ही वह उठ बैठा । बैठते उठते = सदा । सब अवस्था में, हरदम । जसे,-वैठते उठते राम नाम जपना । बैठ रहना = (१) देर लगाना । वही का हो रहना । जैसे,—बाजार जाकर बैठे रहे। (२) साहस त्यागना या निराश होना हारकर उद्योग छोड़ देना । २. किसी स्थान या अवकाश में ठीक रूप से जमना। ठीक स्थित होना । जैसे, चूल का वैठना, अंगूठी के प्याले मे नग का वैठना, सिर पर टोपी का बैठना, छेद में पेच या वील बैठना। मुहा०-नस बैठना=सरकी हुई नस का ठीक जगह पर प्रा जाना । मोच दूर होना। हाथ या पैर बैठना टुट्टा या उखड़ा हुप्रा हाथ पैर ठीक होना। ३. कैड़े पर पाना । ठीक होना । सभ्यात होना । जैसे,-विसी काम में हाथ वैठना । ४. पानी या अन्य द्रव पदार्थों में मिली हुई चीजों का नीचे तह में जम जाना । जल धादि के स्थिर होने पर उसमें घुनी वस्तु का नीचे प्राधार मे जा लगना । ५. पानी या भूमि मे किसी भारी चीज का दाव पादि पाकर नीचे जाना या धंसना । दबना या बना । जैसे, नाव का पैठना, मकान का बैठना, प्रत्यादि । ६. सूजा या उभरा हुमा न रहना । दबकर बराबर या गहरा हो जाना। पत्रका जाना । घसना । जैसे, प्रांस बैठना, फोड़ा पैठना । ७. (कारबार) चलता न रहना । दिगड़ना। जैसे, कोठी