पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३४१

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बौद्ध ३५८० वीर बौद्ध-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० घौद्धी] १. वुद्ध द्वारा प्रचारित या हो जाते हैं। पर उसके कर्म के कारण फिर उन संडों के बुद्ध संगधी। जैसे, वौद्ध मत । २. बुद्धि या समझ सनंषी। स्थान पर नए नए सड उत्पन्न हो जाते हैं और एक नया जीव बौद्धिक । दिमागी (को०)। उत्पन्न हो जाता है। हम नए और पुराने जीव में केवल फर्म-संबंध सूत्र रहता है। इसी से दोनों को एक कहा बौद्धर--संज्ञा पुं० गौतम बुद्ध का अनुयायी। करते हैं। धौद्धधर्म-संज्ञा पु० [स०] वुद्ध द्वारा प्रवर्तित धर्म । गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म की दो प्रधान शाखाएं हैं-हीनयान और महायान । का सिखाया मत । हीनयान बोद्ध मत का विशुद्ध और पुराना रूप है । महायान विशेष-सबोधन (संबोधि) प्राप्त करने उपरांत शाक्य मुनि उसका अधिक विस्तृत रूप है, जिसके अंतर्गत बहुदेवोपासना गया से काशी पाए और यहां उन्होने अपने साक्षात् किए हुए और तंत्र की प्रियाएँ तक हैं। हीनयान का प्रचार वरमा, धर्ममार्ग का उपदेश प्रारंभ किया। 'पार्य सत्य' और 'द्वादश स्याम और सिंहल मे है; और महायान फा तिब्बत, मगोलिया निदान' (या प्रतीत्यसमुत्पाद) के अंतर्गत उन्होने अपने चीन, जापान, मंचूरिया प्रादि मे है। इस प्रकार बौद्ध मत सिद्धांत की व्याख्या की है। प्रार्य सत्य के अंतर्गत ही के माननेवाले अब भो पृथ्वी पर सबसे अधिक हैं। प्रतिपद् या मार्ग है । इस नवीन मार्ग का नाम, जिसका बौद्धमत-मज्ञा पु० [ स० ] दे० 'बौदप धर्म' । साक्षात्कार गौतम को हुप्रा 'मध्यम प्रतिपदा' है । इस मध्यम वौद्धिक-वि० [स०] बुदिध या ज्ञान से संबद्ध । दिमागी । उ०- मार्ग की व्याख्या भगवान बुद्ध ने इस प्रकार की है--'हे वे युग की संदेहात्मक एव बौद्धिक प्रवृत्ति से अछूते न वच भिक्षुनो ! परिव्राजक को इन दो अतों का सेवन न करना सके।-हिं० फा०प्र०, पृ० १०३ । चाहिए। वे दोनो अंत कौन हैं ? पहला तो, काम या विषय बौद्धिकता-सशा सी० [स० ] बौद्धिक होने की स्थिति, भाव या में सुख के लिये अनुयोग करना । यह अंत मत्यंत दीन, क्रिया। ग्राम्य, अनार्य और पनर्थसंहित है। दूसरा है, शरीर को चौध'-संज्ञा पु० [स०] बुध का पुत्र पुरुरवा । क्लेश देकर दुःख उठाना। यह भी प्रनार्य और मनर्थसंहित है । हे भिक्षुप्रो ! तथागत ने (मैंने) इन दोनों अतों को त्याग चौधg२-सा पु० [सं० बौद्ध ] दे० 'बौद्ध' । उ०-(क) जोगी कर मध्यमा प्रतिपदा (मध्यम मार्ग) को जाना है।' जैन जंगम संन्यासी बनवासी योध, और फोक भेष पक्ष मार्ग प्रार्य सत्यों में चौथा है। चार आर्य सत्य ये हैं-दुःख, सब भ्रम भान्यो है। -सुदर , भा० २. पृ० ३६६ । (ख) बोध पाते हैं, वैस्तव प्राते हैं । -रंगभूमि, भा० २, दुःखसमुदय, दु.खनिरोध और मार्ग। पहली बात तो यह पृ० ४६५. है कि दुःख है। फिर, इस दुःख का कारण भी है। कारण है तृष्णा । यह तृष्णा इस प्रकार उत्पन्न होती है। मूल है चौधायन-संशा पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि जिन्होंने श्रौतसूत्र, अविद्या । अविद्या से संस्कार, संस्कार से विज्ञान, विज्ञान गृह्यसूत्र पौर धर्मसूत्र की रचना की थी। से नामरूप, नामरूप से पहायतन (द्रियां और मन) बौन-संज्ञा पुं० [सं० वामन ] दे० 'बौना' । उ०-ज्यो निरमल षडायतन से स्पर्श, स्पर्श से वेदना, वेदना से तृष्णा, तृष्णा से निसिनाथ कौं, हाथ पसारे बौन ।-नंद• पं०, पृ० १२४ । भव, भव से जाति (जन्म), जाति या जन्म से जरामरण, पौना-संशा पुं० [सं० वामन ] [ सी० पानी ] बहुत छोटे डोल का इत्यादि । निदानो द्वारा इस प्रकार कारण मालूम हो जाने मनुष्य । बहुत छोटा प्रादमी जो देखने में, लड़के के समान पर उसका निरोप आवश्यक है, यह जानना चाहिए । पंत जान पड़े, पर हो पूरी अवस्था का । अत्यंत ठिगना या नाटा में उस निरोष का जो मार्ग है, उसे भी जानना चाहिए। इसी मनुष्य । २०-तह हो कवन निपट मतिमंद । बौना पे मार्ग को निरोधगामिनी प्रतिपदा कहते हैं । यह मार्ग मष्टांग पकरावी चद।-नंद०प्र०, पृ० २१६ । है । पाठ अंग ये हैं-सम्यकदृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक्वाचा, यौना-वि० ठिंगना । नाटा । सम्यक्कांत, सम्यगाजीव, सम्यग्व्यायाम, सम्यक्स्मृति पौर सम्यक्समाधि । चौरी-संज्ञा पु० [सं० मुकुल, प्रा० मुउद] पाम की मंजरी । मौर । बौद्ध मत के अनुसार कोई पदार्थ नित्य नहीं, सब क्षणिक हैं। चौर@२-[सं० वातुल, हिं० बाउर] बावला । बौड़म । उ०—(क) नित्य चैतन्य कोई पदार्थ नहीं, सब विज्ञानमात्र है । बौद्ध नाम रूप गुन भेद के सो प्रगटित सब ठौर । ता विन तत्व जु अमर प्रात्मा नहीं मानते, पर कर्मवाद पर उनका बहत पान कछु, कहै सो प्रति बढ़ बौर। -अनेकार्थ०, पृ० २। जोर है । कर्म के शेष रहने से ही फिर जन्म के बंधन में (ख) अंखिया खोलि देखु अघ दुनिया है रंग वोर। --गुलाल, पड़ना पड़ता है। यहां पर शंका हो सकती है कि जब शरीर पु०, १२। के उपरांत प्रात्मा रहती ही नहीं, तब पुनर्जन्म किसका होता पौर-वि० [स० भ्रमर, हिं० वर] समूह । मुड | घेरा । उ०- है। चौद्घ प्राचार्य इसका इस प्रकार समाधान करते है- परिन बौर छडे न ऋन्न मंडे दिलीय दिसि |-पु० राक, मृत्यु के उपरांत उसके सब खड-प्रात्मा इत्यादि सब-नष्ठ २५७७६ । ।