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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३६०

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  1. भाना

-- अँडतिल्ला का गाना और नाच जिसमें गानेवाला गाता है और शेष भँडाना-क्रि० स० [हिं० भौड़ ] १. उछल कूद मचाना । उपद्रव समाजी उसके पीछे तालियां पीटते हैं। भंडतिल्ला । उ० करना । २. दौड़ धूप फरके वस्तुनो को अस्त व्यस्त करना सांग सगीत भंडताल रहत होने लगा। इंशाअल्ला (गन्द०)। वा तोड़ना फोड़ना। नष्ट करना। उ०-नद घरनि मुत भँडतिल्ला-संशा पुं० [हिं० भांड) द. भंडताल'। भलो पढायो । ब्रज की बीथिन पुरनि घरनि घर बाट घाट अँडफोड़-संज्ञा पु० [हिं० मांडा + फोडना १. मिट्टी के बर्तनों को सब शोर मचायो । लरिकन मारि भजत फाहू के काहू को गिराना या तोड़ना फोटना। 30...जब हम देत लेत नहि दधि दूध लुटायो। काहू के घर करत बड़ाई में ज्यो त्यों छोरा । पाछे माह करत भंड़फोरा |--गिरधरदास (शब्द०)। करि पकरन पायो। अन तो इन्हें जकरि बांधोंगो इहि सब तुम्हरो गाँव भंडायो । सुरश्याम भुज गहि नंदरानी बहुरि क्रि० प्र०—करना । ~ मचना-मचाना।—होना । कान्ह सपने ढिग प्रायो।-सूर (शब्द०)। २. मिट्टी के बर्तनो फा टूटता फूटना। ३. भेद खोलने का भाव । भंडारा-संज्ञा पुं० [हिं० भंडार ] १. दे० 'भंडार' । २. समूह । रहस्योद्घाटन । भंडाफोड़ करना । झुड | 30-पान करत जल पाप अपारा। कोटि जनम फर अँडभाँड -सज्ञा पु० [ स० भाण्डीर ] एक केटीला क्षुप जिसकी पत्तियां जुरा भंडारा । नास होइ दिन मह महिपाला । सत्य सत्य यह नुकीली, लबी और कंटीली होती है। यह जाड़े के दिनों मे बचन रसाला ।-(शब्द०)। ३. दे० 'भडारा' । उगता है । मडाँड । क्र० प्र०-जुटना ।-जुड़ना ।-जरना।-जोदना । विशेप- इसका फून पोस्त के फूल के श्राकार का पीले या भेंडारी'-शा स्रो० [हिं०] १. छोटी कोठरी। २. कोश । वसती रंग का होता है । फूल के झड़ जाने पर पोस्त की खजाना । उ०-कोरव पासा कपट बनाए। धर्मपुत्र को जुवा तरह लबी और कांटो से युक्त ढेढी लगती है जिसमें पकने पर खेलाए । तिन हारी सब भूमि भेंडारी । हारी बहुरि द्रोपदी काले रंग के पोस्त से और कुछ बड़े दाने निकलते हैं। इन नारी-सूर ( शब्द०)। दानों को पेरने से तेल निकालता है जो जलाने और दवा के काम प्राता है । इसके पौधे से पीते रग का दूध निकलता है भँडारी-सक्ष पु०: [ हिं० भडारी ] १. कोषाध्यक्ष । उ०—(क) जो घाव और चोट पर लगाया जाता है। उसकी जड़ भी फोड़े शेरशाह सम दूज न कोऊ । समुद सुमेरु भेंडारी दोऊ।- फुसियों पर पीसकर लगाई जाती है। इसके नरम डंठल की जायसी (शब्द०)। (ख ) बोलि सचिव सेवक सखा गूदी को तरकारी भी बनाई जाती है । पटधारि भंडारी । -तुलसी (शब्द०)। २. तोशखाने का दारोगा । उ०-पद्मावति पहँ प्राइ भंडारी। कहेसि मदिर भँडरिया-संज्ञा पुं० [हिं० भड्डरी ] एक जाति का नाम । भड्डर । मह परी मंजारी। जायसी (शब्द०)। विशेप-इस जाति के लोग फलित ज्योतिष या सामुद्रिक आदि मँडिहा-संज्ञा पुं॰ [ ? ] चोर । की सहायता से लोगों को भविष्य बताफर अपना निर्वाह अँडुबा-ज्ञा पु० [ सं० भण्ड ] ३० "भडुअा' |-वर्ण ०, पृ० २ । करते हैं और शनैश्चरादि ग्रहों का दान भी लेते हैं। कही कही इस जाति के लोग तीर्थों में यात्रियों को स्नान और भड़ेर-संज्ञा पु० ( देश० ] घुट नामक झाड़ या वृक्ष जिसकी छाल दर्शन आदि भी कराते हैं । इस जाति के लोग माने तो ब्राह्मण चमड़ा रंगने के काम में प्राती है। वि० दे० 'धू'। ही जाते हैं, पर ब्राह्मणो में बिलकुल प्रतिम श्रेणी के समझे भेडेरिया-पझा पु० [हिं० भाँद ] दे॰ 'भंडरिया' । भेंडेहरी-शा पु० [सं० भाण्ड ] मिट्टी का पात्र जो रंगा गया हो। भैंडरिया-वि० १. ढोगी । पाखंडो । २. धूतं । मक्कार । भँडौबा-7 पु० [हिं० भाँड़ ] १. भाँड़ों के गाने का गीत । ऐसा भँडरिया---संज्ञा सी० [हिं० भद्वारा+इया (प्रत्य॰)] दीवारों गीत जो सभ्य अथवा शिष्ट समाज में गाने के योग्य न अथवा उनकी सघियो मे बना हुप्रा ताख या छोटी कोठी समझा जाय । २. हास्य प्रादि रसों की साधारण अथवा जिसके प्रागे छोटे छोटे दरवाजे लगे रहते है और जिसमें छोटी निम्नकोटि की कविता । जैसे, शहौया संग्रह । मोटी चीजें रखी जाती हैं । भडरिया । भेंबूरो -संज्ञा स्त्री॰ [हिं० वबूर ] बबूल की जाति का एक पेड़ जिसे भेंडसार, भेडसाला-सदा सी० [हिं० भाद + शाला ] वह गोदाम फुलाई भी कहते हैं । ई० फुनाई। जहाँ सस्ता अन्न खरीदकर महंगी में बेचने के लिये इकट्ठा भैभरना-कि.० अ० [हिं० भय +रना (प्रत्य॰)] [संशा भंभेरिया] किया जाता है। खचा। खचो । उ०-पूजी को संत न पारा । हम करी बहुत भेडसारा ।--सुदर प्र०, भा०२, पृ० ८८८। भँडहरसंशा पु० [सं० भाएड ] १. कच्ची मिट्टी का पकाया हुआ पात्र । मिट्टी के वर्तन । २. पिउ। शरीर । ( ला०)। 3०-चढत चढ़ावत भंडहर फोरी। मन नहिं जाने फेकर चोरी। बीर० बी० (शिशु०), पृ० २१४ । जाते हैं।