पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/३८८

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उनका भी अलमनसाहत ३६२७ भवंत भलमनसाहत-ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'भलमनसहत' । रूप से । जैसे,-याप भी भले रुपया देने आए। (व्यंग भलमनसी-सचा जी० [हिं० भला+मानस + ई (प्रत्य॰)] दे० मे )। (कविता में इसका प्राय: 'भलि के' हो जाता है ) । 'भलमनसत'। उ०-हाथ हरि नाथ के बिकाने रघुनाथ जनु सील सिंधु भलहला-वि० [देश॰] दीप्त । प्रकाशित । ज्योतित । उ०-जेहल तुलसीस भलो मान्यो भाल के। -तुलसी (शब्द०)। तो दिस विदिस जस, भलहल छायो भाल । बाँकी०, न० भले-प्रव्य ० खुब । वाह । जैसे.-(क) तुम कल शाम को पानेवाले भा०३, पृ० १०॥ थे, भने आए । (ख) भने रे भले । भलेमानस-शा पु० हिं०] भला आदमी। अच्छा मनुष्य । भलहलना-कि० अ० [देश॰] दीप्त होना । झलमलाना । प्रकाशित उ०-लकड़ी बेचकर धन नहीं कमाया जाता। यह नीचों होना । उ०-काने कुडल भलहलह कठ टकावल हार - का काम है, भलेमानों का नही . --काया०, पृ० २५४ । ढोला०, दू०, ४००। भला'-वि• [ स० भद् प० भतल, भल्ला] १. जो अच्छा हो। भलेराg - ज्ञा पु० [हिं० भला+ एरा (प्रत्य॰)] २० 'भला' । उत्तम । श्रेष्ठ। जैसे, भला काम । भला प्रादमी। उ०- उ०-हहै जब तब तुम्हहि ते तुलसो को भले रो।-तुलसी भलो भला इहि पे लहै लहे निचाइहि नीचु । —मानस, ११५। (शब्द०)। भल्ल-संज्ञा पु० [१०] १. वध । हत्या । २. घाव । ३. दान ।४. भालू । यौ.-भला चंगा = शरीर से स्वस्थ । यौ०-भल्लनाथ = जाबवान् । भल्लपति = भल्लनाथ भल्ल. २. बढ़िया । पच्छा। पुच्छी । भल्लबाण = .-भला बुरा = (१) उलटी सीधी बात ।' अनुचित ४. वृहत्महिता के अनुसार एक प्राचीन देश । ५ पुराणानुसार बात । (२) डांट फटकार । जैसे,—जब तुम भला बुरा सुनोगे, एक प्राचीन तीथं । ६. प्राचीन काल की एक जाति । ७. तव सीधे होगे। प्राचीन काल का एक शस्त्र जिससे शरीर में धंसा हुमा तीर भला-सज्ञा पु० १. कल्याण। कुशल । भलाई । जैसे,—तुम्हारा निकाला जाता था । ८. शिव (को०)। ६. भिलावा । भल्लातक भला हो । २. लाभ । नफा। प्राप्ति । जैसे,—इस काम मे (को०)। १०. एक प्रकार का बाण। ११. दे० 'भाला' । कुछ भला हो जायगा। भल्लक-संज्ञा पुं० [सं०] १. भालू । २. इगुदी का वृधा । ३. यौ०-भला बुरा = हानि और लाभ । नफा नुकसान । जैसे, भिलावा । ४. एक प्रकार की चिड़िया। ५. एक प्रकार का तुम अपना भला बुरा समझ लो। सन्निपात । दे० 'भल्लु'। भला-प्रव्य० १. अच्छा । खैर । प्रस्तु । जैसे-भला मैं उनसे समझ भल्लपुच्छी - सशा श्री० [ स०] गोरखमुडी । लुगा । उ०-भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तह मुनि- भल्लय-पंञ्चा पु० [सं०] ईशान दिशा का एक प्राचीन प्रदेश । 'द समेता।—तुलसी (शब्द०)। २. नहीं का सूचक अव्यय भल्लाक्ष-वि० [सं० ] जिसे कम दिखाई देता हो । मंददृष्टि । जो प्राय: वाक्यों के पारंभ अथवा मध्य में रखा जाता है। जैसे,—(क) भला कही ठंढा लोहा भी पीटने से दुरुस्त होता भल्लात, भल्लातक-संशा स० [ स० भल्लाट-ज्ञा पुं[स०] १. भाल्न । २. एक पहाड़। भिलावा। है । (अर्थात् नही होता) । (ख) वहीं भला चित्रकारी को कौन भल्ला-या स्त्री॰ [ स०] भल्लातक | भिलावा । पूछता है। (अर्थात् कोई नही पूछता)। भल्लु-रज्ञा पु० [ स० ] एक प्रकार का सन्निपात ज्वर । मुहा०-भले ही ऐसा हुमा करे । इससे कोई हानि नही। अच्छा ही है। जैसे,—भले ही वे चले जायें। उ०-हृदय विशेष-इस सन्निपात ज्वर में शरीर के अंदर जलन और हेरि हारेउ सब भोरा । एकहिं भांति मलेहि भल मोरा ।- वाहर जाड़ा मालूम होता है, प्याउ बहुत लगती है, सिर, गले और छाती मे बहुत दर्द रहता है, बड़े कष्ट से कफ पोर तुलसी (शब्द०)। ( इस प्रयोग से कुछ उपेक्षा या संतोष पित्त निकलता है, सास और हिचकी बहुत आती है और का भाव प्रकट होता है।) पाखें प्राय: बंद रहती हैं। भलाई-संशा " [हिं० भला+ ई (प्रत्य॰)] १. भले होने का भाव । भलापन | अच्छापन । २. उपकार । नेकी । ३. सौभाग्य। भल्लुक-सचा पु० [सं०] १. भालू । २. बदर (को०)। भल्लूक-संज्ञा पु० [सं०] १. भालू । २. सुश्रुत के अनुसार शख भलापन-संज्ञा पुं० [हिं० भला+पन ] दे॰ 'भलाई'। की तरह कोश मे रहनेवाला एक प्रकार का जीव । ३. एक भलामानुप-संज्ञा पु० [हिं० भला+सं० मानुप] अच्छा व्यक्ति । प्रकार का श्योनाक । V. कुत्ता। भला प्रादमी। सभ्य पुरुष । उ०-कोई भलामानुष उनसे भवंग-संज्ञा पु० [सं० भुजङ्ग ] साप । सर्प । बात नहीं करता।--सेवा०, पृ० २२ । भवंगम-मचा पु० [स० भुजङ्गम] दे० 'भवंग। भलीभाँत-क्रि० वि० { हिं• ] अच्छी तरह । भली भांति । उ० भवंगा-संज्ञा पु० [स० भुजङ्गम, प्रा० भुगम] सर्प । उ०-विप गीले कपडे उसने देह से उतारे, उनको भली भात गारा, देह को सागर लहर तरगा । यह अइसा कूप भवंगा।-दादू (शब्द०)। पोछा, पीछे उन्ही कपड़ों को पहन लिया ।-ठेठ०, पृ० ३४ । न-वि० [ स० भवत् 1 भवत् का बहुवचन । आप लोगो का। भलीभाँति-क्रि० वि० [हिं०] दे० 'भलीभीत। आपका । उ०-अवलब भवत कथा, जिन्हके । प्रिय सत भले'-क्रि० वि० [हिं० भला] १. भली भांति । अनंत सदा तिन्हके । —तुलसी (शब्द॰) ।