पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४०४

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त भानुमान भामिनि भानुमान्-वि० [ स० भानुमत् ] दे॰ 'भानुमत्' । पूताने, मध्य भारत, दक्षिण मादि में पहाड़ी प्रदेशो में होती भानमान--संज्ञा पु० [सं०] १. कोशल देश के एक राजा का हे मोर रस्सी बनाने के काम आती है । अगिया । बनकस । नाम । यह दशरथ के श्वसुर थे। २. दे० भानुमत्' । भाभर-संज्ञा पु० [ स० वप्र] १. वह जंगल जो पहाड़ो के नीचे और भानुमित्र-संज्ञा पु० [सं०] १. विष्णु पुराण के अनुसार चंद्रगिरि तराई के बीच मे होते हैं । यह प्रायः साखू प्रादि के होते हैं । के राजा के एक पुत्र का नाम । २. एक प्राचीन राजा का २. एक प्रकार की घास जिसकी रस्सी बटी जाती है। यह नाम । यह पुष्यमित्र के बाद गद्दी पर बैठा था। पवंतो पर होती है। इसे बनकस, बभनी, बबरी, बबई, पादि कहते हैं। भानु मुखी-संज्ञा पुं० [सं० ] सूर्यमुखो। भानुवार-सज्ञा पुं॰ [सं०] रविवार । एतवार । भाभरा+-वि० [हिं० भा+ भरना ], लाल । रक्ताभ । उ०- जाइस जवारे जूझा भाभरे भरत भार, धाकरे धधल पाए भानसुत-सशा पुं० [ स०] १. यम । २. मनु । ३. शनैश्वर । ४. कणं। मानत अमान कौ ।-सूदन (शब्द०)। भाभरी-संज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] १. गरम राख । पलका । २. कहारों भानुसुतान -सञ्ज्ञा श्री० [सं०] यमुना। की बोली मे धूल जो राह में होती है। भानुसेन-संज्ञा पुं० [स० ] कणं के एक पुत्र का नाम । विशेष-जव राह में इतनी बूल होती है कि उसमें पैर धंस जायें भानमि-सञ्ज्ञा पु० [ ] सूर्य । तो कहार अपने साथियो को भाभरी' कहकर सचेत भाप-सबा ओ० [ स० वाप्प या वप्प ] १. पानी के बहुत छोटे छोटे करते हैं। कण जो उसके खोलने की दशा मे कार को उठते दिखाई भाभी' -ज्ञा स्त्री० [हिं० भाई ] बड़े भाई की स्त्री । भोजाई । पड़ते हैं और ठढक पाकर कुहरे आदि का रूप धारण करते उ०-(क) खइवे को कछु भाभो दीन्हो श्रीपति श्रीमुख वोले । है। वाष्प । फेंट ऊपर तें पंजुल तदुल वल करि हरिजू खाले । -सूर क्रि० प्र०-उठना ।-निकलना । (शब्द०)। (ख) दै हो सकों सिर तो कह भाभो पै ऊख के मुहा०-भाप लेना - औषधोपचार के पानी मे कोई औषध पादि खेत न देखन जैहौं ।-(शब्द॰) । उबालकर उसके वाष्प से किसी पीड़ित अग को सेकना। भाभी-सञ्चा स्रो० [ स० भावी ] दे० 'भावी' । उ०-रावन अस बफारा लेना। तेतीस कोटि सब, एकछत राज करे । मिरतक वाघि कुप में २. भौतिक शास्त्रानुसार घनीभूत वा द्रवीभूत पदार्थों की वह डारे भाभा सोच मरे ।-घट०, पृ० ३६५ । अवस्था जो उनके पर्याप्त ताप पाने पर प्राप्त होती है। भाम'–सञ्चा पु० [सं०] १. क्रोध । २. प्रकाश । दीप्ति । ३ सूर्य । विशेप-ताप के कारण ही घनीभुत वा ठोस पदार्थ द्रव होता ४. बहनोई । ५. मदार । मर्क (को०)। १. एक वर्णवृत्त तथा द्रव पदार्थ भाप का रूप धारण करता है। यों तो भाप का नाम जिसके प्रत्येक चरण में भगण, मगण और मत में और वायुभूत वा अतिवाष्प (गैस) एक ही प्रकार के होते हैं । तीन सगण होते हैं (भ म स स स)। पर भाप सामान्य सर्दी और दबाव पा कर द्रव तथा ठोस हो भाम-संज्ञा स्त्री॰ [ स० भामा ] स्त्री। उ०-प्रानि पर भाम विधि जाती है और प्रायः वे पदार्थ जिनकी वह भाप है, बाम तेहि राम सो सकत सग्राम दसकंघ कांधो।-तुलसी द्रव वा ठोस रूप मे उपलब्ध होते हैं। पर गैस साधारण (शब्द०)। २. कृष्ण की पत्नी सत्यभामा का एक सर्दी मोर दवाव पाने पर भी अपनी अवस्था नही बदलती। नाम (को०)। भाप दो प्रकार की होती है --एक माद्र, दूसरी मना । भामक-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] बहनोई । आद्र भाप वह है जो पधिक ठढक पाकर गाढ़ी हो गई हो भामता-संज्ञा पुं० [हिं० भावता] भावता । प्रियतम । पौर पति सूक्ष्म 'दों के रूप मे, कही कुहरे, फही बादल भामा-सञ्ज्ञा स्त्री० भावती। प्रियतमा । प्रादि के रूप में दिखाई पड़े। भनाई भाप अत्यंत सूक्ष्म मौर गैस के समान अगोचर पदार्थ है जो वायुमडल में सब जगह भामतीय-सचा पुं० [हि. भ्रमना] एक जाति का नाम । अंशाशि रूप में न्यूनाधिक फैली हुई है । यही जब अधिक विशेष-इस जाति के लोग दक्षिण भारत में घूमा करते हैं और दबाव वा ठढक पाती है, तब पार्द्र भाप बन जाती है । चोरी और ठगी से जीविका का निर्वाह करते हैं। मुहा०-भाप भरना = चिड़ियों का अपने बच्चों के मुह में मुंह भामनी-वि० [ स०] १. प्रकाशक । २. मालिक । डालकर फूकना । (चिड़ियां अपने बच्चों को प्रडे से निकलने भामनो-संज्ञा पुं० परमेश्वर । पर दो तीन दिन तक उनके मुह में दाना देने के पहले भामा-सचा त्री० [स०] १. स्त्री। उ०-वह सुधि प्रावत तोहि फूकती हैं)। सुदामा । जब हम तुम बन गए, लकरियन पठए गुरु की भापना -क्रि० स० [हिं० ] दे० 'भापना'। भामा ।-सूर (शब्द०) । २. क्रुद्ध स्त्री। भाफ-संज्ञा पुं० [सं० वाप्प ] दे० 'भाप' । भामिन-संज्ञा स्त्री० [सं० भामिनी ] दे० 'भामिनी' । भाषर-संज्ञा पुं० [सं० वा ] एक पास का नाम जो हिमालय, राजन भामिनि-संज्ञा स्त्री० [सं० भामिनी ] दे० 'भामिनी'। "-