भारद्वाजकी भारी भारद्वाजको-संज्ञा श्री० [ स०] भारद्वाज पक्षो । भरदूल [को०] । नागपूजक होने के साथ ही ये शिवभक्त थे और शिवभक्ति भारद्वाजी-संज्ञा स्त्री॰ [स] १. एक नदी का नाम । २. जगली का भार वहन करने के कारण इनका नाम भारशिव पड़ा। कपास की झाड़ा [को०] । कुछ शिलालेखो मे भी इनका उल्लेख पाया जाता है । इन्होने भारना-क्रि० स० [हिं० भार] १. बोझ लादना। भार काशी में प्रश्वमेध यज्ञ भी किया था। डालना। बोझना । लादना। २. दबाना । भार देना। भारसह, भारसाह-सज्ञा पुं॰ [स०] १. वह जो भारी बोझ उठाने उ०-प्रापुन तरि तरि औरन तारत । असम अचेत पखान मे समथ हो। २. वह जो अत्यत मजबूत भोर शक्तिशाली प्रगट पानी मे वनचर डारत । इहि बिधि उपले सुतरु पातु हो। ३. गदभ | गदहा (को०] । ज्यो तदपि सेन अति भारत | बूड़ि न सकत, सेतु, रचना भारहर, भारहार-सज्ञा पु० [स०] बोझा उठानेवाला । मोटिया । रचि राम प्रताप विचारत ।—सूर (शब्द०)। मजदूर। भारभारी-व० [सं० भारभारिन् ] बोझ उठानेवाला। बोझ भारहारी-सज्ञा पुं॰ [स० भारहारिन् ] पृथ्वी का भार उतारनेवाले, ढोनेवाला। विष्णु। भारभूत-वि० [सं० ] बोझ रूप । कष्टप्रद । उ०—यह पल्ला यह भारा - वि० [स० भार ] दे० 'भारी'। उ०-(क) रहे नहीं पट यह अचल भारभूत हो जाएंगे सब ।-क्वासि, पृ० ८ । निसिचर भट भारे । ते सब सुरन्ह समेत संहारे ।-तुलसी भारभृत्-वि० [स] भार धारण करनेवाला । वोझ ढोचेवाला। (शब्द०)। (ख) जे पद पद्म सदाशिव के धन सिंधु सुता उतरे भारय-सज्ञा पु० [ स०] भारद्वाज नामक पक्षो । भरदूल । नहिं टारे । जे पद पद्म परसि अति पावन सुरसरि दरस कटत भघ भारे ।—सूर (शब्द०)। भारयष्टि-प्रज्ञा पु० [ स० ] वहँगी। भारा-सञ्ज्ञा पु० १. दे० 'भाड़ा' । २. द. 'भार'। भारव-सज्ञा पु० [सं०] धनुष की रस्सी । ज्या। भाराक्रांता-वि० [ स० भाराकान्त ] बोझ से दबा हुआ [को०] । भारवाह-वि० [सं०] १. भार ले जानेवाला । २. बहेंगी ढोनेवाला। भाराक्रांता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० भाराकान्ता] एक वणिक वृत्त का नाम भारवाहक'-वि० [ स० ] बोझ ढोनेवाला । जिसके प्रत्येक चरण मे न भ न र स पोर एक लघु और एक भारवाहक-सज्ञा पु० मोटिया । गुरु होते हैं और चोथे, छठे तथा सातवें वणं पर यति होती है। भारवाहन-सचा पु० [ स०] १. बोझ ढोने की क्रिया या भाव । २. भारावतरण, भारावतारण-सज्ञा पुं० [ स०] बोझ उतरना या गाड़ी जिसपर सामान लादा जाय (को०)। ३. लद पशु (को०)। उतारना। भारवाहिक'-वि० [ स०] भारवाहक । भार ढोनेवाला । भारावलंबकत्व-सज्ञा पु० [स० भारावलम्ब कत्व ] पदार्थों के भारवाहिक-सञ्ज्ञा पु० मोटिया । मजदूर । परमाणुगों का पारस्परिक पाकपण । भारवाही'-वि० [स० भारवाहिन् ] [स्त्री॰ भारवाहिनो] भारवाह । विशेष-बहुतेरे पदार्थों के परमाणुप्रो का परस्पर पाकर्षण बोझ ढोनेवाला। उ०-प्राकपण विहीन विद्युत्कण बने ऐसा रहता है जो उन पदार्थों को दोनो ओर से खीचने में भारवाही थे भृत्य |--कामायनी, पु० २० । प्रतिबाधक होता है जिससे वह टूट नहीं सकते। इसी धर्म भारवाही--संज्ञा स्त्री॰ [स०] नीली । को भारावलबकत्व कहते हैं। भारवि-सचा पु० [स०] एक प्राचीन कवि जो किरातार्जुनीय भार-सज्ञा पु० [ स०] सिंह । नामक महाकाव्य के रचयिता थे। भारिक'-सज्ञा पु० [सं०] बोझ ढोनेवाला मजदूर । विशेष-भारवि के जन्म और निवासस्थान आदि के संबंध में भारिक'–वि० १. बोझ ढोनेवाला । २. भारी को०] । अभी तक कोई पता नही लगा। कहते हैं, ये अपने गुरु की गोएं लेकर हिमालय की तराई मे चराने जाया करते थे वही भारो-वि० [सं० भारिन् , भार+ई ] १. जिसमें भार हो । जिसमें प्राकृतिक शोभा देखकर इनमें कविता करने की स्फूति हुई थी। अधिक बोझ हो । गुरु । बोझिल । उ०-(क) लपटहिं कोप पटहिं तरवारी । श्री गोला पोला जस भारी।-जायसी भारवी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] तुलसी (को॰) । (शब्द०) । (ख) भारी कहो तो नहिं डरू हलका कहूं तो भारशिव-संज्ञा पुं० [स० भार+शिव ] भारतवर्ष का एक प्राचीन झीठ। मैं क्या जानू राम को नैना कळू न दीठ ।-कबोर राजवंश । उ०-भारशिव नाम इसलिये पडा कि ये शिव (शब्द०)। के परम भक्त थे और अपनी पीठ पर शिवलिंग का मुहा०—पेट भारी होना = पेट मे अपच होना । खाए हुए पदार्थों वहन करते थे।-प्रा० भा०, पृ० ३४५ । का ठीक तरह से न पचना। पर भारी होना=गमिणी विशेष-चतुर्थ शती के प्रारभ मे, कुषाणो से कुछ पूर्व, प्रयाग होना। पेट से होना। सिर भारी होना= सिर मे पीड़ा से बनारस तक भारशिव राजवश का उल्लेख मिलता है। होना । गला या धावाज भारी होना वा भारी पड़ना= गला संभवतः बुंदेलखड मंचल से इस राजवंश का उदय हुआ पड़ना । गला बैठना । मुह से ठोक आवाज न निकलना । इस राजवश में भवनाथ तथा वीरसेन आदि प्रमुख शासक भारी रहना = (१) नाव का रोकना (मल्लाह)। (२) धीरे हुए हैं । नागवण के रूप के भो इसका उल्लेख मिलता है। चलना (कहार)। -- भार !
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