पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४०८

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भारीट ३६४७ मार्याटिक' स० का नाम । 1 २. असह्य । कठिन । कराल | भीषण । उ० - ( क ) भरि भारोढि-संज्ञा श्री० [सं० ] बोझ ढोना । भार वहन करना [को०] । भादों दुपहर अति भारी। कैसे भरो रैन अंधियारी। भारोद्वह'--वि० [सं०] भार ले जानेवाला । जायसी (शब्द०)। ( ख ) पुनि नर राव कहा फरि भारोद्वहर--सञ्चा पु० मोटिया । मजदूर । भारी । वोल्यो सगा बीच व्रतधारी |- गोपाल ( शब्द०)। भारोही -सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] भारवाहिका [को०] । (ग) गगन निहारि किलकारी भारी. सुनि हनुमान पहिचानि भार्ग-संज्ञा पु० ] भर्ग देश का राजा [को०] । भए सानंद सचेत हैं ।-तुलसी (शब्द०)। भार्गव--सज्ञा पुं० [स०] १. भृगु के वंश में उत्तन्न पुरुष । २. क्रि० प्र०- लगना। ३. विशाल । बड़ा । वृहत् । महा। उ०-(क) दीरघ आयु परशुराम । ३. शुक्राचार्य । ४. एक देश का नाम । यह मार्कंडेय पुराण के अनुसार भारतवर्ष के अंतर्गत पूर्व पोर है। भूमिपति भारी । इनमे नाहि पदमिनी नारी।-जायसी ५. मार्कंडेय। ६ श्योनाक। ७. कुम्हार । ८. नीला ( शब्द०)। (ख) जपहिं नाम जन आरति भारी। मिटदि भंगरा । ६. हीरा । १०. गज । हायी। ११. एक उपपुराण कुसंकठ होहिं सुखारी।-तुलसी (शब्द०)। (ग) जैसे १२. जमदग्नि । १३. च्यवन । १४. भविष्य- मिट इ मोर धम भारी । कहहु सो कथा नाथ बिस्तारी।- वक्ता । दैवज्ञ । ज्योतिषी (को०)। १५. शिव (को०) । १६. तुलसी (शब्द०)। धनुर्धर (को०) । १७. एक जाति जो संयुक्त प्रदेश के पश्चिम मुहा०-बड़ा भारी- बहुत बडा । भारी भरकम या भड़कम= में पाई जाती है। बहुत बड़ा और भारी। जिसमे अधिक माल मसाला लगा विशेप-इस जाति के लोग अपने आपको ब्राह्मण कहते हैं, पर हो और जो फलतः अधिक मूल्य का हो । बहुमूल्य । जैसे; भारी जोड़ा, भारी गठरी। इनको वृत्ति बहुधा वैश्यों की सी होती है। कुछ लोग इन्हें ४. अधिक । प्रत्यत | बहुत । उ०—(क) तू कामिनी क्यों धीर दूमर बनिया भी कहते है । धरत है यह पचरज मोहिं भारी। -भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, भार्गव-वि० भृगु संबंधी । भृगु का । जैसे, भार्गव मल । पृ० ५१२ । (ख) छोंकर के वृक्ष पर बटुया झुलाइ दियो, भार्गवक-सज्ञा पु० [ स०] हीरा [को०] । कियो जाय दर शन, सुख भयो भारिये ।-भक्तमाल, भार्गवन-संज्ञा पुं॰ [सं०] पुराणानुसार द्वारका के एक वन का नाम । पु० ५५६ । (ग ) यह सुनि गुरु बानी धनु गुन तानी जानी भार्गवप्रिय-संज्ञा पुं० [सं० ] हीरा । द्विज दुख दानि । ताड का संहारी दारुण भारी नारी प्रतिवल भार्गवी-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पावंती। २. लक्ष्मी। ३. दूर्वा । जानि । केशव (शब्द०)। दूब । ४. नीली दूप । ५. सफेद दूब । ६. शुक्राचार्य को पुत्री ५. असह्य । दूभर । जैसे,—-मेरा ही दम उन्हें भारी है। देवयानी (को०) । ७. उड़ीसा देश की एक नदी का नाम । क्रि० प्र०-पड़ना ।-लगना । भार्गवीय-० [स०] भृगु सबधी । ६. सूजा प्रा । फूला हुपा । जैसे, सुह भारी होना। भार्गवेश-ज्ञा पुं० [स० भार्गव + ईश ] परशुराम | उ०-प्रमेय ७. प्रबल । जैसे,—वह अकेला दस पर भारी है। ८. गंभीर । तेज भर्ग मत भार्गवेश देखिए।-केशव (शब्द०)। शांत । भार्गायन-सज्ञा पुं० [स.] भगं के गोत्र के लोग। मुहा०-भारो रहना = चुप रहना । (दलाल)। भागी-संज्ञा स्त्री० [सं०] भारंगी। भारीट-संज्ञा पुं० [सं०] एक पक्षी । भाङ्गी-संञ्चा सी० [सं०] भारंगी । भारोपन- संज्ञा पुं० [हि० भारी + पन (प्रत्य०)] १. भारी का भाव । गुरुत्व । २. गरिष्ठता । भारी होना।। भाभजी-संज्ञा स्त्री॰ [ मं० ] भारद्वाजी । वनकपास । भारुड-संशा पुं० [सं० भारुढ ] रामायण के अनुसार एक वन का भार्य-वि० [स०] भरण पोषण करने के योग्य । नाम जो पंजाब में सरस्वती नदी के पास पूर्व मे था। भार्य-ज्ञा पुं० १. सेवक | नौकर । २. सैनिक । प्रायुधजीवी [को०) । भारुडि-संज्ञा पु० [सं० भारुण्डि ] १. एक प्रकार का साम । भार्या -संज्ञा स्त्री० [सं०] पत्नी। जाया । जोरू । स्त्री। उ०- (गान) । २. एक ऋषि का नाम जो भारुडि साम के द्रष्टा उठा पिता के भी विरुद्ध मै, किंतु प्रार्य भार्या हो तुम !- थे । ३. एक पक्षी का नाम । पुराणानुमार यह उत्तर कुरु का साकेत, पृ० ३०४। रहनेवाला है। भार्याजित-पंज्ञा पुं० [सं०] १. वह पति जो पत्नी भक्त हो। भारुष-सञ्ज्ञा पु० [स०] १. अविवाहित वैश्या और वैश्य व्रात्य से जोरू का गुलाम । २. एक प्रकार का हिरन । उत्पन्न पुत्र । २. शक्ति का उपासक । शक्ति की उपासना भार्याट-मंज्ञा पुं० [सं०] वह जो किसी दूसरे पुरुष को भोग के करनेवाला (को०)। लिये अपनी स्त्री दे। अपनी स्त्री को दूसरे पुरुष के पास भारू-संवा 'पु० [हिं० भारी] धीरे चलने के लिये एक सकेत जिसका व्यवहार कहार करते हैं। भार्याटिक'-वि० [ मं०] जो अपनी भार्या में बहुत अनुरक्त हो। भारूप-संज्ञा पुं० [सं०] १. ब्रह्म । २. मारमा [को०] । 1 भेजनेवाला मनुष्य । स्त्रण।