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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४०९

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भार्याटिक ३६४८ भाल्लुक भाल्लूक भार्याटिक-संश पुं० १. एक मुनि का नाम । २. एक प्रकार का भालि'-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० भाला का स्त्री० अल्पा०] १. बरछी । सांग। हिरन । २. शूल । काँटा । उ०—(क) बापुरी मंजुल अंब की डार भार्यात्व-सज्ञा पु० [सं०] भार्या होने का भाव । पत्नीत्व । सु भालि सी है उर में भरती क्यों ।-देव (शब्द०)। (ख) व्यारे के मरने को मुर्ख लोग हृदय में गड़ी हुई भालि भार्याल- -सहा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का मृग । २. एक पर्वत मानते है । -लक्ष्मण सिंह (शब्द०)। का नाम । २. जारज पुत्र का बाप । परस्त्री मे उत्पन्न पुत्र का पिता (को०)। भालि-संचा पु० [हिं० भाल] दे० 'भालू' । उ०-भालि बीर बाराह हक्की वज्जी चावहिसि । मुक्कि यान पंचान मिले सुर संमूह भार्यावृक्ष-संज्ञा पु० [ स०] पतंग नामक वृक्ष । धसि । -पृ० रा०, १७.१ । भार्यासोश्रुत -वि० [सं०] स्त्री के वश में रहनेवाला । भालिया -सज्ञा पुं॰ [देश॰] वह अन्न जो हलवाहे को वेतन में दिया भाय -सज्ञा पुं० [सं०] १ माधिक्य । प्रकर्पता। २. प्रबलता। जाता है। भाता। तीव्रता [को०] । भाली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० माला] १. भाले की गांसी या नोक । भाल-शा पु० [म०] १. भवों के ऊपर का भाग। कपाल । उ०-जब वह सुरति होति उर अंतर लागति काम बाण ललाट । मस्तक । माथा । उ०-(क ) भाल गुही गुन लाल लट लपटी लर मोतिन की सुखदेनी। केशव (शब्द०)। की भाली।—सूर (शब्द०)। २. शूल । काटा। उ०- (ख) कानन कुंडल विशाल, गोरोचन तिलक भाल ग्रीवा कहा री कहीं व छु कहत न बनि आवै लगी मरम की भाली छवि देखि देखि शोभा अधिकाई । (शब्द०) । २. तेज । री।-सूर (शब्द०)। ३. पंधकार । तम (को०)। भालु'-संज्ञा पु० [सं० भालुक ] दे॰ 'भालू' । भाल'-संशा पु० [ हिं० भाला ] १. भाला । परछा। उ०—(क) भालु'-संज्ञा पु० [ स० ] सूर्य । भाल वांस खांड़े वह परही। जान पखाल बाज के चढ़ही भालुक-संज्ञा पु० [ सं० ] भालू । रीछ । जायसी (शब्द॰) । (ख) भलरति वैठ भाल ले और वैठ भालुनाथ–संज्ञा पुं० [हिं० भालू + सं० नाथ ] जामवंत । जांव- धनकार ।-जायसी (शब्द०)। २. तीर का फल | तीर की वान । उ०-भालुनाथ नल नील साथ चले बली वालि को नोक । गांसी । उ०-खौरि पनिच भृकुटी धनुष बधिक समर जायो -तुलसी (शब्द०)। तजि कानि । हुनतु तरुन मृग तिलक सर सुरक भाल भरि भालू-संचा पु० [सं० भल्लुक ] एक प्रसिद्ध स्तनपायी भीषण तानि ।-स० सप्तक, पृ० ६६ । चौपाया जो प्रायः सारे संसार के बड़े बड़े जंगलों और पहाड़ों भाल-पला पु० [ स० भन्लुक ] रीछ । भालू । उ०-तहाँ सिंह में पाया जाता है । रीछ । बहु श्वान वृक सर्प गीध अरु माल ।-विश्राम (शब्द०)। विशेष-आकार और रंग पादि के विचार से यह कई प्रकार भालचद्र- सशा पु० [ स० भालचन्द्र ] १. महादेव । २. गणेश । का होता है । यह प्रायः ४ फुट से ७ फुट तक लंबा और भालचंद्रा-संज्ञा स्त्री॰ [स० भालचन्द्रा ] दुर्गा । २३ फुट से ४ फुट तक ऊंचा होता है । साधारणतः यह भालदर्शन -मन्ना पुं० [सं०] १. सिंदूर । सेंदुर । २. शिव (को०)।, काले या भूरे रंग का होता है और इसके शरीर पर बहुत भालदर्शी- वि[ स० ] जो किसी की भी देखता रहे । जैसे, मालिक बड़े बड़े बाल होते हैं । उत्तरी ध्रुव के भालू का रंग प्रायः के इशारे पर दौडनेवाला नौकर (को०] । सफेद होता है । यह मांस भी खाता है और फल, मूल प्रादि भालना-क्रि० स० [ ? ] १. ध्यानपूर्वक देखना । अच्छी तरह भी । यह प्रायः दिन भर मांद में सोया रहता है और रात देखना । जैसे, देखना भालना । २. ढूंढना । तलाश करना । के समय शिफार की तलाण मे बाहर निकलता है। भारत में प्रायः मदारी इसे पकड़कर नाचना और तरह तरह के भालनेत्र, भाललोचन-सा पु० [ म०] शिव जिनके मस्तक में एक तीसरा नेत्र है। खेल करना सिखलाते हैं। इसकी मादा प्रायः जाड़े के दिनों भालवी-शा पुं० [सं० भल्लुक ] रीछ । भालू (डि०) । में एक साथ दो बच्चे देती है। बहुत ठढे देशों में यह जाड़े के दिनों मे प्रायः भूखा प्यासा और मुरदा सा होकर अपनी भालांक-तमा पु० [सं०] १. करपत्र नामक अस्त्र । २. एक प्रकार माद में पड़ा रहता है। और वसंत ऋतु आने पर शिकार फा साग । ३. रोहित मछली । ४. कछुवा । ५. शिव । ६. ढूंढ़ने निकलता है। उस समय यह और भी भीषण हो जाता ऐसा मनुष्य जिसके भाल या शरीर में बहुत अच्छे अच्छे है। यह शिकार के पीछे अथवा फल प्रादि खाने के लिये लक्षण हो । ( सामुद्रिक ) । पेड़ो पर भी चढ़ जाता है। जंगल मे यह अकेले दुकेले भाला-सशा पु० [स० भल्ल] वरछा नाम का हथियार । सांग । नेजा। मनुष्यो पर भी प्राक्रमण करने से नहीं चूकता । भालायरदार-संज्ञा पु० [हिं० भाला + फ़ा• बरदार] वरछा चलाने भालूक-सञ्चा पु० [सं०] भालू । वाला । बरछत । भालुक, भाल्लूक-संशा पु० [सं० ] दे॰ 'भालु' ।