पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४२७

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भील ३६६६ मीप्मस् भील-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ताल की वह सूखी मिट्टी जो प्रायः दी, प्रत. में जाती हूँ। मैने देवकार्य की सिद्धि के लिये प्राप. पपड़ी के रूप मे हो जाती है। से सहवास किया था। आप इस पुत्र को अपने पास रखें। भीलभूषण-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] गुजा । घुघची । यह बहुत वीर, धर्मात्मा पौर दृढ़प्रतिज्ञ होगा और पाजन्म ब्रह्मचारी रहेगा। गंगा के चले जाने के कुछ दिनों बाद गजा भीलु-वि० [सं०] भोरु । डरपोक । शांतनु सत्यवती या योजनगंधा नाम की एक धीवरकन्या पर भोलुक'-सज्ञा पुं० [सं०] भालू । मासक्त हुए। पर धीवर ने कहा कि मेरी कन्या के गर्भ से भालुक-वि० भीरु । डरपोक उत्पन्न पुन ही राज्य का अधिकारी होना चाहिए, भीष्म या भीव-संशा पु० [सं० भीम ] भीमसेन । उ०-भकरन की उसकी मंतान नहीं। इसपर देवव्रत ने यह भीष्म प्रतिज्ञा खोपड़ी बूडत वाचा भीव ।-जायसी (शब्द॰) । की कि मैं स्वयं राज्य नही लूगा पौरन माजन्म विवाह ही भीष-प्रज्ञा सी० [सं० भिक्षा ] भीख । खैरात । करूंगा। इसी मीपण प्रतिज्ञा के कारण उनका नाम भीष्म भोपक-वि० [सं०] भोषण । भयंकर । डरावना । पडा | शांतनु को उस धीवर कन्या से चित्रागद और भीषगां-सज्ञा पुं० [सं०] भिखारी । उ०-रति अनुकूल विलास विचित्रवीर्य नाम के दो पुत्र उत्पन्न हुए। मातनु के उपरात घाँ रलियामणां । भोपण दीसे इंद्र लिहूं भामा । चित्रागद को राज्य मिला; और चित्रागद के एक गंधवं -बौकी, भा० ३, पृ० ४१ । ( इसका नाम भी चित्रागद ही या ) द्वारा मारे जाने पर भोपज -संशा पु० [सं० भेपज या भिपज् ] वैद्य । थिकित्सक । विचित्रवीयं राजा हए । एक बार फाशिगजी स्वयंवर समा में से देवव्रत प्रया, अधिका पोर पंवालिका नाम की तीन भीपण-वि० [सं०] १. जो देखने में बहुत भयानक हो। डरावना । कन्याप्रो को उठा लाए थे प्रोर उनमें से प्रया तथा मंबालिका २. जो बहुत दुष्ट या उग्र हो । का विचित्रवीयं मे विवाह कर दिया था। विचित्रवीर्य भोपण-संज्ञा पु० [सं०] १. भयानक रस (साहित्य)। २. के निःसंतान मर जाने पर सत्यवती ने देवयत से कहा कि कुंदरू । ३. कबूतर । ४. एक प्रकार का तालवृक्ष । ५. शिव । तुम विचित्रवीर्य को स्त्रियो से नियोग करके संतान उत्पन्न महादेव । ६. सलई । ७. ब्रह्मा । फरो। पर देवव्रत ने आजन्म ब्रह्मचारी रहने का जो व्रत भीपणक-वि० [सं०] भीषण । भयानक । किया था, उसे उन्होने नहीं तोड़ा। पंत में वेदव्यास से नियोग भीपणता-संज्ञा स्त्री० [सं०] भीषण होने का भाव । डरावनापन । फराके अंपिका और अंबालिका से घृतराष्ट्र पोर पादु नामक भयंकरता। दो पुत्र उत्पन्न कराए गए । महाभारत युद्ध के समय देवव्रत ने भीषणाकार-वि० [सं०] भयानक पाकृति फा। ढरावनी शक्ल कौरवों का पक्ष लेकर दम दिन तक बहुत ही वीरतापूर्वक सूरत वाला। भीषण युद्ध किया था; मोर पंत में अर्जुन के हाथों घायल भीपणी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० ] सीता फी एक सखी का नाम । होकर शरशय्या पर पड़ गए थे। युद्ध समाप्त होने पर भीपन-वि० [ स० भीपण ] दे० 'भीपण' । इन्होने युधिष्ठिर को बहुत अच्छे पच्छे उपदेश दिए थे भोपनी-संज्ञा स्त्री० [सं० भीपणो] सीता की एक सखी। उ०- धिनका उल्लेख महाभारत के 'शातिग्व' में है। माघ शुक्ला श्री भूलीला कांति कृपा योगी ईशाना । उत्कृष्णा भीषनी अष्टमी को सूर्य के उत्तरायण होने पर ये अपनी इच्छा से मरे थे। चंद्रिका कुरा जाना ।-प्रियादास (शब्द०)। ५. दे० 'भीष्मका भीपम-संज्ञा पु० सं० भीम ] दे० 'भीष्म'। भीष्म-वि० भोपण । भयंकर । भोपमा-वि० भयावना । भयंकर । भीष्मक-संधा ५० [मं०] विदर्भ देश के एक राजा जो रुक्मिणी भीपा-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. डराना । भय दिखाना। २. डर । के पिता थे। भय । मोति [को॰] । भीष्मकसुता-संझा झी० [ म० ] श्रीकृष्ण की स्त्री रुक्मिणी । भीपित-वि० [सं० ] डराया हुआ । भीष्मजननी-संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगा [को०) । भीष्म-संज्ञा पुं० [स०] १. भयानक रस । ( साहित्य ) । २. भीष्मपंचक-पंधा पुं० [सं०] कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूणिमा शिव । महादेव । ३. राक्षस । ४. राजा शातनु के पुत्र जो तक के पांच दिन | इन पांच दिनों में लोग प्रायः व्रत गंगा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । देवव्रत । गागेय । रखते हैं। विशेप-कहते हैं, कुरु देश के राजा शातनु से गंगा ने इस शतं भीष्मपर्व-संग पुं० [सं०] महाभारत का एक अंश । पर विवाह किया था कि मैं जो चाहूँगी वही करूंगी। शांतनु भीष्मपितामह-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'भोग'। से गंगा को सात पुष हुए थे। उन सबको गंगा ने जनमते ही भीष्ममणि-संशा सी० [ स०] हिमालय के उत्तर में होनेवाला एक जल में फेंक दिया था। जब पाठवां पुत्र यही देवव्रत उत्पन्न प्रकार का सफेद रंग का पत्थर या मणि जिसका पारण हुअा था, तब शांतनु ने गंगा को उसे जल में फेंकने से मना करना बहुत शुभ समझा जाता है। किया। गंगा ने कहा 'महाराज' प्रापने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ भीष्मसू-संशा स्त्री० [सं०] गंगा ।