पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४२९

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भइँ आँवला ११६ भुक्तपौत भुइँ आँवला-संशा पु० [स० भूम्यामल ] एक घास का नाम जो भुइँफोरी-संज्ञा पु० [हिं० ] खुभः । कुकुरमुत्ता । बरसात में ठठे स्थान, प्रायः घरो के पास रास होती है । भुईया-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'जुई । ३०-एक पड़ा भुईया मे लोटे भद्र माँवला। दूसर कहै चोखी दे माई । - भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० ८२ । विशेष-इसकी पचिया छटी छोटी एक सीके मे दोनो ओर होती हैं और इसी सीके में पत्तियों की जड़ो में सरसो के भुइँहार-~मज्ञा पु० [ स भूमि + हार ] १. मिरजापुर जिले के दक्षिण भाग में रहने वाली एक अनार्य जाति । २. ३० वरावर थोटे फूलो की कोठियां लगती हैं जिनके फूल फूलने 'भुमिहार'। पर इतने छोटे होते हैं कि उनकी पंखड़िया स्पष्ट नहीं दिखाई देती। इसके फूलो के झड़ जाने पर राई के बराबर छोटा भई -मा सी० [हिं० भूश्रा ] एक कीड़ा जिसे पिल्ला भी कहते फल लगता है-यह घास मोषधि के काम में आती है। हैं । इसके शरीर पर लवे बाल होते हैं जो छू जाने पर शरीर वैद्यक में इसका स्वाद कडवा, कसैला और मधुर तथा प्रकृति मे गड़ जाते और खुजलाहट उत्पन्न करते हैं। कमला । शीतल और गुण खांसी, रक्तपिच, कफ और पाड रोग का भुइली। नाशक लिखा है। यह वातकारक और दाहनाशक है । भक-सञ्ज्ञा पु० [स० भुज् ] १. भोजन । खाद्य । प्राहार । उ० - पर्या०-भूम्यामलकी । भुम्यामली । शिवा । ताली । क्षेत्रमली । ए गुसाई तूं ऐस विधाता । जावंत जीव सबन भुक दाता।- झारिका । भद्रामलकी। जायसी (शब्द०)। २. अग्नि | प्राग। उ०-अस कहि भे भुइँकंप-सज्ञा पु० [म० भूमिकम्प ] दे॰ भूकप' । भुक अतर्षाना । सुनि समाज सकलो सुख माना।-विश्राम भुइँकोड़ा-सा पु० [हिं० भुइ+केंद ] एक घास । सफेद खस । (शब्द०)। विशेप-इसकी पत्तियो लहसुन की पत्तियो से चौड़ी होती हैं भुकड़ी-सञ्ज्ञा स्त्री० [? या देश०] सफेद रंग की एक प्रकार की वनस्पति और इसकी जड़ मे प्याज की तरह की गोल गोठे पड़ती हैं । जो प्राय बरसात के दिनो मे प्रनाज, फल या अचार आदि यह समुद्र के किनारे या जलाशयो के पास होता है । इसकी पर उसके सड़ जाने के कारण उत्पन्न होती है । फफू दी। अनेक जातियाँ है । इसके फूल लवे होते हैं और वीज की एक क्रि० प्र०-लगना। डडी के ऊपर सिरे पर गुच्छे मे लगते हैं। इसे सफेद खस भुकतान:-संज्ञा पु० [हिं० भुगताना ] दे॰ 'भुगतान' । उ०- भो कहते हैं। अग्नि, धरन, पाकाश, पवन, पानी का कर भुकतान चले । भुइँचाल-सज्ञा पु० [हिं॰ भुइँ+ चलना ] भूचाल । भुइचाल । -पोद्दार अभि० न०, पृ० ८६२ । भूकंप । उ०-मुनिगण त्याग्यों ध्यान तब महिमंडल भुकराँद, भकरायँधा-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] किसी पदार्थ में फफूदी भुइचाल । -कवीर सा०, पृ० ३७ । पड़ जाने से उत्पन्न दुगंध । भुइँडोल-संज्ञा पु० [हिं० भुइँ + डोजना] भूकंप । भूचाल | भुकान-वि० [हिं० भूख ] जिसे भूख लगी हो । बुभुक्षित । भुइँतरवर-शा पु० [हिं० भुई+ तरुवर ] सनाय की जाति का भुकाना'-क्रि० स० [हिं० भूकना ] किसी को भूकने अर्थात् विशेष. एक पेड जिसकी पत्तियां सनाय के नाम से बाजारों में बिकती बोलने में प्रवृत्त करना । वक्वाना। हैं । इसका प्रयोग सनाय के स्थान में होता है। इसका पेड़ चकवंड़ से मिलता जुलता होता है। भुकाना;२-क्रि० प्र० [हिं० भूख ] दे॰ 'मुखाना' । भुइँदग्धा-संज्ञा पुं० [हिं० भुई+दग्ध ] १. वह कर जो भूमि भुक्कड़ा- वि० [हिं० भूख ] दे० 'भुक्खड़' । पर चिता जलाने के लिये मृतक के संबंधियों से लिया जाता भुक्करनाg+-क्रि० अ० [हिं०] दे० 'भूकना' । उ० - ढुंढत डढाल है। मसान का कर । २. वह कर जो भूमि का मालिक किसी ड्ढाल त्रिय भुक्कारन बहु भुककरहि । -पृ. रा०, ६।१०३। व्यवसायी से व्यवसाय करने के लिये ले । भुक्कार-पञ्चा श्री० [हिं० ] भूकने की क्रिया। पुकार । उ०- भुइँधरा-संचा पु० [ भुइ+ धरना ] १. माया लगाने की वह रीति भुक्कारन बहु भुकरहिं । -पृ. रा०, ६।१०२ । या दंग जिसके अनुसार विना गड्ढा खोदे ही भूमि पर बरतनों वा अन्य पकाने की चीजों को रखकर प्राग सुलगाते भुक्खड़-वि० [हिं. भूख+ड़ (प्रत्य॰) ] १. जिसे भूख लगी हो । भूखा । २. वह जो बहुत खाता हो। पेटू । ३. दरिद्र । हैं। २. तहखाना। फगाल। भुइनास-सा पु० [सं० भून्यास ] १ किसी वस्तु के एक छोर को भूमि मे इस प्रकार दवाकर जमाना कि उसका कुछ अंश भुक्त-वि० [स०] १. जो खाया गया हो ! भक्षित | २. भोगा हुआ। पृथ्वी के भीतर पड़ जाय । उपभुक्त। क्रि०प्र०-करना।-देना । भुक्तकांस्य-सज्ञा पु० [ ] कौटिल्य अर्थशास्त्रानुसार फूल या कांसे २. किवाड़ों की वह सिटकिनी जो नीचे की ओर पत्थर के गड्ढे का बरतन जिसमे खाद्य पदार्थ रखकर खाया जाता हो। मे पैठती है। ३. अनार । ४. एक छोटा पौधा जो बिना भुक्तपीत-वि० [स०] जो खा, पो चुका हो । जिसका खाना पीना जड़ का होता है और खेतो में प्राय. उगता है। हो चुका हो। स०