पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४३६

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HO भुवनकोश ३६७५ भुसेहरा भूनजात । ७. एक मुनि का नाम । ८. आकाश । (को०) । ६. भुवार-रज्ञा पुं॰ [स० भूपाल ] दे० 'भुवाल' । उ०-राम लखन समृद्धि (को०)। सम दैत्य संहारा। तुम हलधर बलभद्र भुवारा ।-जायसी भुवनकोश--सज्ञा पु० [सं०] १. भूमंडल । पृथिवी । २. चौदहो भुवन (शब्द०) की समष्टि । ब्रह्मांड । उ०-मो सो दोस कोस को भुवनकोस भुवालो-सज्ञा पु० [ स० भूपाल, प्रा० भुपाल ] राजा। उ०- दूसरो न प्रापनी समुझि सूझि आयो टकटोरि हो। (क) कालिंदी के तीर एक मधुपुरी नगर रसाला तुलसी (शब्द०)। कालनेमि उग्रसेन वश कुल उपजे कस भुवाला हो।-सूर भुवनत्रय-संज्ञा पु० [सं०] तीनों भुवन-स्वर्ग मर्य और पाताल | (शब्द०)। (ख) यो दल का वलख ते ते जयसाह भुवनपति-सज्ञा पुं॰ [स०] एक देवता का नाम जो महीघर के भुवाल । उदर अघासुर के पड़े ज्यो हरि गाय गुवाल ।- अनुसार अग्नि का भाई है। बिहारी (शब्द०)। भुवनपावनी-सज्ञा स्त्री० [ स०] गंगा । भुवि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० भू का सप्तमी रूप अथवा भूमि ] भूमि । भुवनभर्ता--संज्ञा पुं० [सं० भुवनभर्तृ ] जगत का भरण पोषण पृथिवी । उ०-एक काल एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुण अवतार । करनेवाला। सुर रजन सज्जन सुखद, हरि भजन भुवि भार -तुलसी (शब्द०)। भुवनभावन-संज्ञा पु० [सं०] लोकनिर्माता । लोक स्रष्टा । भुविसू-सक्ष -सज्ञा पु० [ ] समुद्र । भुवनमाता-सज्ञा स्त्री० [सं० भुवनमातृ ] दुर्गा का नाम । भुवनमोहिनी-तज्ञा स्त्री० [सं०] जगत् को मोहित करनेवाली । भुविस्थ-वि० [सं०] जो पृथ्वी पर स्थित हो। पृथ्वी पर रहने वाला [को०] । भुवनशासी-संज्ञा पुं० [स० भुवनशासिन् ] राजा । शासक । सुशंडि'--सज्ञा पु० [ स० भुशुण्डि ] काक भुशुढी । भुवनाथ-पञ्चा पु० [हिं० भुव+नाथ] दे० 'भुवनेश' । उ०-हे भारत विशेष-इनके विषय में यह प्रसिद्ध है कि ये अमर और भुवनाथ भूमि निज वूड़त आनि बचायो । भारतेंदु ग्रं, त्रिकालज्ञ हैं और कलियुग में होनेवाली सब बातें देखा भा० १, पृ०५०१। करते हैं। भुवनाधीश-संज्ञा पु० [सं०] एक रुद्र का नाम । भुशुडिर-चा श्री० एक अस्त्र का नाम जिसका प्रयोग महाभारत के भुवनेश-संज्ञा पुं० [सं०] १. शिव की एक मूर्ति का नाम । काल मे होता था। २. ईश्वर। विशेष-यह अस्त्र चमड़े का बनाया जाता था। इसके बीच में भुवनेशी--संज्ञा स्त्री० [सं०] शक्ति की एक मूर्ति का नाम । एक गोल चंदवा होता था जिसे चमड़े के कड़े तसमो में भुवनेश्वर-संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान का नाम । बांधकर दो लबी डोरियो में लगा देते थे। यह अस्त्र डोरी विशेप--यह तीर्थस्थान उड़ीसा में पुरी के पास है। यहाँ समेत एक छोर से दूसरे छोर तक तीन हाथ लवा होता था। अनेक शिवमंदिर हैं जिनमें प्रधान और प्राचीन मंदिर इसके चंदवे में पत्थर भरकर और डोरियो को दाहने हाथ से भुवनेश्वर शिव का है। घुमाकर लोग शत्रु पर फंकते थे। कुछ लोग भ्रमवश इस २. थिव की वह प्रधान मूर्ति जो भुवनेश्वर में है। ३. शिव शब्द से वंदूक का अर्थ लेते हैं। (को०) । ४. राजा । भूपति (को॰) । भुसनाg+-झि० भ० [ देश० ] ३० 'भूफना' । उ०-सरस काव्य भुवनेश्वरी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] तंत्रानुसार एक देवी का नाम जो रचना रचौ खल जन सुनि न हसत । जैसे सिंधुर देखि मग दस महाविद्याप्रो में एक मानी जाती है। स्वान सुभाव भुसंत ।-पृ० रा०, ११५१ । भुवनौका -सञ्ज्ञा पुं० [सं० भुवनौकस् ] देवता । भुस-सज्ञा पुं० [सं० बुस ] भूसा । उ०-बनजारे के बैल ज्यों भरमि फिरेउ चहुँ देस । खाँड़ लादि भुस खात हैं बिनु सतगुरु भुवन्यु-संज्ञा पुं० [सं०] १. सूर्य । २. अग्नि । ३. चंद्र । ४. प्रभु । उपदेश । कबीर (शब्द०)। भुवपति-संञ्चा पुं० [सं०] १. एक देवता का नाम । 'महीधर के अनुसार यह अग्नि का भाई है। २. राजा। भुसिल-संज्ञा पु० [ देश० ] दे० 'भोंसला' । उ०-जा दिन जनम भुवपत्ति-संज्ञा पुं० [सं० भु>भुव+पति ] दे० 'भूपति'। लीन्हो भू पर भुसिल भूा ताही दिन जीत्यो अरि उर के उदाह उ०-चारु वक्कि चालुक्क राइ भोरा भुवपत्तिय ।-१० को।-भूषण न०, पृ० २० । रा०, १२:५४ । भुसील-संज्ञा स्त्री० [हिं० भूसा ] भूपी । उ०-कविरा स गति भुवपाल-पञ्चा पु० [हिं० भुव+पाल ] दे० 'भूगल'। साधु की जो की भुसी जो खाय । खीर खोड़ भाजन मिल भुवलोक--संज्ञा पुं० [ स० ] सात लोको में से दूसरे लोक का नाम । साकट सभा न जाय ।-वीर (शब्द०)। पृथ्वी और सूर्य का मध्यवर्ती पोला भाग | अंतरिक्ष लोक । भुसुंड-संस श्री० [ मं० शुण्ड ] सूड़। भुवा-संज्ञा पुं० [हिं० धूथा] घुप्रा । रुई। उ०-रानी धाइ बाइ के भुसुंडो-सज्ञा पु० [सं० भुशुण्डि ] दे० 'भुशुडि"। पासा । सुपा भुवा सेमर की प्रासा ।—जायसी (शब्द॰) । भुसेहरा-शा पुं० [हिं० भूसा+ घर ] दे॰ 'भुसौरा'।