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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४५५

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--- भेदक ३६६४ भेनी मुहार-भेद डाल देना = अविश्वास वा संदेह पैदा करना। भेदसह-वि० [सं०] जिसपर भेदनीति म कर सको। भेद अंतर वा फर्फ डाल देना। उ०-बात जो भेद डाल दे उसको डालकर अलग करने योग्य । जो सकें डाल, पेट मे डाले ।-नुभते०, पृ० ५३ । भेदांनिभेदी- -भज्ञा पु० [ स० भेद+ प्रभेद ] अभेद अर्थात् प्रत का ७. द्रोह । विद्वेष (को०) । ८. हार । पराजय (को०) । ६. रेचन । भेद । अद्वैत का मम वा गूढ़ रहस्य । उ०-विरला जाणति कोष्ठशुद्धि (को०)। भेदानिभेद बिरला जाणति दोइ पष छेद ।-गोरख०, भेदक'–वि० [स०] [ी भेटिका ] १. भेदन करनेवाला पृ० २४ । छेदनेवाला । २. रेचक । दस्तावर ( वैद्यक ) 1 g भेदिका-शा स्त्री॰ [ स० विध्वस । नाश (को०] । भेदक @-सज्ञा पु० [स० भेदज्ञ ] वह जो किमी वस्तु के भेद भेदित-सञ्ज्ञा पु० [ स०] तत्र के अनुसार एक प्रकार का मंत्र जो उपभेद का जानकार हो। भंद जाननेवाला। उ०-जे भेदक निदित समझा जाता है। गीता तणा वात कर इ सुविचार ।-ढोला०, दू० १०४ । भेदकर- सज्ञा पु० [स०] दे॰ 'भेदकारी' [को०] । भेदित-वि० [सं०] बिलगाया या विदीर्ण किया हुपा (को०] । भेदकातिशयोक्ति - संज्ञा स्त्री० [ स० ] एक अर्यालकार जिसमे 'पोरै' भेदनी'-सज्ञा स्त्री० [०] तत्र के अनुसार एक प्रकार को शक्ति 'पोरै' शब्द द्वारा किसी वस्तु की 'अति' वर्णन की जाती जिसकी सहायता से योगी लोग पटचक्र को भेद सकते हैं । है । जैसे,—पोरै कछु चितवनि चलनि औरै मृदु मुसकानि | इस शक्ति के साधन से योगी बहुत श्रेष्ठ हो जाता है। औरै छु सुख देति है सके न बैन वखानि । भेदिनी-वि० श्री० [ स०] भेदनेवाली । उ०- वह सुदर पालोक भेदकारक-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] दे० 'भंदकारी' । किरन सी हृदयभेदिनी दृष्टि लिए । जिधर देखती, खुन जाते भेदकारी-संझा पु० [स० भेदकारिन् ] वह जो भेदन करता हो । हैं तम ने जो पथ बद किए ।-कामायनी, पृ० १८१। भेदनेवाला। भेदिया -सञ्ज्ञा पु० [हिं० स० भेद+इया (प्रत्य॰)] १. भेद लेने- भेदकृत्-संज्ञा पुं॰ [ स० ] दे॰ भेदकारी' [को०] । वाला । जासुप । गुमचर । २. गुप्त रहस्य जाननेवाला । भेदज्ञान-संज्ञा पु० [ स० ] द्वैत ज्ञान । द्वैत की प्रतीति का बोध । भेदिर-सञ्ज्ञा पु० [ स९ ] वज्र । भिदुर [को०] । अभेद ज्ञान का प्रभाव [को०] । भेदी' – संज्ञा पु० [भेद + ई (प्रत्य॰)] १. गुम हाल बतानेवाला । भेदड़ी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] रबड़ी। उ०-पतली पेज (भेदड़ी, जासूस । गुप्तचर । २. गुप्त हाल जाननेवाला । रावड़ी में दूध या छाछ या दही मिलाकर भर पेट खिला दो।-प्रतापसिंह (शब्द०)। भेदी-वि० [१० भेदिन] [वि॰ स्त्री. भेदिनी] १. भेदन करने- भेददर्शी-वि० [सं० भेददर्शिन् ] जगत् को ब्रह्म से भिन्न समझने- वाला। फोड़नेवाला। २. बिलगाव या अतर करनेवाला । वाला । द्वैत वादी। उ०-जे जन निपुन जथारय बेदी। स्वारथ अरु परमारथ भेदन'-सज्ञा पु० [ स०] [२. भेदनीय, भेद्य ] १. भेदने की भेदी।-नंद• ग्रं, पृ० ३०५ । किया। छेदना । वेधना । विदीर्ण करना। २. अमलबेत । भेदी-सञ्ज्ञा पु० अमलबेत । ३. हीग । ४. सुअर । ५. चीरना। भेदीसार-संज्ञा पु० [ देश ? ] बढ़इयों का एक.पोजार जिससे वे भेदन-वि० १. भेदनेवाला। छेदनेवाला। २. दस्त लानेवाला । काठ में छेद करते हैं । वरमा । उ०-भेदि दुसार कियो हियो रेचक । दस्तावर। तन दुति भेदीसार । —बिहारी (शब्द॰) । भेदना-शि० स० [स० भेदन ] चीरना। पार पार करना। भेदुर -सज्ञा पुं॰ [ स०] वज्र । छेना । वैधना । उ०-ग्राह ! वह मुख ! पश्चिम के व्योम भेदू-संज्ञा पुं॰ [ स० ] मर्म या भेद जाननेवाला । बीच जब घिरते हो घनश्याम । अरुण रवि मंडल उनको भेद, दिखाई देता हो छविधाम -कामायनी, पृ०४६ । भेद्य'–वि० स०] भेदन करने योग्य । जो भेदा या छेदा जा सके। भेद्य-सञ्ज्ञा पु० १. शस्त्रों आदि की सहायता से किसी पीड़ित अंग भेदनीति-सज्ञा स्त्री० [स०] फूट डालने या विलगाव करने की या फोड़े मादि को भेदन करने की क्रिपा । चीरफाड़ । २. नीति । उ०-भेदनीति से काम तो लिया, परंतु राम ने महान् कार्य किया।-प्रा० भा०प०, पृ० २०४ । व्याकरण में विशेषणयुक्त सञ्चा । विशेष्य (को०] । भेदप्रत्यय-संज्ञा पुं॰ [ स०] भेद अर्थात् द्वैतवाद में विश्वास । भेन -सज्ञा स्त्री० [हिं० बहिन ] बहिन । उ०-मुह पीठ के भेदबुद्धि-सा स्त्री॰ [ स०] एकता का नाश या प्रभाव । फूट । हमसाये से करती है कि भेना । नाहक की खराबी है न लेना विलगाव । है न देना ।-नजीर (शब्द॰) । भेदभाव-सचा पु० [ स० ] अतर । फरक । विशेप-इसका शुद्ध रूप प्रायः "भैन' है। भेदवाद-संज्ञा पुं॰ [स०] द्वैतवाद । भेन-सञ्ज्ञा पुं० पु० [स०] १. ग्रहों वा नक्षत्रों के स्वामी-सूर्य । भेदविधि-पञ्चा जो० [सं०] दो वस्तुप्रों में पंतर करने की विधि २. चद्रमा [को०] । या शक्ति [को०] । भेना-क्रि०स० [हि• भिगोना ] भिगोना । तर करना । 30- [