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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४६७

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भौंरा मौत भौंरा- संज्ञा पु० [सं० भ्रमण ] १. मकान के नीचे का घर । भौर--संज्ञा पुं० [सं० भय ] डर । खाफ । भय । उ०-मेरो भलो २. वह गड्डा जिस में अन्न रखा जाता है । खात । खत्ता । कियो राम प्रापनी भलाई ।......"लोक फहैं राम को गुलाम ही कहावी । ए तो बड़ो अपराध मन भो न पावो ।-तुलसी भौरान-सम्रा पु० दे० 'भोवर'। (शब्द०)। भौंराना-क्रि० स० [स० भ्रमण ] १. घुमाना । परिक्रमा कराना । २. विवाह कराना । २. विवाह को भीवर दिलाना। उ० भौका -संज्ञा पुं० [ देश० ] [ श्री० भौकी ] घड़ी दौरी । टोकरा । वर खोजाय टीका को बहुरि देह भो चाय '—विश्राम भौगिया-संज्ञा पु० [हिं० भोग+इया (प्रत्य० ) ] संसार के ( शब्द०)। सुखो का भोग करनेवाला । वह जो सासारिक सुख भोगता है। भौराना-त्रि० प्र० घुमना । चक्कर काटना । फेरी लगाना । भौगोलिक-वि० [ स०] भूगोल सबधी । भूगोल का । भौंरारा, भौराला-वि० [हिं० भौरा ] घघराला । भौचक-वि० [हिं० भय + चक्ति ] जो कोई विलक्षण वात या भौरी-सज्ञः स्त्री० भाकस्मिक घटना देखकर घबरा गया हो। हक्का बक्का । मा भ्रमण ] १. पशुओं प्रादि के शरीर मे रोमो या बालों आदि के घुमाव से बना हुप्रा वह चक चकपकाया हुप्रा । स्तंभित । जिसके स्थान प्रादि के विचार से उनके गुण दोष का निर्णय क्रि० प्र०-रह जाना ।—होना । होता है । जैसे -इस घोडे के अगले दाहिने पैर की भारी भौचक-समा पु० [ स० भव+चक्र ] ससारचक्र । मावागमन । अच्छी पड़ी है। उ.-फिरि फिरि परी है भोचक माही।-कवीर सा०, क्रि० प्र०-पड़ना। पृ० १५६ । २. विवाह के समय वर वधू का भग्नि की परिक्रमा करना । भौचाल-संज्ञा पुं० [सं० भू+ चाल ] दे० 'भूकंप' । जर। भौजंग-वि० [सं० भौजङ्ग] [वि॰ स्त्री० भौजंगी ] सपं संबंधी । कि० प्र०-पड़ना ।-लेना। सपं जैसा। ३. तेज बहते हुए जल मे पड़नेवाला चक्कर । प्रावतं । भौजंगर-सञ्ज्ञा पुं० प्राश्लेषा नक्षत्र [को०)। क्रि० प्र०--पड़ना। भौज-सज्ञा ली० [हिं० भावज ] भाई की पत्नी। गोजाई । ४. अंगाकड़ी। वाटी । ( पकवान)। भावज । उ०-ननद भौज परपच रच्यो है मोर नाम कहि भौसिला-सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] एक मराठा उपजाति जिसमें शिवाजी लीन्हा ।-कवीर ( शब्द०)। का जन्म हुआ था। उ०—ताते सरजा बिरद भो, सोभित भौजल-संशा पु० [ सं० भव + जल ] संसारसमुद्र । भवसागर । सिंह प्रमान । रन, भूसिला सुभोसिला मायुष्मान खुमान । उ०-मोजल पार पवे होइ हो सूरति शब्द समैहो ।- -भूपण ग्रं॰, पृ०७६ घट०, पृ० २०६। भौंह -- सज्ञा स्त्री० [सं० भ्रू] शंख के ऊपर की हड्डी पर जमे हुए रोएँ भौजाई-जा श्री० [सं० भ्रातृजाया ] भाई की भार्या । भ्रातृवधू । या बाल । भृकुटी । भौं । भव । उ०- भौह लता बड़ देखिन भावज । भाभी। कठोर, अजने ऑजि हासि गुन जोर ।-विद्यापति, भौजाल-शा पु० [सं० भव+जाल संसार के प्रपंच। पृ०२४३ सासारिक माया । उ०—साई जब तुम मोहिं बिसरावत, भूलि मुहा०-भौंह चदाना या तानना=(१) नाराज होना। क्रुद्ध जात भोजाल जगत माँ-जग० बानी, पृ० ६ । होना। उ०-बदत फाहू नही निधरक निदरि मोहिं न गनत । भौजिष्य-सज्ञा पु० [स०] दासता । वार बार बुझाइ हारी भोह मो पर तनन । -सूर (पाव्द०)। भौजी-मचा ली० [सं० भ्रातृजाया ] दे० 'भौजाई । (२) त्योरी चढ़ाना। बिगड़ना। भौंह जोहना-प्रसन्न रखने के लिये संकेत पर चलना । खुशामद करना । उ०- भौज्य-संज्ञा पु० [स०] वह राज्यप्रबंध जिसमें प्रा से राजा लाभ अकारन को हितू और को है। विरद गरीवनेवाज कौन तो उठाता हो, पर प्रजा के स्वत्वों का कुछ विचार न करता को भोह जानु जन जोहै । —तुलसी (शब्द०)। भौद्ध हो । वह राज्य जो केवल सुखभोग के विचार से होता हो, ताकना = किसी की प्रवृत्ति या विचार का ध्यान रखना। प्रजापालन के विचार से नहीं। इसमें प्रजा सदा दुःखी रुख देखना। रहती है। भौंहरा-सज्ञा पु० [सं० भूमिगृह, प्रा० भूहर>भुइँहर या हिं० भौट, भौट्ट -संज्ञा पु० [ स० ] तिब्बत का निवासी। मुँइ + घर ] दे० 'भुइहरा' । उ.-हीरा लाल जवाहिर घर भौटा-शा पु० [देश॰] छोटा पहाड़ । टोला । पहाड़ी। मैं मानिक मोती चोहरा । कौन बात की कमी हमारे भरि भौत-वि० [स०] [वि॰ स्त्री० भौती ] १. भूत संबधी। प्रारिण- भार राखै भौहरा।-सुदर पं०, भा॰ २, पृ० ६१४ । संबंधी । २. भौतिक । ३. भूतप्रत सबधी । ४. भूतग्रस्त । भोलर-सञ्चा पु० [स० भव ] संसार । जगत् । दुनियाँ । उ०- भूताविष्ट । अली भी भील ने पकरा, जबर जजोर में जकरा ।-घट०, भौत-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १. भूतयज्ञ । बलिकमं । २. भूतपूजक । ३. पृ०३०६। भूतों का समूह । ४. देवल । ५. मदिर का पुजारी [को०] ।