पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४७२

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भ्रातुपुत्री घृण भ्रातुष्पुत्री-संज्ञा ली० [सं०] भतीजी । भ्र तृपुत्री [को॰] । भ्रामण-संज्ञा पु० [सं०] वह जो चारों ओर घूमता, हिलता या भ्रातृक-संज्ञा स्त्री० [स०] १. वह धन आदि जो भाई से मिला झूलता हो । दोलायमान किो० । हो । २. वह वस्तु जो भाई की हो। भ्रामर'-सज्ञा पु० [ स०] १. भ्रमर से उत्पन्न, मधु । शहद । २. भ्रातृगंधि, भ्रातृगंधिक-वि० [सं० भ्रातृगन्धि, भ्रातृगन्धिक ] भाई दोहे का दूसरा भेद । इसमें २१ गुरु और ६ लघु मात्राएँ का नाम मात्र रखनेवाला । नाम का भाई [को०)। होती हैं । जैसे,—माधो मेरे ही बसो राखो मेरी लाज । कामी क्रोधी लंपटी जानि न छोड़ो काज । ३. वह नृत्य जिसमें भ्रातृज-संज्ञा सी० [ स०] [स्त्री० भ्रातृजा ] भाई का लड़का । बहुत से लोग मंडल बनाकर नाचते हैं। रास । ४. घुबक भतीजा। पत्थर । ५. अपस्मार रोग । ६. ग्राम | गांव (को०) । ७. भ्रातृजा-संवा स्त्री॰ [सं०] भाई की पुत्री । भतीजी । एक रतिबंध । रति का एक प्रकार (को॰) । भ्रातृजाया-संज्ञा स्त्री॰ [स०] भाई को स्त्री । भौजाई । भाभी । भ्रामर-वि० भ्रमर संबधी । भ्रमर का। भ्रातृत्व-संज्ञा पु० [सं०] भाई होने का भाव या धर्म । भाईपन । भ्रामरी-संज्ञा पु० [भ्रामरीन् ] १. जिसे भ्रामर या अपस्मार रोग भ्रातृदत्त'- वि० [सं० ] भ्राता द्वारा प्राप्त या मिला हुमा । हुमा हो । २. मधु से निर्मित (को॰) । भ्रातृदत्त-संशश पुं० [सं०] विवाहादि के अवसर पर भाई से बहन भ्रामरी - संज्ञा स्त्री॰ [स०] १. पार्वती । २. पुत्रदात्री नाम को को मिली हुई कोई वस्तु । लता । ३. प्रदक्षिणा (को०)। भ्रातृद्वितीया-संवा स्त्री० [सं०] कार्तिक शुक्ल द्वितीया । यम भ्रामिक-वि० [स०] दे० 'भ्रामक'। उ०-स्वार्थ के श्रामिक पथ द्वितीया। भाई दूज। पर-चंद०, पृ० ८२। विशेष—इस दिन यम और चित्रगुप्त का पूजन किया जाता है, भ्राभित-वि० [सं०] घुमाया या नचाया हुप्रा । ( नेत्रादि)। बहनों से तिलक लगवाया जाता है, इन्ही के दिए हुए पदार्थ भ्रामी-वि० [ सं० भ्रामिन् ] व्यग्र । उद्विग्न । पाकुल [को०) । खाए जाते हैं और उन्हें कुछ द्रव्य दिया जाता है। भ्राष्ट्र-सज्ञा पु० [ स०] १. अाकाश । २, प्रकाश । दीप्ति (को॰) । भ्रातृपुत्र-संशा पुं० [सं०] भाई का लड़का । भतीजा । ३. वह बरतन जिसमें भड़भूजे अनाज रखकर भूनते हैं । भ्रातृपुत्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] भाई की पुत्री । भतीजी । भ्राष्ट्रक-संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'भ्राष्ट्र'-३ । भ्रातृभाव-संज्ञा पुं० [सं०] भाई का सा प्रेम या संवध । भाई- भ्राष्ट्रकि-संज्ञा पुं० [सं० ] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम । चारा। भाईपन। उ०-भ्रातृभाव का उल्लास प्रखर। भ्राष्ट्रमिंध-वि० [स० भ्राष्ट्रमिन्ध ] भूननेवाला । जो भूनता हो । -अपरा पृ० २१५ । भ्रास्त्रिक-संज्ञा पुं० [ स०] शरीर की एक नाडी का नाम । भ्रातृवधू-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] भौजाई । भ्रातृ जाया ।भाभी। भावज । भ्रित, भ्रित्त-संज्ञा पु० [ मं भृत्य ] दे० 'भृत्य' । उ०-वोलि भ्रातृव्य-संज्ञा पु० [स०] १. भाई का लड़का | भतीजा । २. भ्रित्त अप्पान, कहिय सूनान मत्त गुन । -पृ० रा०, १६६१८ । शत्रु । विरोधी । दुश्मन (को॰) । भ्रित्य-पंज्ञा पु० [सं० भृत्य ] दे० 'भृत्य' । उ०-तहाँ सदा भ्रातृश्वसुर-संज्ञा पु० [सं०] पति का बड़ा भाई । जेठ । भसुर । सनमख रहै प्रागै हाथ जोडै भ्रित्य ही।--सुदर० ० भा० १, पृ० २७॥ भ्रात्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] भाई। भ्रात्रीय'-वि० [सं०] भ्राता संबंधी । भ्राता का। भ्रुकुश, भ्रॉस-संञ्चा पु० [सं०] वह नट जो स्त्री का वेष धारण करके नाचता हो। भ्रात्रीय-सज्ञा पुं॰ [स०] भतीजा [को०] । भृकुटि, भृकुटी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दे० 'भृकुटी'। भ्रात्रेय-वि० संज्ञा पु० [स०] दे॰ 'भ्रात्रीय' । भ्रकुटिमुख-संज्ञा पु० [ स०] एक प्रकार का साप । भ्राज्य-संज्ञा पुं० [सं०] भाईपन । भायप । भ्रातृस्नेह । भ्रव--संज्ञा स्त्री॰ [ स० भ्र] भौह । भृकुटी । भ्र । उ०-ललित भ्रादिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] संगीत में एक श्रुति का नाम (को०] । हास मुख सुख प्रकास कुंडल, उजास हग भ्र व विलास ।-- भ्राम-संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो भ्रमयुक्त हो। २. भून । धेख । घनानद, पृ०४२५ । ३. वह जो चारो ओर घूमता हो [को०] । भ्र--सशा मी० [स०] प्रांखों के ऊपर के बाल । भौं । भौह । भ्रामक'-वि० [सं०] १. श्रम में डालनेवाला । बहकानेवाला । क्रि०प्र०-- चलाना |-- मटकाना |-हिनाना । धोखे मे डालनेवाला। २. संदेह उत्पन्न करनेवाला । ३. यौ-भ्र कुटि=भ्रूभंग। भ्र कुटिमुख=एक सांप । अ क्षेप, घुमानेवाला । चक्कर दिलानेवाला । ४ धूतं । चालबाज । भ्र विक्षेप = भ्रूभग । भो टेढ़ी करना । भ्रजाह = भो का मूल । भ्रामक-सज्ञा पु० १. गीदड़ । सियार । २. नुवक पत्थर । ३. भ्रूण-सा पु० [सं०] १. स्त्री का गर्भ। २. बालक को उस समय कांति लोहा । ४. सूर्यमुखी का फूल (को०) । ५. धोखा । की अवस्था जब वह गर्भ में रहता है। बालक की जन्म छल । चालबाजी (को०)। लेने से पहले की अवस्था।