पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४७९

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मडलव्यूह उ०-चड मडना ३७१३ वात सिदध करना। खंडन' का उलटा । जैसे, पक्ष का मडल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० मण्डल] १. चक्र के प्राकार का घेरा । मंहन । ४. ख्यात दार्शनिक मंडन मिश्र । कहा जाता है प्राद्य किसी एक बिंदु से समान अतर पर चारों ओर घूपी हुई शंकराचार्य ने इन्हे शास्त्रार्थ में पराजित किया या । परिधि । चक्कर । गोलाई। वृत्त । यौ o-मढनकाल = सजने संवरने का अवसर या मौका। मुहा०-मडल बाँधना-(१) चारों ओर वृत्त की रेखा के रूप मडनप्रिय = जिसे आभूषण प्रिय हो । में फिरना । चक्कर काटना । जैसे, मंडल बांधकर नाचना । (२) गरो ओर घेरना। चारो ओर से छा जाना । जैसे, मडनाg:-क्रि । स० [स० मण्डन] १. मडिन करना । सुसज्जित करना। संवारना । भूपित करना । शृंगार करना। २. बादलो का मंहल बांधकर बरसना। (३) अंधेरे का चारो पोर छा जाना। युक्ति आदि देकर सिद्ध या प्रतिपादित करना। समर्थन या पुष्टिकरण करना । ३. परिपूरित करना । भरना । छाना । २ गोल फैलाव । वृत्ताकार या अंडाकार विस्तार । गोला । जैसे, कोदंड २ ह्या मंडि नवखड को ।-केशव भूमडल । ३. चंद्रमा वा सूर्य के चारो मोर पड़नेवाला घेरा जो ( शब्द०)। कभी कभी आकाश में वादलो की बहुत हलकी तह या कुहरा मडना-क्रि० स० [ म मर्दन ] मदित करना। दलित करना । रहने पर दिखाई पड़ता है। परिवेश । ४. किसी वस्तु का वह गोल भाग जो अपनी दृष्टि के ममुख हो। जैसे, चद्रमडल, मोड़ना । उ.-( क ) प्रबल प्रचड बरिबंड बाहुदड खदि मडि मेदिनी को मडलीक लीक लोपि हैं । -तुलसी (शब्द०)। सूयमहल, मुखमरल । ५. चारों दिशामो का घे। जो गोल दिखाई पड़ता है। क्षितिज । ६. वारह राज्यों का समूह। (ख) कुभ विदारन गज दलन अब रन मडै जाइ ।-हि. क० का०, पृ० २२३ । यौ०-मंडलेश्वर । मडप-सज्ञा पुं॰ [सं० मण्डप ] ऐसा स्थान जहाँ बहुत से लोग धूप, ७. चालिस योजन लंबा और वीस योजन चौड़ा भूमिखंड वा वर्षा आदि से वचते हुए वैठ सकें। विश्रामस्थान । घर । प्रदेश । ८. समाज । समूह । समुदाय । जैसे, मित्रम हल ।उ०- जैसे, देवमडप । २. बहुत से आदमियो के बैठने योग्य चारो गोपिन महल मध्य विराजत निसि दिन करत बिहार-सूर ओर से खुला, पर ऊपर से छाया हुआ स्थान | बारहदरी । (शब्द०)। ६. एक प्रकार का व्यूह । सेना की वृत्ताकार विशेष-ऐसा स्थान प्रायः पटे हुए चबूतरे के रूप में होता है स्थिति । १०. कूकुर । कुत्ता । ११. एक प्रकार का सर्प । १२. जिसके ऊपर खभो पर टिकी छत या छाजन होती है। देव- एक प्रकार का गंधद्रव्य । व्याघ्रनखा । बधनही। १३. एक मदिरो के सामने नृत्य, गीत आदि के लिये भी ऐसा स्थान प्रकार का कुष्ट रोग जिसमें शरीर मे चकत्ते से पड़ जाते हैं । १४. शरीर की प्राठ सघियों में एक ( सुश्रत ) । १५. ग्रह के प्रायः होता है। घूमने की कक्षा । १६. खेलने का गेंद । १७. कोई गोल ३. किसी उत्सव या ममारोह के लिये बांस फूस प्रादि से छाकर दाग वा चिह्न। १८. ऋग्वेद का एक खंड । १६. चक्र । बनाया हुप्रा स्यान । जैसे, यज्ञमंडप, विवाहमडप | चाक । पहिया । २०. राजा के प्रधान कर्मचारियों का समूह । मुहा०-मंडप भरना = मंडप की शोभावृद्धि करना । उ०- वि० दे० 'अष्टप्रकृति'। मिलि विधान मंडप भरिय ।-पृ० रा०,२११६३ । मडलक-संज्ञा पुं॰ [ स० मण्डलक ] १. दे० 'मंडल'। २. दर्पण । ४. देवमंदिर के ऊपर का गोल या गावदुम हिस्सा । ५. चॅदोवा । ३. घेरादार वातु । उ०-ऊपरवाले किनारे पर एक घुडी या पशामियाना । ६. लतादि से घिरा हुप्रा स्थान । कुज । मंडलक होता है-भौतिक०, पृ० ३६५ । मडप-वि० १. मांड पीनेवाला । २. मक्खन, तक्र आदि मडल कवि-संवा पुं० [सं० मण्डलकषि ] कुकवि । बुरा कवि (को०] । पीनेवाला [को०] । मडलकामुक-वि० [सं० मण्डल कामुक ] जिसका धनुप झुका हुआ मडपक-संज्ञा पु० [सं० मण्डपक ] लघु मंडप । छोटा मंडप [को०] । वा मंडलाकार हो [को०] । मंडपिका-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मण्डपिका] १. छोटा मंडप । २. नगर मंडलनृत्य -सञ्ज्ञा पुं० [सं० मण्डलनृत्य] गतिभेदानुसार नृत्य का एक या ग्राम में वस्तु विक्रय का कर । उ०-व्यापारियों को नगर भेद । वृत्त की परिधि के रूप मे घूमते हुए नाचना । या ग्राम में वस्तु बेचने पर टैक्स देना पड़ता था। उसके लिये मडलपत्रिका-संज्ञा स्त्री० [सं० मण्डलपत्रिका ] रक्त पुनर्नवा । मंडपिका शब्द का प्रयोग मिलता |-पू० म० भा०, लाल गदहपूरना। पृ० ११३॥ मडलपुच्छक-सञ्ज्ञा पु० [सं० मण्डलपुच्छक ] एक कीड़ा जिसको मडपी-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० मण्डप १. छोटा मंडप । २. मढ़ी। सुश्रुत में प्राणनाशक लिखा है। इसके काटने से सर्प का सा मडर-मज्ञा पु० [ स० मण्डल ] दे० 'महल' । उ०—(क) होइ विष चढ़ता है। मंडर ससि के नहुँ पासा । -जायसी पं० (गुप्त), पृ० ३१६ । मडलवर्ती-संज्ञा पु० [सं० मण्डलवर्तिन् ] मंडल का शासक [को॰] । (ख) सब रनिवास बैठ चहुँ पासा । ससि मंडर जनु वैठ मडलवर्ष-संज्ञा पु० [सं० मण्डलवर्ष ] १. किसी शासक के पूरे प्रकासा।-पदमावत, पृ० ३२६ । मंडल में हुई वर्षा । प्रदेशव्यापी वर्षा [को०] । मरी-सञ्ज्ञा ली० [देश॰] पयाल की बनी हुई गोदरी या चटाई। म डलव्यूह-सचा पु० [सं० मण्डलव्यूह ] कौटिल्य वणित वह -