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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४८०

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म डलाकार मडूसूक्त व्यूह जिसमें सैनिक चारों ओर एक घेरा सा बनाकर खड़े मंडा--संज्ञा पुं० [सं० मएटल ] भूमि का एफ मान जो दो विस्ये किए जाय। के बराबर होता है। मंडलाकार-वि० [ स० मण्डलाकार ] गोल । मंडल के प्राफार का। मंडा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की बंगला मिठाई। मंडलाकृत-वि० [स० मण्डलाकृत ] दे० 'मडलाकार ' [को०] । मंडा-संशा रसी० [हिं० माइना (= Dथना) गटी। दे० मंडलाप्र-संज्ञा पु० [सं० मण्डलान] १. चीर फाड़ मे काम प्राने 'माहा"। उ०-तुम्हारे भी दो मडे सेक दुगी ।-वो वाला एक प्रकार का शस्त्र या प्रोजार ( सुश्रुत )। २. दुनियाँ, पृ० ११६ । खंजर । घुमावदार तलवार (को॰) । मंडा-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मएडा] १. सुरा । २. ग्रामलको । मंडलाधिप-संज्ञा पु० [ स० मएलाधिप] दे० 'मंडलेश्वर'। मंडान-संज्ञा पुं० [हिं० मंदन ] मंडन या मंडल करने का भाव । दे० 'मंडल' और मडन' । उ०-(क) गगन करू मंडान । मंडलाना-क्रि० अ० [हिं० मडल ] दे० 'मॅडराना' । जहं पाहि ससि गन भान |-जग० वानी, पृ० १२६ । (स) मंडलायित-वि० [सं० मण्डलायित ] वर्तुल । गोल । कबीर थोड़ा जोवणां, माई बहु मंडाण !-कबीर ग्रं, मडलाधीश-संज्ञा पुं० [सं० मण्डलाधीश ] दे० 'मडलेश्वर'। पृ. २१॥ मसलिका-मज्ञा स्त्री० [सं० मण्डलिका ] गोष्ठी । समुदाय । समूह । मंडित-वि० [ स० मएिटत ] १. विभुषित । सजाया हुप्रा । संपारा श्रेणी [को॰] । हुमा । २. प्राच्छादित | छाया हुमा । ३. पूरित । भरा हुप्रा। मडलित-वि० [सं० मण्डलित ] मंडलयुक्त। वर्तुलाकार बनाया मंडी'-संशा स्त्री० [सं० मएडपो ] थोक विक्री की जगह । बहुत हुधा (को०] । भारी वाजार जहाँ व्यापार की चीजें बहुत आती हो। बड़ा मडलो'---संज्ञा स्त्री॰ [ स० मण्डली ] १. समूह । गोष्ठी । समाज । हाट। जैसे अनाज की मंडी। जमायत । समुदाय ।३०-मराल मडली और सारस समूह । मुहा०-मंडी लगना = बाजार खुलना । प्रेमघन०, भा० २. पृ० ११ । २. दून | ३. गुड़च | मंडो-संज्ञा स्त्री० [ स० मण्डल भूमि मापने का एक मान जो दो मंडली-संज्ञा पुं० [सं० मण्डलिन् ] १.एक प्रकार का साँप । सुश्रुत बिस्वे के बराबर होता है । के गिनाए हुए सांप के पाठ भेदों में से एक । विशेषा-इनके पारीर में गोल गोल वित्तिय सी होती हैं और मंडुआई-वंश पु० [ देरा० ] दे० 'म मा' । उ०-कोद्रा भा है किंतु यह हमारे देश का कोदो नही महुप्रा ( रागी) है।- यह भारी होने के कारण चलने में उतने तेज नहीं होते। किन्नर०, पु. ७०। २ वटवृक्ष । ३. बिल्ली। विशाल । ४. सर्प । साँप (को०)। ५. मंडुक-संज्ञा पुं० [सं० मण्डूक ] दे० 'मर्क' । उ०-खात पियत श्वान | कुत्ता (को०)। ६ प्रात का शासक । मडलाधिप अरु स्वसत स्वान मडुक अरु भाधी।-भारतेंदु ग्र०, मा० (को०) । ७. नेवले की जाति का बिल्ली की तरह का एक १, पृ० ६६७. जंतु जिसे वंगाल में खटाश और उत्तरप्रदेश में कही कहीं मंडूक --सज्ञा पु० [ स० मण्डूक ] १. मेंढक । उ०-मंहगों का टर सेंधुनार कहते हैं । ८. सूपं । ३०-मुख तेज सहस दस मडली टर करना भी कैसा डरावना मालूम होता है। भारतेंदु बुधि दस सहस कमडली । -गोपाल ( शब्द०)। ग्र०. भा० १, पृ० २६८ । २. एक प्रपि । ३. दोहा छद का मंडला-वि० १. मडल वनानेवाला । घेरा बनानेवाला । २. मडल पांचा भेद जिसमें १८ गुरु पौर १२ लघु अक्षर होते है। का शासन करनेवाला (को०) । ४. रुद्रताल के ग्यारह भेदो में से एक। ५. प्राचीन काल का मडलीक-संशा पुं० [ स० मण्डलीक ] एक मंडल वा १२ राजापो एक वाजा। ६. एक प्रकार का नृत्य । ७. एक प्रकार का का अधिपति । उ०-बालक नृपाल जू के ख्याल ही पिनाक रतिबंध (को०)। ८. घोड़े की एक जाति । तोयो मंडलीक मंडली प्रताप दाप दाली री:-तुलसी यौ०- मंडूककुल-मेढकों का समूह । मंडू गति = (१) मेडक (शब्द.)। की सी चालवाला । (२) दे० 'मदर लुति'। मंदूकपणं। मटलीकरण-संशा ० [सं० मण्डलीकरण ] १. सपं का कुडली मडूकपर्णा, मंडूकपर्णिका = दे० 'मकपर्णी । मंहकप्नुति । बांधना या मारना। २. वर्ग, घेणी वा समूह बनाना (को०) । मकमाता । मंदूकसर-मेढकों से भरा तालाय । मंसूक्त । मंडलीश-संज्ञा पु० [ स० मण्डलीश ] एक मडल का अधिपति। मंडूकपर्ण-संज्ञा पु० [ मा हकपणं ] योनाक वृक्ष :ो । नरेश (को०] । मंडूकपर्णी-म० मी० [स० मरदूकपर्णी] १. बाया यूटी । २. मजिष्ठा। मंडलेश-संश पु० [सं० मण्डलेश ] दे० 'मडलेश्वर' । मंडलेश्वर-संज्ञा पुं० [स० मण्डलेश्वर ] एक मंडल का अधिपति। मंडूकप्लुति -संशग [ स०] १. मेढक को उबाल । २. नीच १२ राजाओं का अधिपति । बीच में की छूट (को०)। मंहहारक-सशा पु० [सं० मण्डहारक ] मद्य का व्यवसायी। मंडूकमाता- नॉ[सं० मएहूकमान ] पालो लता (०) । फैलवार। मंडूकसूक्त-संग पुं० [ स० मण्दसूक ] म्हग्वेद का एक सक्त जिसके