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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/४९६

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मग मखस्वामी मक्षहग-संज्ञा पु० [ स० मत्स्यदृग | एक प्रकार का मोती जिसके मखनिया-वि. जिसमें से मक्खन निकाल लिया गया हो। जैसे, विषय में लोगो की यह धारणा है कि इसके पहनने से पुत्र मखनिया दूध, मखनिया दहो । मर जाता है। मखनी-सज्ञा ना [हिं० मक्खन ] प्रायः एक वालिश्त लंबी एक मक्षवीर्य-संज्ञा पु० [सं०] पियार नाम का वृक्ष । प्रकार की मछली जो मध्य भारत की नदियों मे पाई मक्षिका-संज्ञा स्त्री० [स०] १. साधारण मक्खी । २. शहद की जाती है। मक्खी। मखप्रभु-सज्ञा पु० [ स०] सोम लता [को०] । मुहा०-मक्षिका स्थाने मक्षिका = विना बुद्धि से काम लिए मखफी-वि० [अ० माफ़ी ] छिपा हुमा । पोणी दा । गुप्त । उ०- अधानुकरण । जैसे का तैसा । उ०-नथकर्ता की मानकर बाद अज जिके कल्वी लेने दिल मे मखफी वूझ-दक्खिनो०, मक्षिका स्थाने मक्षिका लिखना अनुवादकर्ता अपना धर्म मानते पृ० ५६ । हैं।-प्रेमघन॰, आ०२, पृ० ४४१। मखमय-संज्ञा पु० [सं० ] विष्णु। मक्षिकामल -सज्ञा पु० [सं०] मोम । मखमल-संज्ञा स्त्री० [अ० मखमल ] १. एक प्रकार का बहुत मक्षिकासन-सज्ञा पु० [सं०] शहद की मक्खी का छत्ता । बढ़िया रेशमी कपड़ा जो एक मोर से रूखा और दूसरी ओर मक्सी-संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. वह सब्जा घोड़ा जिसपर काले फूल बहुत चिकना और अायत कोमल होता है । इस पोर छोटे या दाग हों। २. बिल्कुल काले रंग का घोडा। छोटे रेशमी रोएं भी उभरे रहते हैं । २. एक प्रकार की रगीन दरी जिसके बीचोबीच एक गोल चंदोसा बना रहता है। मख-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ । उ०-सोपत मख महि जनकपुर, सीय सुमंगल खानि ।-तुलसी० ग्रं०, पृ० ८३ । मखमली-वि० [अ० मखमल+ ई (प्रत्य॰)] १. मखमल का वना हुप्रा । जैसे, मखमली टोपी। २. मखमल का सा। मखजन-संज्ञा पुं० [अ० मख़ज़न] १. खजाना। भडार । कोष । मखमल की तरह का । जैसे, मखमली किनारे की पोती। उ.-मखजन रहमो करम फजल के ।-कवीर , पृ० ४६ । २. गोला बारूद प्रादि रखने का स्थान (को०) । मखमसा-संज्ञा ० [अ० मखमसह ] १. बखेड़ा । झमट। झमेला । २. चिंता । ३. भय (को॰) । मखतूल-संज्ञा पुं० [स० मधं तूल ] काला रेशम । उ.-नव मखतूल तूल ते कोमल दल बल कल अनुकूल महाई । मखमित्र-सज्ञा पुं० [सं०] विष्णु । -घनानंद, पृ० ४४०। मखमर-वि० [अ० मखम र ] मदोन्मत्त । नशे में चूर । उ०- मखतूली-वि० [हिं० मखतूल + ई (प्रत्य॰)] काले रेशम से बना नशीली माँखें वहाँ नही जहाँ मेरा मखमूर नहीं । -भारतेंदु हुमा । काले रेशम का। पं. भा०२, पृ० १६४। मखचाता-संज्ञा पुं० [सं० मखत्रातृ ] १ वह जो यज्ञ की रक्षा मखमृगव्याध-संज्ञा पुं० [ 10 ] शिव का एक नाम को । करता हो। २. रामचद्र जिन्होने विश्वामित्र के यज्ञ की मखरज-सज्ञा पु० [ प्र० मखज ! १. उद्गमस्थान । स्रोत । २. रक्षा की थी। शब्द उच्चारण का मूल स्थान (को॰] । मखदूम-संज्ञा पुं० [अ० मखदूम ] १. वह जिसकी खिदमत की मखरराज-संज्ञा पुं० [० ] यज्ञो में श्रेष्ठ गजसूय यज्ञ । जाय | २. स्वामी। मालिक । मखलूक-संज्ञा पुं० [अ० मखलूक ] ईश्वर की सृष्टि । परमेश्वर मखदूम' वि० सेवा के योग्य । पूज्य । के बनाए हए प्राणी। उ०-भला मखलूक खालिक की सिफत समझे कही कुदरत । -भारतेदु ग्र०, मा० २, मखदूमो-सज्ञा पु० [अ० मखदूम का संबोधन कारक ) हे पूज्य । पृ० ८५१ । हे सेव्य । मखलुकात-सज्ञा स्त्री॰ [ 80 ] सृष्टि । वह सब चीजें जो संसार मखदूश-वि० [अ० मखदूश] खतरनाक । डरावना । भयानक (को०] । मखद्विष्- सज्ञा पु० [सं० मखद्विप् ] राक्षस [को॰] । मखलूत-वि. [८० मखलूत ] मिश्रित । गडबड्ड। मिलाजुला । मखद्वषी - सज्ञा पु० [ स० मखोषिन् ] १. राक्षस । २. शिव (को॰) । 10-मखलू तुन्नरल-वर्णसंकर । मखधारी-सज्ञा पु० [ स० मखधारिन् ] यज्ञ करनेवाला । वह जो मखवल्क्य-सज्ञा पु० [ स० मख+ वत्यय ] दे० 'याज्ञवल्क्य'। यज्ञ करता हो। मखर्वाल-सज्ञा पु. [ ] यज्ञ की बलि । यज्ञाग्नि [को०] । मखन-संज्ञा पु० [हिं० मक्खन ] दे० 'मक्खन' । मखशाला-सज्ञा बी० [म.] यज्ञ करने का स्थान । यज्ञशाला। मखना-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] दे० 'मकुना' । मखसूस-वि० [अ० मखसूस ] जो किसी विशिष्ट कार्य के लिये मखनाथ-संज्ञा पु० [सं०] यज्ञ के स्वामी, विष्णु । अलग कर दिया गया हो। खास तौर पर अलग क्यिा या बनाया हुआ । मखनिया-पंज्ञा पुं० [हिं बनाने या बेचनेवाला। मखस्वामी-संज्ञा पु० [स० O मक्खन 1 (प्रल