मटकी' ३७४६ मटुकी मटको संज्ञा स्त्री॰ [हिं० मटका ] छोटा मटका । कमोरी । १. धीरे धीरे घूमना । टहलना । २. सैर सपाटा । ३. निरु- मटकी-संशा सी० [हिं० मटकाना ] मटकाने का भाव । मटक । द्देश्य भ्रमण। मुहा०-मटकी देना= मटकाना । चमकाना । जैसे,-प्रांख मटरगश्ती-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'मटरगश्त' । मटरबोर-संज्ञा पुं० [हिं० मटर + बोर (= घुघरू) ] मटर ) की एक मटकी देकर चला गया। दाने के बराबर घुघरू जो पाजेब प्रादि मे लगते हैं । मटफोला-वि० [हिं० मटकना+ईला (प्रत्य॰)] मटकनेवाला । नखरे से हिलने डोलनेवाला। उ०- चटकीली खोरि सजे मटराला-संज्ञा पु० [हिं० मटर+थाला (प्रत्य॰)] जी के साथ मटकीली भौंहन पै दीनदयाल ग मोहे लटकीली चाल ।- मिला हुमा मटर। दीनदयाल (शब्द०)। मटलनी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० मिट्टी(=मट)+अलनी ] मिट्टी का कच्चा बर्तन। मटकौयल, मटकौवन-संशा स्त्री० [हिं० मटकाना+श्रीवल मटल्ला@+-संज्ञा पु० [हिं० मट + (अल्ला)] दे॰ 'मटका' । उ०- (प्रत्य०)] मटकाने की क्रिया या भाव । मटक । मथाणे मटल्ले मही जाण हल्ले ।-रा० रू०, पृ० १६१ । मटखौरा--संज्ञा पु० [हिं० मिट्टी+खौरा ? ] एक प्रकार का हाथी मटा - पुं० [हिं० माटा ] एक प्रकार का लाल च्यू'टा जिसके जो दुषित माना जाता है। झुड पाम के पेड़ो पर रहा करते हैं। इसे माटा भी मटना-शा पु० [ देश० ] एक प्रकार की ऊख जो कानपुर और कहते हैं। बरेली जिलों में पैदा होती है। मटियाना-क्रि० स० [हिं० मिट्टी+पाना (प्रत्य०) ] १. मटम गरा--संज्ञा पु० [हिं० माटी+मंगल ] विवाह के पहले की मिट्टी से मौजना । प्रशुद्ध वरतन आदि मिट्टी मलकर एक रीति जिसमें किसी शुभ दिन वर या वयू के घर की उसे साफ करना । २. मिट्टी से ढाकना । स्त्रियां गाती वजाती हुई गांव में बाहर मिट्टी लेने जाती हैं मटिआना-क्रि० स० [सं० मष्ट + हिं० करना+शाना ] टालने यौर उस मिट्टी से कुछ विशिष्ट अवसरों के लिये गोलियां के हेतु किसी बात को सुनकर भी उसका कुछ जवाब न यादि बनाती हैं। देना । महटियाना । सुनी अनसुनी करना । मटमैला-वि० [हिं० मिट्टी + मैला ] मिट्टी के रंग का । खाफी। मटिया-संशा खी० [हिं० मिट्टी (=मट)+इया (प्रत्यय०)] 1. धूलिया। उ०—किंतु मटमैले पानी का रंग देखते प्यास भाग मिट्टी । २. मृत शरीर । लाश । शव । गई।-किन्नर०, पृ० ४८ । मटिया-वि० मिट्टी का सा । मटमैला । खाकी । मटर-संज्ञा पुं॰ [सं० मधुर ] एक प्रकार का मोटा द्विदल धन्न । मटिया-संज्ञा पु० एक प्रकार का लटोरा पक्षी जिसे कजला भी विशेष—यह वर्षा या शरद् ऋतु में भारत के प्रायः सभी भागों कहते हैं। मे बोया जाता है। इसके लिये अच्छी तरह और गहरी मटियाना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'मटिमाना'। जोती हुई भूमि और खाद की पावश्यकता होती है । इसमें मटियाफूस-वि० [हिं० मिट्टी+ फूस ] बहुत अधिक दुर्बल और एक प्रकार की लंबी फलियां लगती हैं जिन्हे छीमी या वृद्ध । जर्जर छीयो कहते हैं घोर घिनके अंदर गोल दाने रहते हैं। प्रारंभ मटियामसान-वि० [हिं० मटिया+मसान ] गया बीता । नष्ट- में ये दाने बहुत ही मीठे और स्वादिष्ट होते हैं और प्रायः प्राय । उ०-स्त्रीप्रसंग, चाहे जो ऋतु हो, प्रतिदिन करना तरकारी धादि के काम में आते हैं। जब फलियां पक हाथी सरीखे बलवान को भी मटियामसान कर बुड्ढों को जाती हैं, तब उनके दानों से दाल बनाई जाती है अथवा कोटि में कर देता है। -जगन्नाथ (शब्द०)। रोटी के लिये उसका पाटा पोसा जाता है । कहीं कही इसका मटियामेट-वि० [ह. ] दे० 'मलियामेट' । सत्तू भी बनता है। इसकी पत्तियां पौर उठल पशुओं के चारे मटियारी-सज्ञा पु० [हिं० मिट्टी + यार (प्रत्य॰) ] वह भूमि या के लिये बहुत उपयोगी होते हैं । यह दो प्रकार का होता है। क्षेत्र जिसमें चिकनी मिट्टी अधिक हो । एक को दुविया मोर दूसरे को कावुली मटर या केराव कहते हैं। वैद्यक में इसे मधुर, स्वादिष्ट, शीतल, पिचनाशक, मटियाला-वि० [हिं० मिट्टी+वाला ] दे० 'मटमैला'। रुचिकारक, वातकारक, पुष्टिजनक, मल को निकालनेवाला मटियासाँप-संज्ञा पु० [हिं० मटिया+साँप ] मटमैले रंग का सर्प । और रक्तविकार को दूर करनेवाला माना है। मटीला-वि० [हिं० माटो+ईला (प्रत्य॰)] दे॰ 'मटमैला' । पर्या-कलाय । मुडघणक । हरेणु । रेणुक । संदिक । त्रिपुट । मटुक-संज्ञा पुं० [सं० मुकुट ] दे० 'मुकुठ'। उ-छोरहु जटा प्रतिवर्तुल । शमन । नीलक । कंटो। सतील । सतीनक । फुलाएल लेहू । झारहु केस मटुक सिर देहू ।-जायसी ग्रं यो-मटर चूड़ा या चूडा मटर = हरे मटर की फलियों के (गुप्त), पृ० ३०८ । मुलायम दाने पोर चिउड़े के साथ बनी खिचड़ी जिसमें पानी मटुका-संवा पु० [हिं० माटी ] दे॰ 'मटका'। नहीं डालते भाप और घी से पकाते हैं । मटरवोर । मटुकिया-संज्ञा बी० [हिं० मटुका + ईया (प्रत्य॰)] दे० 'मटको' । मटरगश्त-संशा सी०, पु० [हिं० मट्ठर (= मंद)+ फ़!० गश्त ] मटुकी@1-संशा नी० [हिं० मटका ] मिट्टी का बना हुआ चौथे ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५०७
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