पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५०८

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मट्टी ३७४७ मड़नी मुंह का बरतन जिसमें अन्न या दूध आदि रखते हैं। मटकी । कुटी । मठिया। उ०-तही जाइक मठिका करई। अल्प उ०-ऐसो को है जो छुवै मेरी मटुकी, प्रकृती दहैड़ी द्वार अठ छिद्र सु भरई। सुदर० ग्रं, भा० १, पृ० १०२ । जमी।-नंद००, पृ० ३६१ । मठिया-संज्ञा स्त्री० [सं० मठिका, हिं० मठ+इया (प्रत्य० :)] मट्टी-संज्ञा स्त्री० [सं० मृत्तिका ] दे॰ 'मिट्टी। छोटी कुटी या मठ। मट्ठर-संज्ञा पुं० [ देश० ] सुस्त । काहिल । मठिया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] फूल (धातु) की बनी हुई चूड़ियां जो नीच जाति की स्त्रियां पहनती हैं। मट्ठा-संज्ञा पुं० [सं० मन्थन ] मथा हुआ दही जिसमें से नैनू' निकाल लिया गया हो । मही। छाछ । तक। विशेप-ये एक वोह में २०–२५ तक होती है और कोहनी से कलाई तक पहनी जाती हैं। इनमें कोहनी के पास की मट्ठी-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] मैदे का बना हुआ एक प्रकार का बहुत चूड़ी सबसे बड़ी होती है, और उसके उपरांत की चूड़ियाँ खस्ता नमकीन पकवान । क्रमशः छोटी होती जाती हैं। मठ-संज्ञा पुं० [सं०] १. निवासस्थान | रहने की जगह । २. मठी'-सज्ञा पुं० [सं० मठिन् ] छोटा मठ वा प्राश्रम [को०] । वह मकान जिसमे एक महत की अधीनता मे बहुत से साधु प्रादि रहते हों। मठी-सज्ञा स्त्री० [सं० मठ+ई (प्रत्य॰)] १. छोटा मठ । २. मठ का अधिकारी । मठ का महंत । मठधारी। उ०-सुपुष होहु यौ०-मठधारी । मठाधीश । मठपति । जै हठी मठीन न बोलिए। --केशव (शब्द०)। ३. वह स्थान जहाँ विद्या पढ़ने के लिये छात्र आदि रहते हों। महुलिया-संवा क्षी० [हिं० मठरी ] १. टिकिया या मठरी नाम ४ मंदिर । देवालय । की मिठाई । २. दे० 'मट्ठी' । यौ०–मठपति=पुजारी । मठुलो-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे० 'मठरी'। मठा-वि० [हिं० मष्टा] मौन । चुप । उ०- सुंदर काची बिरहनी मठोठा-संज्ञा पु० [देश॰] कुएँ की जगत । मुख ते करे पुकार । मरि माह मठ ह रहै वोले नहीं लगार ।-सुदर न०, भा॰ २, पृ० ६८३ । मठोर-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० महा ] १. दही मथने वा मट्ठा रखने की मटकी जो साधारण मटकियों से कुछ बड़ी होती है। २. मधारी-संज्ञा पुं० [सं० मठधारिन् ] वह साधु या महंत जिसके नील बनाने की नींद | चील का माठ। अधिकार में कोई मठ हो । मठोरना -क्रि० स० [देश॰] १. किसी लकड़ी को खरादने के मठपति-संज्ञा पुं० [सं० मठपति ] दे॰ 'मठधारी' । लिये रंदा लगाकर ठीक करवा । २. मठरना नामक होते मठर-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन मुनि का नाम । से धीरे धीरे चोट लगाकर गहने आदि ठीक करना। मठर-वि० [सं०] १. मदमत्त । २. कर्कश (आवाज)। कठोर ( सुनार )। ३. किसी बात को बहुत धीरे धीरे या बना (धनि) [को॰] । बनाकर कहना । मठारना। मठरना-संज्ञा पुं० [ देश० ] सोनारों तथा सगरों का एक औजार मठोल, मठोला-वि० [ अनु० ] [वि॰ स्त्री० मठोली ] गठीला। जो छोटे हथौड़े की तरह का होता है। इसका व्यवहार उस भरापूरा । न बहुत बड़ा न छोटा । मझोले कद का । उ०- समय होता है जिस समय हलकी चोट देने का काम ( क ) खासा छोटा मोटा, गोल मठोल, काजल दिलवाए, पड़ता है। सहरा लगाए, खिलौना सा दुलहा ।—प्रेमघन०, भा० २, ० १८६ । (ख) वो सुरत उनकी भोली सी वो सिर पगिया मठरी-संञ्चा स्त्री० [ देश०] १. मैदे, सूजी मादि की एक प्रकार की मिठाई जिसे टिकिया भी कहते हैं । २. दे० 'मट्ठो'। मठोली सी। भारतेंदु म, भा॰ २, पृ० ४६१ । मठौरा-संज्ञा पुं० [हिं० मठोरना ] एक प्रकार का रंदा जिससे मठली-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे॰ 'मठरी'। लफड़ी रंदकर खरादने आदि के योग्य करते हैं। मठा-संज्ञा पु० [सं० मन्थन, या मथित ] दे० 'मट्ठा'। मड़ई-संज्ञा स्त्री॰ [सं० मण्डपी ] १. छोटा मंडप । २. कुटिया । मठाधीश-संज्ञा पुं० [सं०] १. मठ का प्रधान कार्यकर्ता या पर्णशाला। मालिक । २. मठ मे रहनेवाला प्रधान साधु या महंत । २-संज्ञा स्त्री० दे० 'मही'। मठान-संज्ञा पुं० देश०] दे० 'मठरना'। मड़क-संज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का अन्न (संभवतः मठारना-स० कि० [हिं० मठारना] १. बरतन में गोलाई या मड़ पा ) [को०] । सुडौलपन लाने के लिये उसे 'मठरना' नामक हथौड़े मड़- [अनु० ] किसी बात के अंदर छिपा हुआ हेतु । से धीरे धीरे पीटना। २. गूधे हुए माटे में लेस उत्पन्न य। जैसे,—तुम उसकी बात की मड़क नहीं करने के लिये उसे मुक्कियों से बार बार दवाना । मुक्की देना। ३. किसी वात को बहुत. धीरे धीरे या बना बनाकर [सं० मएडम ] अनाज अलग करने कहना । बात को बहुत विस्तार देना । Mसे रोदवाना। दवनी । देवरी मठिका@-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. छोटा मठ या आश्रम । २. पणं- 1 ७०-यतपणा