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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५०९

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मड़मड़ाना २०४८ मढ़ाई प्रक्रियाओं का क्रमश. उल्लेख है-जुनाई, बुवाई, लवनी कारण अकाल के समय गरीबों के लिये इसका बहुत अधिक और मडनी ।-हिंदु सभ्यता, पृ० ३७ । उपयोग होता है। इसे पीसकर ग्राटा भो बनाया जाता है और यह चावलो आदि के साथ भो उबालकर खाया जाता मड़मड़ाना-कि० म०, स० [अनुच० ] दे० 'मरमराना'। मड़लाना-क्रि० अ० [ म० अगुष्व ] दे॰ 'मडराना' | Ro- है। इससे एक प्रकार की शराव भी बनती है। वैद्यक में (क) सुपमा मे सुख रूप धधा है, नभ में नयन मुक्ति इसे कसैला, कड़ना, हलका, तृप्तिका रक, बलवर्धक, विदोष- निवारफ और रक्तदोप को दूर करनेवाला माना है । मडलाई -प्राराधना, पृ० ४०। (ख) ये मेरे अपने सपने आँखो से निकले मडलाए।-अपरा, पृ० ३६ । पर्या०-वटक । स्थूल गु । रुस । स्थूलप्रियंगु । २. एक प्रकार का पक्षी। मड़राना-क्रि० अ० [ स० मण्डल] दे० 'मंडराना'। उ०- मईया-संज्ञा स्त्री० [३० मण्डपी] १. छोटा मंडप । २. कुटी। सरस पुसुम मडरात अलि, न झुकि झाटि लपटात । -बिहारी (शब्द०)। परांशाला । झोपड़ी । ३. मिट्टी का बना हुआ छोटा घर । मड़ला-संशा पु० [सं० मण्डल ] अनाज रखने की छोटी कोठरी। मडोद-संगा स्त्री० [ अनु० ] दे० 'मरोड़' । मड़वा-संज्ञा पुं० [सं० मण्डप ] दे॰ 'मडप' । मनोड़ी-संज्ञा स्त्री० [ft० मरोदना+ई (प्रत्य॰)] लोहे की छोटी चदार कटिया। मड़वारी -संञ्चा पुं० [हि० मारवाड़ी ] दे० 'मारवाड़ी' । प्रकार का नगादा या मड़हटल-संज्ञा पु० [हिं० मरघट ] दे॰ 'मरघट'। उ०-देहली मड्डुः मड्डुक-तज्ञा पुं॰ [म.] एक ढोल [को०] । लग तेरी मेहरी सगी रे, फलसा लग संगि माई। मडहट लू सब लोग कुटंबी, हंस अक्षेलो जाई । चोर पं०, म-संज्ञा पु० [ स० मठ ] ३० मठ'। उ०-काकर घर फोकर पृ०१९४॥ मढ़ माया |-जायसी न (गुप्त०), पृ० २११ । महा-वि० [हिं० मॉड+हा (प्रत्य॰)] मांड़ खानेवाला । मढ़ - [हिं० मढ़ना ] जो जल्दी हटाने से भी न हटे। अढ़कर बेठनेवाला। मड़हारे-संज्ञा पु० [ स० मण्डप ] १. मिट्टी या घास फूस प्रादि का बना हुआ छोटा घर । झोपड़ी। मड़ई । उ०-भोर बहुत सु मढ़क@-संग नी० [ पनु • ] भोतरी रहस्य । दे० 'महक' । भई जात की मड़हन पै बजनारी।-नंद००, पृ० ३३६ । उ०-फरक कोई मढ़क समझावै । -संत तुरसी०, २. मडप । कुंजम'डप । उ०-अबीर गुलाल घुमड़ी मड़हा पर घुमड़ि रहे मडराए।- छीत०, पृ० २२ । मढना'-क्रि० स० [सं० मण्डन] १. आवेष्टित करना। चारों मड़हा-सज्ञा पु० [ देश० ] भुना हुअा चना । ओर से घेर देना। लपेट लेना । जैसे, तसवीर पर चौखटा मड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० मढ़ी ] १. वड़ी कोठरी | कमरा । मढ़ना, टेवुन पर पड़ा मढ़ना। २. वाजे मुह पर बजाने २- संज्ञा पु० [हिं० माड़ा ] एक प्रकार का नेत्र रोग जिसमें के लिये चमड़ा लगाना । उ०-(क) कमठ अपर मडि मड़ा खाल निसान बजावही ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) दृष्टि मंद पड़ जाती है। मढ्यो दमामा जात क्या सौ चूहे के चाम ।-विहारी मड़ाड़ा-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] छोटा कच्चा तालाव या गड्ढा । उ०- शब्द०)। मड़ाड़, बावली और कुएं का झीकना ।-जगन्नाथ (शब्द०)। मुहा०-मढ़ साना= घिर पाना (जैसे बादलों का)। उ०-- राति हाई बले घर को दसहू दिस मेघ महा मढ़ि मड़ियार-संशा पुं० [हिं० मारवाड़ ? ] क्षत्रियों की एक जाति जो पाए। केशव (शब्द०)। मारवाड़ में रहती है। ३. बतपूर्वक किसी पर आरोपित करना । किसी के गले मड़ा-संज्ञा पु० [ देश० ] १. वाघरे की पाति का एक प्रकार का लगाना। थोपना। जैसे-प्रब तो ग्राप सारा दोष वदन्न । मुझपर ही मढ़ेंगे। विशेष-यह ग्रन्न बहुत प्राचीन काल से भारत मे बोया जाता संयो०कि.-डालना-देना। है; और अवतक ननेक स्थानों में जंगली दशा में भी मिलता है । यह वर्षा ऋतु में खाद दी हुई भूमि मे कभी कभी ज्वार मढ़ना-क्रि० प्र० आरंग होना। मचना । मड़ना । व्याप्त होना । के साथ और कभी कभी अकेला बोया जाता है; मैदानों (ब)। उ०-मढ्यो सोर यह घोर परत नहिं मोर पात मे इसकी देखरेख की विशेष आवश्यकता होती है; पर सुनि ।-हम्मीर०, पृ० ५८ । हिमालय की तराई में यह अधिकांश मे आपसे पाप ही मढ़वाना-क्रि० स० [हिं० मढ़ना का प्रे० रूप] मढ़ने का काम तैयार हो जाता है। अधिक वर्षा से इसकी फसल को हानि दूसरे से कराना । दूसरे को मढ़ने में प्रवृत्त करना । पहुंचती है । यदि इसकी फसल तैयार होने पर भी खेतों में मढ़ा-संज्ञा पुं० [हिं० मदो ] मिट्टी का बना हुमा छोटा घर । रहने दी जाय, तो विशेष हानि नहीं होती। फसल काटने मढ़ाई-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० मदना ] १. मढ़ने का भाव । २. मढ़ने के उपरांत इसके दाने वर्षों तक रखे जा सकते हैं। और इसी का काम । ३. मढ़ने की मजदूरी।