पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७. मढ़ाना ३०४६ भणिपुष्पंक मढ़ाना-क्रि० स० [हिं० मढ़ना ] १ दे० 'मढ़वाना' । २. मडित मणिकेतु -संज्ञा पुं० [सं० ] वृहत्साहिता के अनुसार एक बहुत छोटा करना । उ०—निश्चर बानर युद्ध लखत मन मोद मढाए । - पुच्छल तारा जिसकी पूछ दूध सी सफेद मानी गई है। यह प्रेमधन, भा० १, पृ० ३३८ । केतु पश्विम मे उगता है और केवल एक पहर दिखाई मढ़ी-संज्ञा स्त्री॰ [ स० मठ ] १. छोटा मठ। २. छोटा देवालय । देता है। ३. कुटी । झोपड़ी। पर्णशाला। उ०-खपर न झोली डंड मणिगुण-संञ्चा पु० [सं०] एक वणिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण अधारी, मढ़ी न माया लेहु विचारी।-दादू०, पृ० ५७४ । में चार नगण और एक सगण होता है। इसको 'शशिकला' ४. छोटा घर । ५. छोटा मंडप । ६. नाथ संप्रदाय के संन्यासी और 'शरभ' भी कहते हैं। उ०-नचहु सुखद जसुमति सुत की समाधि जहाँ प्रायः कुछ साधु लोग रहते हैं । सहिता। लहहु जनम इह सुख सखि अमिता । बढ़त चरण मदैया -सज्ञा स्त्री० [हिं० मढ़ ( = मठ)] दे० 'मढ़ी। रति सु हरि प्रनु पला । जिमि सित पख नित बढ़त शशि- मढ्या-तज्ञा पु० [ हिं० मढ़ना+ ऐया (प्रत्य० ) ] मढनेवाला । कला ।-भान ( शब्द०)। मणगयण- संज्ञा पु० [हिं० ] सूर्य । (संभवतः यह संस्कृत गगन मणिगुणनिकर-संज्ञा पुं० [ म० ] मणिगुण नामक छंद का एक मणि का वर्णव्यत्ययजन्य रूप है।) रूप जो उसके ८वें वर्णं पर विराम करने से होता है। मणि-संग स्त्री० [सं०] १. बहुमूल्य रत्त । जवाहिर । जैसे, हीरा, इसका दूसरा नाम चंद्रावती भी है। पन्ना, मोती, माणिक आदि । २. सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति । जैसे, मणिग्रोव-संज्ञा पुं० [ स० ] कुवेर के एक पुत्र का नाम | रघुकुलमणि । ३. बकरी के गले की थैली । ४. पुरुद्रिय का मणिच्छिद्रा-संज्ञा स्री० [सं०] १. मेधा नाम की ओषधि । २. अगला भाग। ५. योनि का अगला भाग । ६. घड़ा। ऋषभा नाम की ओषधि । एक प्राचीन मुनि का नाम । ८. एक नाग का नाम । मणिजला-संज्ञा स्री० [स०] महाभारत के अनुसार एक नदी मुहा०-मणिकांचन योग = शोभा और सौदयं बढ़ानेवाला का नाम । विचार, भावना, वस्तुप्रो या व्यक्तियों का मिलाप । उ० मणित-पंञ्चा पु० [सं०] रतिकालीन सीत्कार । रतिकालीन पश्चिमी पार्यों की रुढिप्रियता, कर्मनिष्ठा के साथ ही साथ पूजन (को०] । पूर्वी प्रार्यों की भावप्रवणता, विद्रोही वृत्ति और प्रेमनिष्ठा मणितारक-संज्ञा पुं० [सं०] सारस ।

का मणिकांचन योग हुआ है। -प्राचार्य, पृ० ३३ ।

मणितुंडक-संज्ञा पु० [सं० मणितुण्डक ] एक जलपक्षी [को०] । मणिकंकण-मज्ञा पु० [सं० मणि+ङ्कण ] रत्नों से विजटित कड़ा मणिदीप-संशा पु० [स०] १. वह दीपक जो मणि द्वारा प्रकाश या कंगन (को० । देता है । २. रत्न विजटित दीपक (को०] । मणिक-सज्ञा पुं० [ स० ] १. मिट्टी का घड़ा । २. प्रजागलस्तन । मणिदोष-संज्ञा पुं० [स०] रत्न के दोष (को०] । बकरी के गले में लटकनेवाली मांस की थैली (को०) । ३. योनि का अग्र भाग । ४. स्फटिकाश्मनिमित प्रासाद । मणिद्वीप-संज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार रत्नों का बना हुमा एक द्वीप जो क्षीरसागर में है। यह त्रिपुरसुदरी देवी का स्फटिक का महल (को०) । ५. रत्न । मणि (को) । निवासस्थान माना जाता है । मणिकर्णिका, मणिकर्णी f-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. मरिण नटित कर्ण. मणिधनु मणिधनुस् -नचा पुं० [सं०] इन्द्रधनुप [को०] । फूल । २. वाराणसी का प्रसिद्ध तीर्थस्थल । विशेप-काशीखंड में छहा है कि विष्णु के कठोर तप को देख मणिधर-संज्ञा पुं० [सं० ] सर्प । साँप । आश्चर्यचकित शिव का सिर हिल उठा जिससे उनके कान मणिपद्म-संज्ञा पुं॰ [ सं०] एक वोधिसत्व का नाम । का मणिकुंडल यहाँ गिर पड़ा था। मणिपुर-शा पु० [सं० ] दे० 'मणिपूर' । मणिकर्णिकेश्वर-संज्ञा पु० [ स०] कामरूप देश स्थित एक शिवलिंग मणिपूर-सज्ञा पु० [सं०] १. तंत्र के अनुसार छह चक्रो में से तीसरा का नाम [को०] । चक्र जो नाभि के पास माना जाता है। मणिकाच-संज्ञा पुं० [सं०] १. बाण या तीर का वह भाग जहाँ विशेप-यह तेजोमय और विद्युत् के समान प्राभायुक्त, नीले पख जैसी प्राकृति होती है । २. स्फटिक (को०) । रंग का, दस दलों वाला पौर शिव का निवासस्थान माना मणिकार-संज्ञा पुं० [सं०] जौहरी [को०] । जाता है। कहते हैं, यदि इसपर ध्यान लगाया जा सचे मणिकानन-मंज्ञा पु० [सं०] गला । कंठ । तो फिर सब विषयों का ज्ञान हो जाता है। यह भी कहते मणिकुंडल-संज्ञा पु० [सं० मणि + कुण्डल ] मणिविजटित फर्ण हैं कि इसपर 'इ' से 'फ' तक अक्षर लिखे हैं भूषण [को०] । २. कलिंग (प्रासाम वर्मा की सीमा ) का एक राज्य । ३. मणिकुट्टिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । मणिपुर । नाभि (को०) । ४. रत्नविजटित चोली (को॰) । मणिकूट-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार कामरूप के पास एक मणिपुष्पक-संज्ञा पुं॰ [सं०] सहदेव के शंख का नाम । पर्वत का नाम यौ०-मणिपूरपति अर्जुन का पुत्र बभ्रुवाहन ।