पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/५२६

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'गधगध ३७६५ स० मद्यगंध-संशा पु० [ म मद्य गन्ध ] बगुलवृक्ष (को०] । मद्रास-या पु० [२०] : 'मागम'। मद्यत-वि. [ स० मद ] मद से भरा। मतबाला । उ-निस मद्रिका-: [ ] म: देवी स्त्री० । गयति अद्ध ससि उदित बीर । बजे सु बजि मद्यत सुमीर । मद्र कस्थती--- 7 [ स० ] 'गिनि के अनुसार एक देश -पृ० रा०,६१२१५४२ । Pा नाम। मद्यदोहद-संज्ञा पुं० ] बकुल वृक्ष [को०] । महा-संशा पु० [ ना महन् ] जि का एक नाम दि)। मद्यद्र,म-संज्ञा पुं॰ [ स० ] माड़ नामक वृक्ष । मन'-- पु० म० माग J. 'मम'। ३०-या पार मद्यपंक-संज्ञ, पु० [ स० मद्यपङ्क] खमीर जो मद्य खोचने के लिये जीव बबामा-पट, पृ० ३६५ । उठाया जाय। मध-पंदा दु० [ म० मद] दे० 'मद' । २०-11 के माते मद्यप-वि० [सं०] मद पीनेवाला । सुरापी। शरावी । समझत नाही, मैंगत की मत प्राई।--दादूपृ० ५७५ । मिर्लज्ज । मद्यप !! क्लीव !! घोह तो मेरा कोई रक्षक मधगंध - पु० [म मद+गन्ध ] मदनरा गंधवाले मन नही।-ध्रुव०, पृ० २६ । हाथी। उ०-अन्ध सूर उगा ढल तो मुग्लानिन । मद्यपान-संवा पु० [सं०] मद्य पीने की क्रिया। शराब पीना । ढाम ढाम मगन सजिम चल्लं अनानिय । --पृ. रास, मद्यपायी-वि० [सं० मद्यपायिन् ] शराब पीने वाला। शराबी को । २४११२१ । मद्यपाशन-संज्ञा पुं० [सं०] मद्य के साथ खाई जानेवाली चटपटी मधन --सक्षा या [ स०] एक रागिनी नो भैरव राग ही पुत्र चीज । गजक । चाट। मानी जाती है। मद्यपुष्पा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] धातकी । धौ। मधग पु--वि० [सं० मधुर ] ६० 'गधु' । उ०हाप सितागे सुर मद्यवीज-सशा पु० [सं० ] शराब के लिये उठाया हया खमीर । कर्यो, मुख में मधरा बोउ -पोद्दार अभि० ग्र०, मद्यभाजन-सज्ञा पु० [सं०] शराव का पात्र । मद्य भाड (को०] । पृ० १६७। मद्यभांड-संद्धा पु० स० मद्यभाएड ] मद्यभाजन [को०] । मधव्य-संशा पु० [ स० ] वैशाख का महीना | माधव (को०] । मद्यमंड-संश पुं० [सं० मद्यमण्ड ] वह फेन जो मद्य का खमोर मधानी-शा पी० [हिं० मथानी] दही मयने का पात्र । मवानी । उठने पर ऊपर माता है। मद्यफेन । मटका । उ०-एक कमरे में, जो कि निस्मदेह मठ का मद्यमोद-शा पु० [सं०] बकुल । मालसिरी ! रसोईघर था हमें कढ़ाई, तवा चमा, करछी, मवानी और मद्यवासिनी-संश्चा झी[सं०] धातकी । धौ। एक छोटा सा सरौता उपलब्ध हुआ है। -शुक्ल पनि ग्रं०, पृ० १००। मद्यसंधान-शा पु० [सं० मवसन्धान मद्य निकालने का व्यापार मधाना@-क्रि० अ० [हिं० मथना ] मया जाना । विलोडित मद्याक्षेप-संज्ञा पुं० [सं०] शराब पीने का व्यसन । शराव की होना। उ०-ज्ञान मधाना अहि निति पथै । -प्राण, पु० ४४. लत (को। मधाजीर्ण-संशा पु० [सं० मद्य -- अजीर्ण ] एक प्रकार का अजीर्ण मधाना-ज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार की घाग जो पशुप्रो रे जिसमें डकार पाना, पेट फूलना भादि उपद्रव होते हैं । लिये बहुत पुष्टिकारक समझी जाती है। माड़ा । मवाना । विशेष दे० 'मकड़ा। उ०-धमन अथवा डकार का पाना, जलन होना, ये लक्षण जब मद्याजीर्ण होय है तब होते हैं । -माधव०, पृ० ११८ । मधि-संज्ञा पु० [सं० मध्य ] ६० 'मा' । उ०-१सा वचन मुनि दोउ दल के मघि रथ ले ठाढ़ो कोनो ।-भारतेंदु प्र०, भा० मद्यामोद-संज्ञा पु० [सं०] बकुल वृक्ष (को० । २, पु० ७८२। मद्रकर-वि० [सं० मगर ] मंगलकारक । शुभकारक । मद्र-पंक्षा पुं० [सं०] एक प्राचीन देश का वेदिक नाम । यह देश मधि-प्रव्य० दे० में । कश्यप सागर के दक्षिणी किनारे पर पश्चिम की ओर था। मधिका-क्रि० वि० [सं० मध्य ] बीच में । उ०-मधिक पेड़ और ऐतरेय ब्राह्मण मे इसे उत्तर कुरु लिखा है । २. पुराणानुसार विस्तारे ।-दरिया बानी, पु. १८ । रावी और झेलम नदियों के बीच के देश का नाम । ३. मधिनायक-संज्ञा पुं० [सं० मध्य+नायक माला में बीचों बीच हपं । ४. मद्र देश के राजा (को०) । ५. मंगल : शुभ (को॰) । का बड़ा मनका या भूषण । पदिक । 30--गनहु मधिनायक मद्रक-वि० [सं०] १. मद्र देश का। मद्र देश संबंधी। २. मद्र विराजत प्रति अमुत जरा-धनान, पृ० २६७ । देश में उत्पन्न । मधिमपुर-ब [ स० मध्यम ] दे० 'म-यम', 'मम' । मद्रकार-वि० [सं०] मंगलबारक । शुभ । मधु'-संज्ञा पुं॰ [सं०] १. पानी । जल। २. शहर । ३. मदिरा । मद्रसुता-संज्ञा स्त्री० [सं०] नकुल पोर सहदेव की माता, मादी जो शराव । ४. फूल का रस । मकरंद । ५. परत तु । 3.- मद्रनरेया की कन्या थी। कोउ कह विहरत बन मधु ननविन दोउ .-तुती ०,